शहर निजामाबाद और मिट्टी की अद्भुत कला…

कुमार संकल्प, कोलकाता। काफी समय से अपने जिले के बारे में अवगत कराने की कोशिश में था। ऐसा नहीं है कि यहां केवल आतंक की ही कहानियां हैं। काफी कुछ खास है। जानने के लिए समझने के लिए। अध्ययन करने के लिए। घूमने के लिए। आजमगढ़ का जिक्र होता है तो हमारे निजामाबाद की मिट्टी की कला यानी कि ब्लैक मिट्टी की चर्चा भी खास हो उठती है। भाई नीरज पाठक ने कुछ साल पहले काफी तस्वीरें भेजी थीं।

दरअसल निजामाबाद की ये काली मिट्टी के बने नक्काशीदार बर्तन न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में अपनी कला का परचम लहराते हैं। निजामाबाद ने विश्व पटल पर अपनी मिट्टी की कला का लोहा मनवाया है। ज्योग्राफिकल इंडेक्स में भी इन बर्तनों को दर्ज किया गया है। उपहारों में ब्लैक पॉटरी के बर्तनों को देने का काफी चलन है।

कहा जाता है कि मुगल काल की सबसे खास कलाओं में काली मिट्टी के बर्तन बनाने की कला भी शामिल रही है। निजामाबाद के कुम्हारों ने 300 साल पुरानी ब्लैक पॉटरी की कला को आज भी न केवल जीवंत रखा है, बल्कि इससे रोजगार भी बढ़ाया है। बताया जाता है कि यह कला मुगल काल में गुजरात से आई है। कुछ का यह भी कहना है कि यह कला आंध्र प्रदेश से आई है।

सजावट के लिए इनमें प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। महीनों की मेहनत से इसे बनाया जाता है। अप्रैल–मई के महीने में तालाबों के सूखने पर मिट्टी निकाल के इकट्ठा की जाती है और बाद में इसे साफ कर के पानी में गूंथा जाता है। फिर चाक पर उन्हें सांचों की मदद से अलग अलग आकार में ढाल लिया जाता है।

पकाने के बाद इन पर सरसों का तेल और सब्जियों का चूर्ण इस्तेमाल करते हैं ताकि इनकी चमक बढ़ जाए। इन बर्तनों को नेचुरल काला रंग देने के लिए इन्हें खास तौर से चावल की भूसी वाली भट्टी में पकाया जाता है। सजावट के लिए जस्ता, चांदी के पाउडर और पारे का इस्तेमाल किया जाता है। जिसके बाद उन्हें अच्छे से पॉलिश कर के पूरी तरह से तैयार कर दिया जाता है।

निजामाबाद के हुसैनाबाद को इस कला का केंद्र माना जाता है। इसमें कुम्हारों समेत टेराकोटा और सजावट के कारीगर भी शामिल हैं। आजमगढ़ के राजस्व में भी ये कला सालाना 2 से 3 करोड़ रूपये का योगदान देती है। यहां बने बर्तनों का 80% हिस्सा विदेशों में एक्सपोर्ट किया जाता है। निजामाबाद में आज बड़े पैमाने पर इन उत्पादों को बेचने के लिए दुकानें मौजूद हैं।

हिंदी के पहले महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध भी निजामाबाद की ही धरती पर जन्मे थे। यही वजह है कि आज भी हरिऔध की धरती का जिक्र आता है। यहां देश के सबसे पुराने गुरुद्वारों में से एक गुरुद्वारा भी है, जहां सिख धर्म गुरु गुरुनानक और तेग बहादुर भी आ चुके हैं। यहां उनकी चरणपादुका और हाथ से लिखी गुरुग्रंथ साहिब भी मौजूद है, जिसे देखने दुनिया भर से सिख समुदाय के लोग आते हैं। सबसे खास यहां माता शीतला का मंदिर भी है। अक्सर यहां दर्शन के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है।

मेले जैसा नजारा मंदिर में नजर आता है। शीतला मंदिर में नए नवेले वैवाहिक जोड़े माता का आशीष लेने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर में श्रद्धा का आलम ऐसा है कि बड़ी संख्या में लोग जिले ही नहीं राज्य के विभिन्न हिस्सों से भी आते हैं। कहा जाता है कि मन से आराधना करने वालों की मुराद मां शीतला पूरी करती हैं। यहां आराधना के लिए फल, फूल से लेकर चुनरी आसानी से उपलब्ध है। आज अनेकों दुकानें यहाँ मौजूद हैं।

(नोट- कुछ जानकारी नेट की खबरों से भी साभार)

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