बसन्त पर्व वाग्देवी भवन में हुआ वाग्देवी पूजन, व्याख्यान एवं काव्य पाठ

पद्मश्री से सम्मानित होने जा रहे विद्वान डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित का सारस्वत सम्मान हुआ

उज्जैन। बसंत पंचमी पर्व के पावन अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के वाग्देवी भवन में दिनांक 14 फरवरी, बुधवार को मध्याह्न में हिंदी अध्ययनशाला, ललित कला अध्ययनशाला एवं पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा वाग्देवी पूजन किया गया। इस अवसर पर महाप्राण निराला जयंती उत्सव, विशेष परिसंवाद एवं काव्य पाठ हुआ। प्रमुख अतिथि सांसद अनिल फिरोजिया थे। अध्यक्षता कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार ने की। सारस्वत अतिथि वरिष्ठ विद्वान डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ समाजसेवी संजय अग्रवाल, प्रो. हरिमोहन बुधौलिया, कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा आदि ने परिसंवाद में विचार व्यक्त किए।

वाग्देवी भवन में आयोजित वाग्देवी पूजन कार्यक्रम में बड़ी संख्या में उपस्थित जनों को सम्बोधित करते हुए माननीय सांसद अनिल फिरोजिया ने कहा कि वसन्त पर्व वाग्देवी की आराधना से महिमाशाली है। विद्या प्रेमी महान शासक राजा भोज द्वारा स्थापित वाग्देवी की प्रतिमा और भोजशाला पूरी दुनिया को आकर्षित करती है। जगत में सृजनात्मकता वाग्देवी सरस्वती की कृपादृष्टि से ही सम्भव हुई है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि बसंत ऋतु में प्रकृति सृजन का उल्लास मनाती है। यह पतझड़ के बाद नई बहार आने का प्रतीक है। बसंत पंचमी पर सरस्वती का पूजन भारतीय ज्ञान परंपरा के उत्कर्ष को प्रमाणित करता है। वर्तमान में नई पीढ़ी को पश्चिमी संस्कृति के दुष्प्रभाव से मुक्त करने की आवश्यकता है।

सारस्वत अतिथि डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित ने कहा कि वाग्देवी सरस्वती की महिमा अपार है। प्राचीन ग्रंथों में वाग्देवी के चार चरण बताए गए हैं, ध्वनि वर्ण, पद और वाक्य। व्याकरण शास्त्रियों के अनुसार वर्णों का जैसे ही उच्चारण किया जाता है, वे जीवित हो जाते हैं, उनमें प्राण आ जाते हैं। वाणी की प्राणवत्ता तब और बढ़ जाती है जब वह साहित्य के माध्यम से सामने आता है।

कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अपने व्याख्यान में कहा कि बसंत समऋतु का परिचायक है, यह विषमता से मुक्ति और समानता का सन्देश देती है। वसन्त पर्व देव, ऋषि, सर्जक और साधारण जन सभी को समभाव से आह्लादित करता है। वाग्देवी सृजन के साथ पवित्रता, शुद्धि, समृद्धि और शक्ति प्रदाता हैं। उनकी कृपा से ही मनुष्य में कला, विद्या तथा प्रतिभा का आलोक उत्पन्न होता है। महाप्राण निराला ने वाग्देवी की अपार महिमा को नए रूपों में प्रकट किया है। निराला द्वारा सरस्वती की आराधना का तात्पर्य है रसानुभूति रूप सौंदर्य को महत्व देना। वसंत को प्रेम करने का अर्थ है नव सृजन और सर्वव्यापी सौंदर्य को प्रेम करना।

कार्यक्रम में पद्मश्री से सम्मानित होने जा रहे प्रसिद्ध विद्वान एवं साहित्यकार डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित को शॉल, श्रीफल, साहित्य और स्मृति चिन्ह अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान विक्रम विश्वविद्यालय की ओर से अतिथियों द्वारा किया गया। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षरवार्ता के विशेषांक का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। अंक का विमोचन प्रधान संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं डॉ. मोहन बैरागी द्वारा करवाया गया। आयोजन में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि अशोक भाटी, संतोष सुपेकर, डॉ. नेत्रा रावणकर, डॉ. मोहन बैरागी द्वारा काव्य पाठ किया गया। प्रारम्भ में सरस्वती वंदना श्यामलाल चौधरी ने की।

विमर्श एवं काव्यपाठ सत्र में प्रो. गीता नायक, रासेयो समन्वयक डॉ. विजय वर्मा, प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा, डीएफओ किरण बिसेन, वृक्ष मित्र सेवा समिति के संयोजक अजय भातखंडे, प्रो. डी.डी. बेदिया, डॉ. प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ. परिमिता सिंह, डॉ. हीना तिवारी, डॉ. महिमा मरमट आदि सहित विश्वविद्यालय के अनेक विभागाध्यक्ष, शिक्षकों, साहित्यकारों, संस्कृति कर्मियों, प्रबुद्धजनों और युवाओं ने सहभागिता की। संचालन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ. नेहा माथुर ने किया।

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