पुस्तक समीक्षा : जवान

विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। युद्ध हो, कोई सीक्रेट ऑपरेशन हो या दुर्दांत आतंकवादियों का सफाया करना हो; भारतीय सेना के कमांडो अत्यंत कम समय में मुश्किल कार्य करने में दक्ष होते हैं। श्री राम प्रताप सिंह सर थल सेना के प्रशिक्षित कमांडों हैं। सेवानिवृत्ति के बाद भी अपने कमांडों कौशल को उन्होंने जीवित रखा है, बस कार्य क्षेत्र बदल गया है। पहले कारबाइन चलाते थे अब कलम चलाते हैं। उन्होंने पिछले कुछ ही वर्षों में 34 उपन्यास लिख डाले हैं। ‘जवान’ उनका 34वां उपन्यास है।

बचपन में मैंने ‘तेनालीराम’ धारावाहिक देखा था। उसमें तेनालीराम की आस्था और पूजा से खुश होकर भगवान उन्हें बुद्धि और धन नामक दो प्यालो में से एक चुनने को कहते हैं। शर्त यह कि एक ही प्याले को पीना है। होशियार तेनालीराम एक प्याले के द्रव को दूसरे में मिलाकर पी जाते हैं। इस तरह वह लक्ष्मी और सरस्वती दोनों का आशीर्वाद प्राप्त कर लेते हैं। जबकि ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी और सरस्वती का बैर है, दोनों एक साथ नहीं रह सकती।

लक्ष्मी और सरस्वती की तरह ही युद्ध और प्रेम भी बिल्कुल अलग और विपरीत भावनाएं हैं, सिक्के के दो पहलू हैं। युद्ध रोमांच पैदा करता है और प्रेम रोमांस। युद्ध की कहानी मजबूत कलेजे वालों को पसंद आती हैं और प्रेम गाथाएं कोमल दिल वालों के मन को भाती हैं।

तेनालीराम की तरह भारतीय सेना के मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री रेजीमेंट व सीमा सुरक्षा बल में सैन्य अधिकारी रहे श्री राम प्रताप सिंह सर ने युद्ध और प्रेम जैसी दो विपरीत भावनाओं का परफेक्ट ब्लेंड करके ‘जवान’ नामक प्याला तैयार किया है। इस प्याले में युद्ध की कड़वाहट है तो प्रेम की मिठास भी है। सैनिकों की शहादत के शूल हैं तो जाति-धर्म से ऊपर उठ चुके सच्चे प्यार के फूल भी हैं।

इस उपन्यास में एक तरफ जहां मैकेनाइज्ड इन्फेंटरी रेजीमेंटल सेंटर, अहमदनगर में जवानों के नौ महीने की कठोर प्रशिक्षण गतिविधियों का शब्दसः वर्णन है। आईएमए देहरादून के एक कैडेट की व्यस्त दिनचर्या का लेखा जोखा है। कमांडो कोर्स के दौरान रोंगटे खड़े कर देने वाले दंड विधान का वर्णन है। श्रीलंका में भारतीय सेना द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन पवन’ की विभीषिका और असफलता का चित्रण है और कारगिल युद्ध की घटनाओंका आंखों देखा हाल है। इसके साथ ही पूर्वोत्तर के आदिवासियों का विद्रोह और कश्मीर के ब्रेनवाश जिहादियों की काली करतूतों का क्रूर कथानक भी इसमें है। इस उपन्यास में देश के अंदर और देश के बाहर, पाकिस्तान के सैनिकों और पाकिस्तान परस्त आतंकवादियों से लोहा लेने की तमाम लोमहर्षक घटनाएं दर्ज हैं।

वहीं दूसरी ओर उपन्यास के नायक रुद्र और आराधना, रुद्र और सपना, अलीशा और मोहन जायसवाल तथा अलीशा और अमित की रोचक, रस भरी प्रेम कहानियां भी हैं। युद्ध की तरह प्रेम के भी कई रूप और रंग उपन्यास में दृष्टिगोचर हुए हैं। रुद्र और आराधना का प्रेम कृष्ण और रुक्मणी जैसा प्रेम है, रुद्र और सपना का प्रेम मीरा और कृष्ण का प्रेम है। अलीशा और मोहन जायसवाल के प्रेम में सिर्फ वासना है, स्वार्थ है तो अलीशा और अमित के प्रेम में धर्म की बेड़ियाँ हैं और अतीत के स्याह अनुभवों का खट्टापन भी है।

इस उपन्यास में एक गुरखा सैनिक हवलदार ज्ञान बहादुर तमांग की अप्रतिम वीरगाथा है तो अपनी बड़ी बहन के लिए अपने प्रेम का बलिदान कर देने वाली सपना का निश्छल प्रेम भी है। देश के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देने वाले कर्नल अजय की शौर्यगाथा है तो विकलांग होने पर अपने पति को अपनी बहन को सौंप देने का अदम्य साहस रखने वाली आराधना का अनुपम त्याग भी है । इस पुस्तक में एक नौजवान की सेना में जाने की जिद है तो एक सैनिक की अपने प्यार को पाने के लिए अधिकारी बनने हेतु तन-मन से की गई तैयारी भी है।

श्री राम प्रताप सिंह सर पहले सैनिक रहे हैं और अब सिविलियन हैं। इसी उपन्यास में एक जगह वह सैनिक और सिविलियन का अंतर स्पष्ट करते हुए लिखते हैं- “एक सिविलियन अपने स्वार्थ के लिए किसी की जान ले लेता है जबकि एक जवान दूसरों की रक्षा में अपनी जान दे देता है।”

इस उपन्यास में सेना की कुछ रोचक प्रचलित कहावतें भी पढ़ने को मिलती हैं, जो विशेषकर सिविलियन पाठकों को बड़ी रोचक लगेंगी। उदाहरण –
1. सेना का नियम है कि सैनिक को हमेशा व्यस्त रखो।
2. रंगरूट और बूट को जितना रगड़ो, उतना चमकता है।
3. सेना में भगवान भी अपनी मर्जी से पैदा नहीं हो सकते। कमांडर की अनुमति के बाद ही श्रीकृष्ण का जन्म होता है।
4. भारतीय फौज दुनिया की अकेली फौज है जो दारु पीने के साथ राम-राम, जय दुर्गे, जय गरुड़, जय बजरंगबली का नारा लगाती है।

इस उपन्यास के माध्यम से लेखक कुछ प्रचलित मिथक तोड़ते हुए लिखते हैं –
1. पुरुष को जरूर रोना चाहिए वरना सीने में जमा दर्द उन्हें जीने नहीं देता है।
2. किसी स्त्री और पुरुष का प्रेम में होकर सेक्स करना समाधि की अवस्था है।
3. किसी भी लड़ाई में नौजवान सैनिक ही आपको जितवाते हैं न कि अनुभवी सैनिक।

कालजयी उपन्यास ‘कोहबर की शर्त’ की तरह इस उपन्यास का नायक रुद्र भी सपना से कई रिश्ते रखता और निभाता है। पहले वह सपना का क्लासमेट, फिर दोस्त, बाद में जीजू और अंत में पति बन जाता है। बस अंतर यह है कि तमाम झंझावातों के बाद इस उपन्यास का लगभग सुखांत होता है।

उपन्यास के माध्यम से लेखक केवल कोरी कहानी और अपने सैन्य जीवन अनुभव ही नहीं लिखते बल्कि तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक स्थितियों पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट करते जाते हैं। ‘ऑपरेशन पवन’ जिसमें भारतीय सेवा के 1200 जवान शहीद हुए और 3000 जवान घायल हुए, उसे वह सरकार की एक बड़ी भूल मानते हैं।

इसके साथ ही फिल्मों में दिखाई जाने वाली हिंदू मुस्लिम भाईचारे को वह सिर्फ दिखावा मानते हैं। उन्होंने इस भाईचारे की हकीकत कश्मीर में अपनी नंगी आँखों से देखी है इसलिए वह लिखते हैं – “यह तथाकथित भाईचारे वहशीपन को छुपाने का एक पर्दा है ताकि हिंदू हमेशा गलतफहमी में रहे।”

इस उपन्यास की खास बात यह है कि लेखक किसी इमोशन से बचता नहीं है। वह सैनिक जीवन पर भी खुलकर लिखते हैं और प्यार तथा सेक्स पर भी। प्रेम और युद्ध दोनों पर वह अपनी बेबाक राय रखते हैं। अच्छाई-बुराई सभी कुछ ज्यों का त्यों रखकर निर्णय पाठकों पर छोड़ देते हैं।

आप भी युद्ध और प्रेम के अनूठे कॉकटेल से बने इस ‘जवान’ प्याले को सिप सिप करके पीजिए, मेरा मतलब है पढ़िए और इसके कभी गरम औऱ कभी नरम, कभी नीम और कभी शहद जैसे स्वाद और सुरूर का आनंद लीजिए।

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