भवानीपुर कॉलेज ने चित्रगुप्त की अदालत में महाभारत के सत्रह पात्रों से जिरह की

कोलकाता। भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज ने महाभारत के पात्रों की अपनी अपनी त्रुटियों और उपलब्धियों को “चित्रगुप्त की अदालत” कार्यक्रम में बतौर हर पात्र को सामने रखकर व्यक्तिगत रूप से जिरह की। कर्ण, कुंती, द्रोपदी, युधिष्ठिर, भीम, द्रोणाचार्य, गांधारी, दुशासन, भीष्म, शकुनि, अश्वत्थामा, अभिमन्यु, बर्बरीक आदि सत्रह पात्रों में विद्यार्थियों ने अपने-अपने पात्र के रूप में निजी वक्तव्य रखे।

भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज की कलेक्टिव टीम वॉक्स पॉपूली द्वारा आयोजित यह कॉलेज के छात्रों द्वारा आयोजित एक इंटरैक्टिव चर्चा रही जिसके माध्यम से महाभारत के महान पात्रों की अनंत यात्रा को देखने का अवसर है। कार्यक्रम “चित्रगुप्त की अदालत” इस कालजयी महाकाव्य के सांस्कृतिक प्रभाव की भावना का स्मरण और जश्न भी रहा। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. वसुंधरा मिश्र ने रामधारी सिंह दिनकर जी की लंबी कविता ‘कृष्ण की चेतावनी’ की शानदार आवृत्ति की जिसने उपस्थित सभी शिक्षकों और 50 विद्यार्थियों में उत्साहवर्धन किया।

‘चित्रगुप्त की अदालत’ छात्र-छात्राओं द्वारा पात्रों के चित्रण के माध्यम से महाभारत के विशिष्ट पात्रों के अंतर्मन की एक झलक है। कसिस शॉ, राजनंदिनी गुप्ता, सुचेतन भद्र के संचालन और प्रो. मीनाक्षी चतुर्वेदी के संयोजन में डीन ऑफिस के सहयोग से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। दिनांक बारह जून 2024 कॉन्सेप्ट हॉल में तीन घंटे तक चले इस कार्यक्रम के निर्णायक प्रसिद्ध साहित्य अध्येता प्रणब मुखर्जी रहे जिन्होंने हर पात्र को पहले प्रश्न दिए जैसे अर्जुन को बड़ा धनुर्धर माना जाता है, द्रोपदी उससे प्रेम करती थी, प्रश्न उठता है कि महाभारत में उसने द्रोपदी के साथ पांचों भाइयों के विवाह और चीर हरण के समय कोई प्रतिरोध क्यों नहीं किया।

कर्ण जैसे पराक्रमी का वध भी छल से किया, एकलव्य उससे आगे न आए किस बात का भय था आदि कई प्रसंग है जो अर्जुन के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने को प्रमाणित नहीं करते। सबसे बड़ा सत्य यह था कि वह कृष्ण की छत्रछाया में था। इसी तरह द्रोपदी का अग्नि से जन्म ही प्रतिशोध लेने के लिए हुआ था और गांधारी का ज्येष्ठ पुत्र राजा क्यों नहीं बना, युधिष्ठिर धर्मराज होते हुए भी द्युत खेलता है जिसे बुरा समझा जाता है और सत्य क्या है आदि प्रश्न उठाए गए जो आज भी प्रासंगिक हैं। डॉ. वसुंधरा मिश्र ने बताया कि प्रत्येक पात्र को अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए ढाई मिनट का समय दिया गया।

प्रो. दिलीप शाह ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि महाभारत महाकाव्य हर काल और देश का प्रश्न, सांस्कृतिक, नैतिक मूल्यों और आदर्शों की विरासत है। प्रो. शाह ने प्रणब मुखर्जी को उत्तरीय पहना कर सम्मानित किया। यह कार्यक्रम हिंदी, अंग्रेजी दोनों भाषाओं में किया गया। प्रो. प्रणब ने अध्ययन को महत्वपूर्ण मानते हुए विद्यार्थियों को कहा कि महाभारत के साथ-साथ भारतीय वांग्मय को अधिक से अधिक पढा़ जाना चाहिए।

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