आम जनता को संविधान संशोधनो का इतिहास आरोप प्रत्यारोप पर नहीं बल्कि विजन 2047 के संविधान का रोडमैप जानने में रुचि है!
लोकसभा में 13-14 दिसंबर 2024 संविधान चर्चा इतिहास की क्लास लगी? अब राज्यसभा में 16-17 दिसंबर को चर्चा पर दुनिया की नजरें- अधिवक्ता के.एस. भावनानी
अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के निचले सदन लोकसभा में 13-14 दिसंबर 2024 को संविधान पर चर्चा को पूरी दुनिया ने देखा जो अब 16-17 दिसंबर 2024 को उपरी सदन राज्यसभा में भी होगी। लोकसभा की चर्चा पर मैंने दोनों दिन बारीकी से पैनी नजर रखी व 14 दिसंबर 2024 को माननीय पीएम के जवाब के बाद सोशल, इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया प्लेटफार्मस पर लगातार डिबेट मुलाकातें व दर्शकों द्वारा कमेंट्स का जोरदार दौर चल पड़ा जिसमें मैंने देखा कि अधिकांश विश्लेषको कमेंट्स कर्ताओं को लगता है कि चर्चा का मकसद समझ नहीं आया! क्योंकि इसमें हर राजनीतिक दल, संविधान संशोधन के इतिहास की बातकर एक दूसरे दल की टांग खिंचाई एक दूसरे के संशोधनों को गैरवाजिब व मतलबी संशोधन की संज्ञा देते रहे, तो किसी ने इसको इतिहास की क्लास की संज्ञा दी।
मैंने विशेषण किया तो मुझे भी इस पर सार्थक चर्चा नजर नहीं आई, क्योंकि सभी दल एक दूसरे के द्वारा किए गए संशोधनों पर उंगली उठा रहे थे, इस पार्टी या व्यक्ति ने इतने, तो उस पार्टी या व्यक्ति ने उतने संशोधन किया। विशेष रूप से विपक्षी नेता के 25 मिनट के संबोधन में बहुत समय पीएम उपस्थित नहीं थे, तो वही 1 घंटा 50 मिनट के पीएम के संबोधन में कुछ समय विपक्षी नेता उपस्थित नहीं दिखे, परंतु इन सब से हटकर किसी ने भी ऐसा विचार व्यक्त नहीं किया कि आइए विजन 2047 को रेखांकित कर हम संविधान में इस तरह का संशोधन आगे करें कि विजन को शीघ्र अपनी डेट लाइन से पहले सार्थक सफल बनाने के लिए संविधान में संभावित संशोधन कर रणनीति बनाएं ताकि हम इस लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त कर सकें। मुझे उम्मीद है कि 16-17 दिसंबर 2024 को उच्चसदन राज्यसभा में इस पर सार्थक चर्चा जरूर होगी। चूँकि लोकसभा में 13-14 दिसंबर 2024 को संविधान, पर चर्चा इतिहास की क्लास लगी अब राज्यसभा में 16-17 दिसंबर को चर्चा पर दुनिया की नजरें लगी है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, चर्चा-ए-संविधान, एट द रेटऑफ सांसद…जनता समझ नहीं पाई मकसद..।
साथियों बात अगर हम संविधान पर चर्चा में विपक्ष के नेता के संबोधन की करें तो, शनिवार को संसद में अपने भाषण की शुरुआत करते हुए उन्होंने सावरकर का ज़िक्र किया और कहा, सावरकर ने लिखा है कि भारत के संविधान के बारे में सबसे खराब चीज ये है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है। वेदों के बाद मनुस्मृति वो ग्रंथ है जो हमारे हिंदू राष्ट्र के लिए सबसे पूजनीय है और ये प्राचीन समय से हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज, विचार और व्यवहार का आधार बना हुआ है, आज जो मनुस्मृति कानून है उन्होंने जो कहा वो सावरकर के शब्द हैं।उन्होंने कहा, सावरकर ने अपने लेखन में साफ कर दिया है कि हमारे संविधान में भारतीयता का कोई अंश नहीं है। उन्होंने कहा है कि भारत को इस किताब (संविधान) से नहीं बल्कि इस किताब (मनुस्मृति) से चलाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, आज इसी की लड़ाई है, मैं सत्ता पक्ष के लोगों से पूछना चाहता हूं कि क्या आप सावरकर के शब्दों का समर्थन करते हैं, क्योंकि जब आप संविधान के पक्ष में संसद में बोलते हैं तो आप सावरकर का मजाक उड़ा रहे होते हैं, उनको बदनाम कर रहे होते हैं।
उन्होंने अपने संबोधन में इसके अलावा अग्निवीर, पेपर लीक, किसानों और उत्तर प्रदेश के बारे में भी कहा। उन्होंने कहा, आप महात्मा गांधी, पेरियार और दूसरे महान नेताओं की तारीफ करते हैं लेकिन हिचकिचाते हुए, सच तो ये है कि आप भारत को उसी तरह से चलाना चाहते हैं जैसे पहले चलाया जाता था। उन्होंने महाभारत के पात्र एकलव्य का ज़िक्र किया और कहा, जैसे एकलव्य ने तैयारी की थी, वैसे ही हिंदुस्तान के युवा सुबह उठकर अलग-अलग परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, लेकिन जब आपने अग्निवीर लागू किया, तब आपने उन युवाओं की उंगली काटी, जब पेपर लीक होता है, तब आप युवाओं का अंगूठा काटते हैं। उन्होंने दिल्ली की सरहदों के पास किसानों के विरोध प्रदर्शन के बारे में कहा आज आपने किसानों पर आंसू गैस चलाया है, किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग करते हैं, लेकिन आप अडानी-अंबानी को फायदा पहुंचाते हैं। वे करीब 25 मिनट बोले।उनके बयान पर युवा मामलों के मंत्री ने जवाब दिया। उन्होंने कहा- आप अंगूठा काटने की बात कर रहे हैं। आपकी सरकार में तो सिखों के गले काटे गए, आपको देश से माफी मांगनी चाहिए।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम द्वारा 14 दिसंबर 2024 को जवाबी संबोधन की करें तो, इस दौरान कई मुद्दों पर चर्चा की, उन्होंने कांग्रेस पर तो निशाना साधा ही, सरकार की उपलब्धियां भी गिनवाई और अनुच्छेद 370 पर भी बात की, उन्होंने परिवार का नाम नहीं लिया, लेकिन कहा कि कांग्रेस के एक परिवार ने हर स्तर पर देश को चुनौती दी है, उन्होंने कहा, इसलिए 75 साल में 55 साल एक परिवार ने राज किया, इसलिए देश में क्या-क्या हुआ ये जानने का सबको अधिकार है।उन्होंने कहा,1947 से 1952 तक इस देश में चुनी हुई सरकार नहीं थी।चुनाव नहीं हुए थे, एक अंतरिम व्यवस्था के रूप में खाका खड़ा किया गया था।
1952 के पहले राज्यसभा का भी गठन नहीं हुआ था, राज्यों में भी कोई चुनाव नहीं थे, जनता का कोई आदेश भी नहीं था उसके बावजूद 1951 में जब चुनी हुई सरकार नहीं थी, उन्होंने संविधान को बदला और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला किया गया, ये संविधान निर्माताओं का अपमान था। उन्होंने अपने संबोधन में जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी का नाम लिया और कहा कि करीब छह दशक में 75 बार संविधान बदला गया। जो बीज देश के पहले प्रधानमंत्री जी ने बोया था, उस बीज को खाद-पानी देने का काम एक और प्रधानमंत्री ने किया। 1971 में सुप्रीम कोर्ट का एक फै़सला आया था, उस फै़सले को संविधान बदलकर पलट दिया गया और1971 में संविधान संशोधन किया गया था। उन्होंने हमारे देश की अदालत के पंख काट दिए थे। पीएम ने पूर्व पीएम का नाम लेते हुए कहा, इंदिरा जी के चुनाव को गै़र नीति के कारण अदालत ने खारिज कर दिया और उनको एमपी पद छोड़ने की नौबत आई तो उन्होंने देश पर इमरजेंसी थोप दी, अपनी कुर्सी बचाने के लिए। इतना ही नहीं 1975 में 39वां संशोधन किया, उसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव के ख़िलाफ कोई कोर्ट में नहीं जा सकता।
उन्होंने शाहबानो मामले का ज़िक्र किया और कहा, यहां बैठे कई दलों के मुखिया को भी जेलों में ठूंस दिया गया था। राजीव गांधी जी ने संविधान को एक और गंभीर झटका दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो का जजमेंट दिया था। कोर्ट से एक वृद्ध महिला को उसका हक मिला था, राजीव गांधी ने शाहबानो की उस भावना को, सुप्रीम कोर्ट की उस भावना को, नकार दिया। उन्होंने वोट बैंक की राजनीति की ख़ातिर संविधान की भावना को बलि चढ़ा दिया। न्याय के लिए तड़प रही एक महिला की बजाय उन्होंने कट्टरपंथियों का साथ दिया। संसद में क़ानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फै़सले को एक बार फिर पलट दिया गया। उनकी सरकार देश में समान नागरिक संहिता लाने को कोशिश कर रही है।
देश में समान नागरिक संहिता के विषय पर भी संविधान सभा में चर्चा हुई थी बहस के बाद निर्णय लिया गया कि जो भी सरकार चुनकर आएगी वो इस पर निर्णय लेगी और इसे लागू करेगी। धार्मिक आधार पर बने पर्सनल लॉ को ख़त्म करने की वकालत की गई। उसके संविधान सभा की बहस में के.एम. मुंशी जी ने कहा था कि समान नागरिक संहिता को लाना राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि देश में यूनिफार्म सिविल कोड जल्द से जल्द लाना चाहिए। संविधान निर्माताओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए हम पूरी ताकत से समान नागरिक संहिता को लाने में लगे हुए हैं। पीएम ने लोकसभा में 11 संकल्प रखे ये संकल्प है। हम इसी के हिसाब से आगे बढ़ रहे हैं।
(1) सभी नागरिक और सरकार अपने अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करें।
(2) हर क्षेत्र और समाज को विकास का समान लाभ मिले, सबका साथ, सबका विकास’ की भावना बनी रहे।
(3) भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाए और भ्रष्टाचारियों की सामाजिक स्वीकार्यता समाप्त हो।
(4) देश के कानूनों और परंपराओं के पालन में गर्व का भाव जागृत हो।
(5) गुलामी की मानसिकता से मुक्ति मिले और देश की सांस्कृतिक विरासत पर गर्व किया जाए।
(6) राजनीति को परिवारवाद से मुक्त कर लोकतंत्र को सशक्त बनाया जाए।
(7) संविधान का सम्मान हो और राजनीतिक स्वार्थ के लिए उसे हथियार न बनाया जाए।
(8) जिन वर्गों को संविधान के तहत आरक्षण मिल रहा है, वह जारी रहे, लेकिन धर्म के आधार पर आरक्षण न दिया जाए।
(9) महिलाओं के नेतृत्व में विकास को प्राथमिकता दी जाए।
(10) राज्य के विकास के माध्यम से राष्ट्र के विकास को सुनिश्चित किया जाए।
(11) एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के लक्ष्य को सर्वोपरि रखा जाए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि चर्चा-ए-संविधान @सांसद….जनता समझ नहीं पाई मकसद! आम जनता को संविधान संशोधनों का इतिहास आरोप प्रत्यारोप पर नहीं बल्कि विजन 2047 के संविधान का रोडमैप जानने में रुचि है? लोकसभा में 13-14 दिसंबर 2024 संविधान चर्चा इतिहास की क्लास लगी? अब राज्यसभा में 16-17 दिसंबर को चर्चा पर दुनिया की नजरें लगी।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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