वाराणसी। देवशयनी एकादशी के बाद से चार माह के लिए व्रत और साधना का समय प्रारंभ हो जाता है जिसे चातुर्मास कहते हैं। सावन, भादो, आश्विन और कार्तिक इन 4 माह में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं होगा। पूजा, तप और साधना के 4 माह रहेंगे। इस अवधि में यात्राएं रोककर संत समाज एक ही स्थान पर रहकर व्रत, ध्यान और तप करते हैं, क्योंकि यह चार माह मांगलिक कार्यों के लिए नहीं बल्कि तप, साधना और पूजा के लिए होते हैं। इस माह में की गई पूजा, तप या साधना जल्द ही फलीभूत होती है।
सो जाते हैं प्रभु श्री हरि : चार माह के लिए देव यानी की श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसीलिए सभी तरह के मांगलिक और शुभ कार्य बंद हो जाते हैं, क्योंकि हर मांगलिक और शुभ कार्य में श्री हरी विष्णु सहित सभी देवताओं का आह्वान किया जाता है और श्री हरि विष्णु संसार के पालन करता है पर इन चार मासों में प्रभु श्री हरि विष्णु की अनुपस्थिति होती है। इन 4 मास में प्रभु श्री हरि राजा बलि के वहां पाताल लोक में योग निद्रा में चले जाते हैं, ऐसा भी कहा जाता है कि पाताल लोक में बलि को दिये हुए वरदान के वसीभुत वहां पहरेदारी भी श्री हरि विष्णु इन 4 मासों में करते हैं।
सूर्य और चंद्र का तेज हो जाता है कम : देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है। शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं होते इसीलिए भी मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं और प्रभु श्री हरि विष्णु जी की उपस्थिति भी नहीं होती है।
इस अवधि में यात्राएं रोककर संत समाज एक ही स्थान पर रहकर व्रत, ध्यान और तप करते हैं, क्योंकि यह चार माह मांगलिक कार्यों के लिए नहीं बल्कि तप, साधना और पूजा के लिए होते हैं। इस माह में की गई पूजा, तप या साधना जल्द ही फलीभूत होती है।
भोजन में रखी जाती है सावधानी : मांगलिक कार्यों में हर तरह का भोजन बनता है लेकिन चातुर्मास में वर्षा ऋतु का समय रहता है। इस दौरान भोजन को सावधानी पूर्वक चयन करके खाना होता है अन्यथा किसी भी प्रकार का रोग हो सकता है। चारों माह में किस तरह का भोजन करना चाहिए और किस तरह का नहीं यह बताया गया है क्योंकि जठर की अग्नि मंद हो जाती है
स्वास्थ्य सुधारने के माह : यह चार माह स्वास्थ्य सुधार कर आयु बढ़ाने के माह भी होते है। यदि आप किसी भी प्रकार के रोग से ग्रस्त हैं तो आपको इन चार माह में व्रत और चातुर्मास के नियमों का पालन करना चाहिए।
होती है मनोकामना पूर्ण : इन महीनों को कामना पूर्ति का महीना भी कहा जाता है। इन माह में जो भी कामना की जाती है उसकी पूर्ति हो जाती है, क्योंकि इस माह में प्रकृति खुली होती है।
सूर्य हो जाते है दक्षिणायन : सूर्य जब मकर राशि में भ्रमण कर लेते हैं तो उस समय से लेकर अभी के चातुर्मास देव शयनी समय तक का समय उत्तरायण का होता है यानी कि सूर्य की 6 माह तक गति उत्तर तरफ रहती है। श्री हरि देव शयनी के बाद कर्क राशि में भ्रमण करने लगता है तो उसके बाद 6 माह वह दक्षिणायन रहता है यानी कि सूर्य देव की गति दक्षिण तरफ रहती है। दक्षिणायन को पितरों का समय और उत्तरायण को देवताओं का समय माना जाता है। इसीलिए दक्षिणायन समय में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
चार माह नहीं करते हैं ये कार्य : इन चार माह में विवाह, मुंडन, ग्रहप्रवेश, जातकर्म, संस्कार आदि कार्य नहीं किए जाते क्योंकि चातुर्मास को नकारात्मक शक्तियों के सक्रिय रहने का मास भी कहा जाता है इसीलिए भी इस चातुर्मास में जप, तप, ध्यान, व्रत, दान ज्यादा किए जाते हैं।
शिव के गण रहते हैं सक्रिय : चातुर्मास में श्रीहरि विष्णु चार माह के लिए पाताल लोक में राजा बलि के यहां शयन करने चले जाते हैं और उनकी जगह भगवान शिव ही सृष्टि का संचालन करते हैं और तब इस दौरान शिवजी के गण भी सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में यह शिव पूजा, तप और साधना का होता है, मांगलिक कार्यों का नहीं।
ऋतुओं का प्रभाव : हिन्दू व्रत और त्योहार का संबंध मौसम से भी रहता है। अच्छे मौसम में मांगलिक कार्य और कठिन मौसम में व्रत रखें जाते हैं। चातुर्मास में वर्षा, शिशिर और शीत ऋतुओं का चक्र रहता है जो कि शीत प्रकोप पैदा करता है। शीत प्रकोप के कारण जठराग्नि मंद हो जाती है, पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है, इसीलिए भी आरोग्य की दृष्टि से जप तप के द्वारा खाने में संयम रखने के लिए व्रत उपवास आदि किए जाते हैं।
ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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