वाराणसी। इस साल चन्दन षष्ठी (चन्नन छठ) व्रत 24 अगस्त शनिवार को है। इस साल चन्दन षष्ठी व्रत का उद्यापन (मोख) भी कर सकते हैं। आइए जानते हैं व्रत का महत्व, पूजन विधि, संकल्प, पूजन सामग्री और मंत्र। चन्दन षष्ठी व्रत हर वर्ष भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। चन्दन षष्ठी का व्रत इस वर्ष सन् 2024 ई. 24 अगस्त शनिवार को है। इसे हल षष्ठी, ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ के नाम से भी जाना जाता है।
चन्दन षष्ठी का व्रत विशेष महत्व रखता है इस व्रत को विवाहित-अविवाहित महिलाएं कर सकती है। इस दिन महिलाएं पूरा दिन व्रत रखकर विशेष रूप से सूर्य एवं चंद्रमा की पूजा, कथा करके अथवा सुनकर रात्रि मे चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करती है। इस वर्ष चन्दन षष्ठी व्रत का उद्यापन (मोख) भी कर सकते हैं। कहा जाता है कि अगर व्रती ने चन्दन षष्ठी व्रत का उद्यापन किया है तो वह फिर ही किसी भी व्रत का उद्यापन कर सकती है सबसे पहले इस व्रत का उद्यापन करना होता है एवं मासिक धर्म की अवधि में स्त्रियों द्वारा स्पर्श, अस्पर्श, भक्ष्य, अभक्ष्य इत्यादि दोषों के परिहार के लिए इस व्रत का उद्यापन किया जाता है।
व्रत उद्यापन संकल्प :
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ………..मया कदाचित् रजसाक्रान्तेन भक्ष्याभक्ष्य पीतापीत स्पर्शास्पर्श तद् दोष परिहरार्थं चन्दन षष्ठी व्रतोद्यापन कर्मणि सूर्य चंद्रयो: देवयो: पूजनं करिष्ये।
इस व्रत के उद्यापन में विशेष रूप से 6 मंत्रो का हवन अवश्य करें वह निम्नलिखित इस प्रकार है :-
1. ॐ अश्विनीश्वराय स्वाहा।
2. ॐ रजोदोषहराय स्वाहा।
3. ॐ षष्ठीश्वराय स्वाहा।
4. ॐ रज: प्रवर्तकाय स्वाहा।
5. ॐ पुष्पावर्तकाय स्वाहा।
6. ॐ मासेश्वराय स्वाहा।
उद्यापन में श्रीगणेश, षोडशमातृका, पंच ओमकार, कलश, नवग्रह, श्रीलक्ष्मीनारायण जी का पूजन होम आदि किया जाता है। इस दिन को भगवान बलराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है। भगवान बलराम को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है जो क्षीर सागर में भगवान विष्णु के हमेशा साथ रहने वाली शैया के रूप में जाने जाते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान बलराम का प्रधान शस्त्र हल और मूसल हैं। इसी कारण उन्हें ‘हलधर’ भी कहा जाता है। इस व्रत में हल से जुते हुए अनाज व सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता है। कुछ राज्यों में हलषष्ठी व्रत महिलाएं अपने संतान की दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए करती हैं। इस दिन हलषष्ठी माता की पूजा की जाती है इस व्रत से जुड़ी तमाम कहानियां भी प्रचलित है।
व्रत उद्यापन पूजन सामग्री : चावल, केसर, सुपारी, नारियल, हवन, तिल, यव, शक्कर, देसी घी, पंचमेवा, मोली (लाल सूत्र), रुई, किशमिश, पंचरतनी, बुज्ज, यज्ञमाला, मधु, सर्वोषधि, लौंग, इलायची, यज्ञोपवीत, मुश्ककपूर, सरसो का तेल, पीसी हल्दी, कुशा, गंगाजल, दूप, सेती सरसों, आम के पते, पुष्प एवं पुष्प माला, लोहान, दीपक चप्पनी सहित, पंचगव्य, पंचामृत, समिधा, व्रत उद्यापन में 6 पटरी,1 सुहाग पटरी, सात बर्तन और चांदी के सात छोटे कट, फल, वस्त्र, मिठाई, छाता, टार्च, खड़ाऊ, सुहाग की सामग्री आदि का दान किया जाता है।
ज्योर्तिविद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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