छठ पूजा : एक प्रकृति और लोक श्रद्धा का महापर्व

रूपेश मिश्रा, पटना। छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक विशेष पर्व है, जिसे मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व न केवल बिहारियों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है, बल्कि प्रकृति के प्रति आस्था, स्वच्छता और आत्मिक शुद्धता का भी प्रतीक है। इसे बिना किसी ब्राह्मण यजमान के, परिवार के सभी सदस्य आपसी सहयोग और आत्म-संयम के साथ संपन्न करते हैं।

छठ पूजा का पौराणिक महत्व और कुछ विशेष बातें : छठ पूजा के उत्पत्ति के विषय में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, जब पांडवों ने अपना राजपाट खो दिया था, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा और सूर्य देव से अपने परिवार की कुशलता की प्रार्थना की थी। मान्यता है कि उनकी पूजा से सूर्य देव प्रसन्न हुए और पांडवों को फिर से अपना राज्य प्राप्त हुआ।

एक अन्य कथा में यह माना जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत भगवान राम और माता सीता ने की थी। जब भगवान राम ने वनवास से अयोध्या लौटकर राज्याभिषेक के बाद सूर्यदेव की आराधना की, तब मां सीता ने भी इस पर्व को विधिवत रूप से संपन्न किया था। ऐसी मान्यताएं इस पूजा के आध्यात्मिक महत्व को और अधिक गहरा बनाती हैं।

प्रकृति पूजा का अनूठा स्वरूप है छठ पूजा, यही कारण है कि छठ पूजा को प्रकृति पूजा का अनूठा रूप कहा जा सकता है। इसमें विशेष रूप से सूर्य और जल की आराधना की जाती है। व्रत करने वाले श्रद्धालु नदियों, तालाबों या अन्य जल स्रोतों के किनारे सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय की पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी है। कहा जाता है कि इस समय सूर्य की किरणों से ऊर्जा का विशेष लाभ मिलता है, जो शरीर और मन को स्वस्थ और सशक्त बनाती है।

इस पर्व में गन्ना, नारियल, केले और ठेकुआ जैसी वस्तुओं का प्रयोग होता है, जो प्रकृति से जुड़ी होती है। इसके पीछे यह मान्यता है कि इन प्राकृतिक वस्तुओं को सूर्य देवता तक पहुंचाने से वो प्रसन्न होते हैं। श्रद्धालु स्वयं को समर्पित कर, कठिन उपवास और जल में खड़े होकर सूर्य देवता से सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।

छठ पूजा का समाजिक और सांस्कृतिक महत्व पर भी एक नजरिया डाला जाए तो छठ पूजा का सबसे खास पहलू इसकी समाजिक एकता और सामूहिकता है। इस पर्व में न केवल एक परिवार, बल्कि पूरा समाज एक जुट होकर इसे मनाता है। यहां कोई जाति-धर्म का भेद नहीं है, सब लोग एक समान श्रद्धा से सूर्य देव की आराधना करते हैं। व्रत में महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल होते हैं, जो इस पर्व को विशेष बनाता है।

छठ पूजा में न तो किसी विशेष पंडित या ब्राह्मण की आवश्यकता होती है और न ही कोई विशेष धार्मिक स्थान की। इसे घर में, गांव में, गंगा घाट पर या किसी भी नदी के किनारे मनाया जा सकता है। यही कारण है कि छठ पूजा बिहार और अन्य स्थानों में रहने वाले लोगों के लिए अपनी मिट्टी और संस्कृति से जुड़ाव का पर्व है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर नजर डाला जाए तो छठ पूजा के दौरान किए जाने वाले उपवास, स्वच्छता, जल में खड़े होकर अर्घ्य देना आदि स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक माने जाते हैं। सूर्य की किरणों से प्राप्त होने वाला विटामिन डी शरीर के लिए आवश्यक होता है और सुबह-शाम सूर्य को अर्घ्य देने से मन और शरीर को शांति मिलती है।

छठ पूजा न केवल बिहारियों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक ऐसा पर्व है जो प्रकृति, श्रद्धा, स्वच्छता और आत्म-शुद्धता का प्रतीक है। इस पूजा में हर व्यक्ति स्वयं को प्रकृति के प्रति समर्पित कर अपने आप को आत्मिक रूप से शुद्ध करता है। यह पर्व हमें हमारी परंपराओं से जोड़ता है और एक सामूहिक शक्ति का अहसास कराता है, जो समाज में एकता और शांति का संदेश देता है।

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