बातें बाइस्कोप की…गाना हिट होने के बावजूद मोहम्मद रफ़ी ने गाने का पारिश्रमिक नहीं लिया था

श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’, खड़गपुर । किस्सा कुछ यूं है कि अपने समय के दिग्गज संगीतकार नौशाद सन् 1960 की फिल्म ‘कोहिनूर’ के लिए राग हमीर पर आधारित एक गीत बनाने जा रहे थे पर फिल्म के निर्माता इस गाने को न बनाने की सलाह दे रहे थे। उनका मानना था कि यह गाना बहुत ज्यादा शास्त्रीय हो जाएगा और दर्शकों को पसंद नहीं आएगा। इस तरह फिल्म-निर्माता इस गाने की रचना के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे। इस बात की खबर महान गायक मोहम्मद रफ़ी जी को भी हुई। वैसे ऐसा कम ही होता था कि वो किसी बात पर दखलअंदाजी करते थे। पर उन्हें संगीतकार नौशाद की काबिलियत पर पूरा भरोसा था इसलिए उन्होंने निर्माता से कहा कि यदि यह गाना दर्शकों को पसन्द नहीं आया तो वे गाने का पारिश्रमिक नहीं लेंगे।

गाना बना और फिल्म प्रदर्शित हुई, तो लोगों ने इस गाने को भरपूर प्यार दिया और गाना बेहद लोकप्रिय हुआ। आज 62 साल बीत जाने के बाद भी इस गाने की लोकप्रियता कम नहीं हुई। यह एक कालजयी रचना है। साथियों, अब तक आप समझ ही चुके होंगे कि मैं किस गाने की बात कर रहा हूं। जी हां, महान गायक मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया गया वह गाना था — ‘मधुबन में राधिका नाचे रे, गिरधर की मुरलिया बाजे रे…।’

Shyam saluawala
श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’

इस गाने से जुड़ा एक छोटा- सा दिलचस्प किस्सा भी बताता चलूं। इस गाने के दृश्य में दिलीप कुमार सितार बजाते हुए दिखाई देते हैं। नौशाद जी ने सोच रखा था कि इसके लिए सितार वादक के बजाते हुए हाथ का क्लोज अप ले लिया जाएगा, जिससे लगेगा कि सितार दिलीप कुमार बजा रहे हैं। पर दिलीप कुमार इस सोच से इत्तफाक नहीं रखते थे। इसलिए उन्होंने इस गाने की शूटिंग को सबसे आखिर में रखने को कहा, ताकि वे उतने समय में दृश्य के लिए आवश्यक सितार बजाना सीख जाए। इस तरह उन्होंने खुद सितार बजाते हुए उस दृश्य का फिल्मांकन किया, तो ये था दिलीप कुमार का अभिनय के प्रति लगन और समर्पण। यूं ही कोई अभिनय सम्राट नहीं कहलाता।IMG-20221025-WA0002

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 + two =