कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मेडिसिन में तीन साल का डिप्लोमा शुरू करने के प्रस्ताव के परिणामस्वरूप बिना पर्याप्त बुनियादी ढांचे और योग्य फैकल्टी के डिप्लोमा कोर्स की पेशकश करने वाले निजी संस्थानों की भरमार हो सकती है। यह आशंका राज्य की चिकित्सा बिरादरी ने जताई है। केपीसी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के एक संकाय-सदस्य डॉ तीथर्ंकर गुहा ठाकुरता के अनुसार, पश्चिम बंगाल में पहले से ही निजी नसिर्ंग कॉलेजों के कुकुरमुत्ते की तरह फैलने के उदाहरण हैं।
उन्होंने बताया, यहां तक कि अगर तर्क के लिए मैं सहमत हूं कि चिकित्सा में प्रस्तावित तीन वर्षीय डिप्लोमा पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त डॉक्टरों की कमी की समस्या को हल करेगा, तो इन डिप्लोमा डॉक्टरों के गुणवत्ता प्रशिक्षण के बारे में सवाल बना रहता है। चिकित्सा में डिप्लोमा प्रदान करने वाले संस्थानों में शिक्षण संकाय कौन होगा? इन संस्थानों में शिक्षा और प्रशिक्षण की गुणवत्ता की गारंटी कौन देगा? इसलिए मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे संस्थानों के प्रति आशंका करता हूं।
शहर के जाने-माने जनरल मेडिसिन डॉक्टर अरिंदम बिस्वास ने कहा कि वह दो आधारों पर डिप्लोमा डॉक्टरों के इस प्रस्ताव के सख्त खिलाफ हैं। डॉ. बिस्वास ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, सबसे पहले, यह महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में समस्या का समाधान करने के लिए एक छोटा और अल्पकालिक समाधान है, जहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और प्रशिक्षण की कोई गारंटी नहीं है। दूसरा, केवल ग्रामीण पश्चिम बंगाल में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को ही क्यों चुना जाए।
यह प्रयोग? यह ग्रामीण और शहरी स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के बीच भेदभाव का एक स्पष्ट मामला है। उन्होने कहा, कौन सी अधिकृत संस्था होगी, जो चिकित्सा में इस तरह के डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाने वाले संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करेगी। पिछले वाम मोर्चा शासन के दौरान भी वहां कुछ इसी तरह का प्रस्ताव था जिसे खारिज कर दिया गया था।