लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो,
शायद इस जन्म में मुलाकात हो न हो।
श्रीराम पुकार शर्मा, कोलकाता । विगत कई दशकों से सिर्फ भारत ही नहीं, वरन विश्व के अधिकांश संगीत प्रेमियों की आवाज बनी भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका ‘भारत रत्न’ से सम्मानित ‘भारत की बेटी’ और सरस्वती वरदपुत्री स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी का 92 वर्ष की अवस्था में आज 6 फरवरी, 2022 को मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। यह संगीत प्रेमियों के लिए एक ह्रदय विदारक खबर से कम नहीं है। हम ईश्वर से कर्मन करते हैं कि स्वर कोकिला दिव्यात्मा को अपने स्वर्गीय दिव्यासन प्रदान कर परम शांति प्रदान करें और साथ ही साथ उनके परिजन को इस सांसारिक विशद आघात को सहन करने की शक्ति भी प्रदान करें।
भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका ‘भारत रत्न’ से सम्मानित ‘भारत की बेटी’ और सरस्वती वरदपुत्री स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी का जन्म 28 सितंबर, 1929 को इंदौर में एक गोमंतक मराठा परिवार में पंडित दीनानाथ मंगेशकर व शेवंती मंगेशकर के मध्यवर्गीय परिवार में सबसे बड़ी बेटी के रूप में हुआ था। लता जी का वास्तविक नाम ‘हेमा मंगेशकर’ था, बाद में उनका नाम ;कुमारी लता मंगेशकर’ रखा गया। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर रंगमंच के कलाकार और शास्त्रीय गायक थे। उनकी इच्छा भी थी कि लता भी संगीत के क्षेत्र में काम करे। इसलिए लता जब पाँच साल की हुई तभी उन्होंने लता और उनकी तीनों बहनों उषा, मीना और आशा तथा भाई हृदयनाथ मंगेशकर को शास्त्रीय संगीत पढ़ने भेजा। कालांतर में ये सभी मंगेशकर भाई-बहनों ने संगीत को ही अपनी आजीविका के मार्ग के रूप में चयन किया। वैसे भी उनका प्रथम गुरु उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर ही थे।
लता जी 1938 में शोलापुर के नूतन थिएटर में अपनी पहली सार्वजनिक उपस्थिति दी, जहाँ उन्होंने ‘राग खंबावती’ और दो मराठी गीत गाए। इसके लिए उन्हें 25 रूपये का इनाम भी प्राप्त हुआ था। कालांतर में उस्ताद अमानत अली खान, अमानत खान देवस्वाले, गुलाम हैदर और पंडित तुलसीदास शर्मा भी उनके सक्षम गुरु बने। उन्होंने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी लगभग पचास हजार से भी अधिक गाने गाये हैं। लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है।
लेकिन लता जी अभी मात्र तेरह वर्ष की ही थीं, कि तभी 1942 में उनके पिता की हृदय रोग के कारण मृत्यु हो गई। फलतः घर में पैसों की बहुत किल्लत भयानक रूप में आन खड़ी हुई। चुकी लता जी को बचपन से ही फिल्मों में अभिनय बहुत पसंद नहीं था, लेकिन भाई बहिनों में सबसे बड़ी होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी का बोझ भी उनके कोमल कंधों पर आ गई। लेकिन प्रकृति का यह नियम है कि जब वह कुछ छीनता है, तो कुछ दे भी देता है। ऐसे विकट समय में लता जी के परिवार के लिए देवदूत के स्वरूप में सामने आये उनके पिता के एक मित्र मास्टर विनायक जी और उन्होंने अपनी योग्यता और अपने साधन के अनुकूल इस पूरे परिवार को संभाला तथा लता मंगेशकर जी को एक गायिका बनाने के क्षेत्र में बहुत कोशिश की।
अपने पारिवारिक अर्थगत परिस्थितियों से निपटने के लिए पैसे आवश्यक थे। अतः उन्होंने न चाहते हुए भी फिल्मों में अभिनय के लिए तैयार हो गईं और कुछेक हिंदी और मराठी फ़िल्मों में अभिनय भी कीं। अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फ़िल्म मराठी में ‘पाहिली मंगलागौर’ (1942) रही। बाद में उन्होंने ‘माझे बाल’, ‘चिमुकला संसार’ (1943), ‘गजभाऊ’ (1944), ‘बड़ी माँ’ (1945), ‘जीवन यात्रा’ (1946), ‘माँद’ (1948), ‘छत्रपति शिवाजी’ (1952) आदि में अभिनय की थीं। इनमें से कई फिल्मों में उन्होंने खुद की अपनी भूमिका के लिए और अपनी बहन आशा के लिए पार्श्वगायन भी किया था।
पार्श्वगायिकी के क्षेत्र में उस समय प्रवेश पाना लता जी के लिए सरल कार्य न था। इस क्षेत्र में उस समय के जानी-मानी पार्श्वगायिकाएँ नूरजहाँ, अमीरबाई कर्नाटकी, शमशाद बेगम और राजकुमारी आदि की तूती बोलती थी। उस्ताद गुलाम हैदर, जिन्होंने पहले नूरजहाँ की खोज की थी, ने लता जी की प्रतिभा को पहचाना और फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी के पास ‘शहीद’ नामक फिल्म में लता को लेने की सिफारिश करने लगे। लेकिन मुखर्जी ने यह कहकर लता जी मना कर दिया कि उनकी आवाज जरुरत से ज्यादा सुरीली है। फिर मास्टर विनायक जी की कोशिश से उन्हें 1942 में मराठी फिल्म ‘किटी हसाल’ के लिए अपना पहला गाना ‘नाचू या गड़े, खेलो सारी मणि हौस भारी’ गाया, लेकिन दुर्भाग्यवश बाद में इसे फिल्म से हटा दिया गया। तत्पश्चात मराठी फिल्म ‘पहिली मंगला-गौरिन’ के लिए, उन्होंने गीत, ‘नताली चैत्रची नवलई’ (1942) गाया। फिर उन्होंने ‘गजाभाऊ’ फिल्म के लिए ‘माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू’ पहला हिंदी गाना गया (1943) था।
लेकिन उसकी प्रतिभा से वसंत जोगलेकर काफी प्रभावित हुये और सन 1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फिल्म ‘आपकी सेवा में’ का एक गीत गाने के लिए लता जी से मौका दिया, जो काफी चर्चित हुई और उनकी गायिकी प्रतिभा को पहचाना दिलाया। फिर फिल्म ‘मजबूर’ का ‘दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोरा’ और ‘दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने’ जैसे गानों ने लता जी को प्रसिद्ध कर दिया। इसके बाद तो उनके पास एक से एक गाने के ऑफर आने लगे। 1949 में लता जी को एक और ऐसा ही मौका फ़िल्म “महल” के ‘आयेगा आनेवाला’ गीत से मिला। वह गीत उस समय अत्यंत ही सफल रही थी और लता जी तथा उस फिल्म की अभिनेत्री मधुबाला दोनों के लिए बहुत शुभ साबित हुई। इसके बाद पार्श्वगायिकी के क्षेत्र में लता जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
ऐसे ही समय लता जी ने अभिनेता दिलीप कुमार के परामर्श पर शुद्ध उर्दू के उच्चारण हेतु एक उर्दू शिक्षक शफी से उर्दू सीखीं। पहले तो वह अपने पूर्ववर्ती गायकों और गायिकाओं की शैली को अपनाई, पर बाद में उन्होंने स्वयं अपनी अलग शैली बनायीं। लता जी ने संगीत के क्षेत्र में सुरीलापन, लचकदारी के साथ ही शास्त्रीय संगीत की रागादानी, राजस्थानी, पहाड़ी, पंजाबी, बंगाली आदि लोकगीतों की शैली को भी अपनायी।
अपनी गायिकी के सात दशक के लंबे करियर में, लता जी ने कई भारतीय भाषाओं में 30,000 से अधिक गाने गाए हैं। उन्होंने समय समय पर गायिकी के अतिरिक्त फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी अपने आप को परखा और वह भी काफी सफल रहा है। वडाई (मराठी 1953), झांझर (हिंदी 1953), कंचन (हिंदी 1955), और लेकिन (हिंदी 1990) उन्होंने ये चार फिल्मों का निर्माण किया है, जिसमें संगीत और अभिनय का अद्भुत संयोग दिखाई देता है और चार फ़िल्में ही उन्हें एक सफल फिल्म निर्माता के रूप में भी स्थापित करती हैं।
उन्होंने अपने एकाकी जीवन के संदर्भ में एक साक्षात्कार में स्वयं ही कहा था कि हमारी छोटी आयु में ही हमारे पिता का निधन हो गया था। ऐसे में घर के सदस्यों की जिम्मेदारी मुझ पर थी। ऐसे में कई बार शादी का ख्याल आता भी था, पर उस पर अमल नहीं कर सकती थी। बेहद कम उम्र में ही मैं काम करने लगी थी। सोचा कि पहले सभी छोटे भाई-बहनों को व्यवस्थित कर दूँ। फिर बहनों की शादी हो गई। उनके बच्चे हो गए। तो उन्हें संभालने की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। इस तरह से वक्त दर वक्त निकलता चला गयाऔर शादी का विचार हमेशा हमेशा के लिए मिट गई। अब तो एकाकी जीवन में ही संतुष्टि का अनुभव करती हूँ।’
लता मंगेशकर जी फिल्मों में गाने के साथ ही साथ अपने श्रोताओं से मुखातिब होने लिए देश-विदेशों में स्टेज शो भी करती रही थीं। लता मंगेशकर जी बाद में फ़िल्मो में गाना के अतिरिक्त स्टेज शो पर ध्यान देने लगी। 1962 के चीन-भारतीय युद्ध की पृष्ठभूमि के खिलाफ नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉo राधाकृषणन और तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू की उपस्थिति में लता मंगेशकर जी ने 27 जनवरी, 1963 को कवि पंडित प्रदीप कुमार द्वारा रचित और सी. रामचन्द्रन द्वारा संगीत से सजाये ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ नामक एक गैर-फ़िल्मी देशभक्ति गीत गाई। इस गीत को सुनकर मंच पर विराजमान तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू आँसू बहाने लगे थे और स्टेडियम में उपस्थित समस्त श्रोताओं की आँखें नम हो गई थीं। यह लता मंगेशकर जी के स्वर का कारुणिक जादू ही था।
लता मंगेशकर जी अपने गीत-संगीत को कभी अपना पेशा नहीं, वरण संगीत की देवी की आराधना ही मानती रही थीं। वे हमेशा ही दिखावेपन से दूर ही रहती थीं। चाहे स्टूडियो में गाने के रिकॉर्डिंग हो या फिर किसी स्टेज पर गायिकी, वह हमेशा नंगे पाँव गाना गाती थीं। वह कभी भी साज-श्रृंगार (मेकअप) नहीं करती थीं, उन्हें मेकअप करना पसंद भी नहीं था। वह किसी तरह का धूम्रपान और शराब का सेवन नहीं करती थीं। इस प्रकार गीत गाने को वह अपना कोई पेशा न मानकर सर्वदा उसे पूजा ही मानती रहीं। इस प्रकार वह गीत-संगीत की एक परम आराधिका रही थीं।
फिल्मों में उनके विशेष योगदान को देखते हुए अब तक अनगिनत पुरस्कारों और सम्मानों से उन्हें सम्मानित किया गया था। अब तो लता मंगेशकर जी स्वयं किसी भी सम्मान से ऊपर बन गयी थीं। उनका नाम ही एक तरह से सम्मान है। वह एक मात्र एकमात्र ऐसी जीवित व्यक्ति थीं, जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते रहे हैं। लता मंगेशकर जी को सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्मविभूषण, दादा साहब फाल्के अवॉर्ड समेत दर्जनों पुरस्कार से नवाजा जा चुका था, जिनमें से फिल्म फेयर पुरस्कार (छः बार), राष्ट्रीय पुरस्कार (तीन बार), महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (दो बार), पद्म भूषण (1969) गिनीज़ बुक रिकॉर्ड (1974), दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1989), फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार (1993), स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार (1996), राजीव गान्धी पुरस्कार (1997), एन.टी.आर. पुरस्कार (1999), पद्म विभूषण (1999), ज़ी सिने का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार (1999), आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार (2000), स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार (2001), भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” (2001), नूरजहाँ पुरस्कार (2001), महाराष्ट्र भूषण (2001) आदि।
भारतीय संगीत में उनके योगदान के लिए श्रद्धांजलि के रूप में, भारत सरकार ने उन्हें 2019 में उनके 90 वें जन्मदिन पर “राष्ट्र की बेटी” की उपाधि से सम्मानित किया था।
हम एक बार फिर से उस दिव्य स्वर कोकिला की दिवंगत आत्मा की परमगति हेतु ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। ईश्वर उनकी दिव्यात्मा को अपने हृदय में शरण प्रदान करें।
श्रीराम पुकार शर्मा
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