Bihar: शिशुओं की देखभाल के लिए आशा पहुंचेंगी घर, स्वस्थ रखने की देंगी ‘टिप्स’

पटना। बिहार में बच्चों को कुपोषण से बचाने तथा उन्हें स्वस्थ रखने के लिए स्वास्थ्य विभाग अब नई पहल के तहत मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) को लगाने जा रहा है। आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर 3 से लेकर 15 माह तक के बच्चों की देखभाल करेंगी।

स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने बताया कि ‘घर जाकर देखभाल कार्यक्रम’ (एचबीवाईसी) की फिलहाल राज्य के 13 जिलों में शुरुआत की गई है। इसमें कटिहार, नवादा, शेखपुरा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, बेगूसराय, जमुई, औरंगाबाद, गया, सीतामढ़ी, बांका, खगड़िया एवं अररिया जिले शामिल हैं।

इन जिलों में कार्यक्रम की शुरुआत करने के बाद इस कार्यक्रम को बिहार के सभी जिलों में लागू किया जाएगा। आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर शिशुओं के स्वास्थ्य एवं पोषण का पूरा ख्याल रखेंगी। उन्होंने कहा कि आशा घर घर जाकर छोटे बच्चों में स्तनपान, टीकाकरण, स्वच्छता, पूरक आहार, एनीमिया एवं आहार विविधिता का ख्याल रखेंगी। साथ ही छोटे बच्चों में होने वाली संभावित स्वास्थ्य समस्या की पहचान कर उसके सही प्रबंधन के लिए माता-पिता को उचित सलाह भी देंगी।

पांडेय ने बताया कि इसे लेकर चिह्न्ति जिलों के आशा कार्यकर्ताओं और एएनएम को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। सरकार का मानना है कि इस कार्यक्रम से शिशुओं की बेहतर देखभाल होगी और उन्हें स्वस्थ रखा जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि गर्मी के दिनों में मुजफ्फरपुर सहित कई अन्य जिलों में एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से पीड़ित बच्चों में अधिकांश कुपोषित बताए जाते हैं।

विभाग के मुताबिक इस मिशन के तहत आशा कार्यकर्ता 3 माह से 15 माह तक के बच्चों के घर का 5 बार दौरा करेंगी, जिसमें 3 माह, 6 माह, 9 माह, 12 माह और 15 वें माह का दौरा शामिल होगा।

स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का कहना है कि इस विशेष कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बच्चों की मृत्यु दर में कमी लाना है। पिछले वर्ष के सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे में बिहार की शिशु मृत्यु दर 3 अंक घटकर राष्ट्रीय औसत के बराबर हो गई है। 2017 में बिहार की शिशु मृत्यु दर 35 थी, जो वर्ष 2018 में घटकर 32 हो गई। नवजात मृत्यु दर में भी 3 अंकों की कमी आई है।

बिहार की नवजात मृत्यु दर जो वर्ष 2017 में 28 थी, जो 2018 में घटकर 25 हो गई। 3 माह से लेकर 15 माह तक के बच्चों के लिए शुरू की गई गृह आधारित देखभाल कार्यक्रम से 5 साल के अंदर वाले बच्चों की मृत्यु दर में कमी संभव हो सकेगी।

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