कुंडली में सूर्य शनि युति शुभाशुभ फल

वाराणसी। सूर्य को शनि का पिता माना गया है। शनिदेव अपने पिता सूर्य से शत्रु का भाव रखते हैं इसी कारण जब भी कुंडली में इनकी युति होती है तो इनके अशुभ फल जातक को मिलते हैं। इनके आपसी विरोध का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि जिस राशि मे सूर्य उच्च के होते हैं शनि वहां नीच हो जाते हैं और जहाँ तुला में शनि उच्च के होते हैं वहां सूर्य नीच के हो जाते हैं। इन्हीं कारणों से सूर्य शनि का योग ज्योतिष में काफी बुरे फलदेने वाला बताया गया है। इसका एक कारण ये भी है कि सूर्य जहाँ रौशनी का कारक है वंही शनि अँधेरे का कारक है।

रौशनी अँधेरे को खत्म कर देती है इस प्रकार इन दोनों का योग कभी नही हो पाता। एक के खत्म होने पर दुसरे का समय आता है। सूर्य जो कि राजा का कारक ग्रह होता है तो शनि देव को दासत्व का कारक ग्रह माना गया है। सूर्य गेहू होता है तो शनि मांस का कारक ग्रह माना गया है। ऐसे में इंसान यदि गेहू और मांस का सेवन एक साथ करता है तो उसे विभिन्न बीमारियों का सामना करना पड़ जाता है।

सूर्य सात्विकता और शुभता फ़ैलाने वाला, सुलभ दृष्ट, प्रकाशवान व ज्वलंत ग्रह है। यह व्यक्ति के जीवन में प्रकाश फैलाता है। जीवनी शक्ति, पिता, सफलता, स्वास्थ्य, आरोग्य, औषधि आदि का कारक है। इसका आंखों की ज्योति, शरीर के मेरूदंड, तथा पाचन क्रिया पर प्रभुत्व है, वहीँ शनि को तामसिक और कठोर ग्रह माना जाता है, यह प्रकाशहीन और ठंडा ग्रह है, जो आलस, गरीबी, लंबी बीमारी और मृत्यु का मुख्य कारक है।

शनि एक राशि का गोचर ढाई वर्ष में पूरा करता है, जो कष्ट, दुःख और हानि दर्शाते हैं, अतः उसे नैसर्गिक पापी ग्रह की संज्ञा दी गई है, यह व्यक्ति के जीवन में संघर्ष और अंधकार पैदा करता है। प्रकाश और अन्धकार का मिलन होने के परिणाम बड़े विचित्र होते हैं। इससे सूर्य भी दूषित होता है और शनि भी दूषित होता है।

यदि सूर्य शनि की युति हो तो पिता और पुत्र में वैचारिक मतभेद बने रहते हैं। सूर्य-शनि की युति के फलादेश का अध्ययन दर्शाता है कि शनि के दुष्प्रभाव से युति वाले भाव तथा उससे सप्तम भाव के फलादेश में न्यूनता आती है। यह युति सूर्य के कारकत्व पिता की स्थिति, उनका स्वास्थ्य तथा जातक के अपने कार्यक्षेत्र तथा मान-सम्मान में कमी करती है। जातक के अपने पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। सूर्य के अधिक निर्बल होने पर पिता का साया जल्दी उठ जाता है या जातक अपने पिता से अलग हो जाता है। इसी प्रकार संबंधियों से भी अलगाव होता है।

स्वास्थ्य में भी गड़बड़ रहती है। वाणी में संयम नहीं रह पाता है, जिससे काम बिगड़ सकते हैं। धन संबंधी परेशानियां भी हो सकती हैं। सूर्य शनि के एक साथ होने के कारण पिता पुत्र के संबंधों में समस्या पैदा होती है इस युति के कारण वैवाहिक जीवन खराब होता है। कभी-कभी दो विवाहों के योग भी बन जाते हैं। पिता और पुत्र का आपसी व्यवहार अच्छा नहीं होता और कभी कभी एक दूसरे से दूर हो जाते हैं। कई बार लाख प्रयास करने पर भी पिता या पुत्र का सुख नहीं मिलता और कभी कभी पिता पुत्र में से एक ही उन्नति कर पाता है, अतः कुछ आचार्य इस युति को ‘विच्छेदकारी योग की संज्ञा देते हैं।

सूर्य और शनि पिता-पुत्र होने पर भी परस्पर शत्रुता रखते हैं। वैसे भी प्रकृति का विचार करें तो ज्ञान और अंधकार साथ मिलने पर शुभ प्रभाव नहीं देते, सूर्य-शनि युति प्रतियुति जीवन को पूर्णत: संघर्षमय बनती हैं। विशेषत: जब यह युति लग्न, पंचम, नवम या दशम में हो व दोनों (सूर्य-शनि) में से कोई ग्रह इन भावों का कारक भी हो तो यह योग जीवन में विलंब लाता है। बेहद मेहनत के बाद, कठिनाई से सफलता आती है। पिता-पुत्र में मतभेद हमेशा बना रहता है और एक दूसरे से दूर रहने के भी योग बनते हैं।

सतत संघर्ष से ये व्यक्ति निराश हो जाते हैं, डिप्रेशन में भी आ सकते हैं। यदि शनि उच्च का हो व कारक हो तो 36वें वर्ष के बाद, अपनी दशा-महादशा में सफलता जरूर देता है। यह युति होने पर व्यक्ति को सतत परिश्रम के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। पिता से मतभेद टालें, ज्ञानार्जन करें, आध्यात्मिक साधना से अपना मनोबल मजबूत करना चाहिए। सूर्य व शनि शांति के अन्य उपाय करने चाहिए।
सूर्य-शनि के अशुभ योग के लिए उपाय : “शिव पञ्चाक्षरि” मंत्र को पढ़ते हुए भगवान शिव की पूजा करें और शिवलिंग पर जलाभिषेक करें।

ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848

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