पारो शैवलिनी, मिहिजाम (झारखंड) : निर्मल महतो की हत्या का रहस्य आज भी बरकरार है, क्यों?1 987 में आज ही के दिन यानि 8 अगस्त को आंदोलनकारी निर्मल महतो की जब हत्या की गयी थी उस समय वो मात्र 36 साल के थे। उनकी हत्या एक राजनीतिक षडयंत्र थी, यह बिल्कुल स्पष्ट है। मगर, इनकी हत्या के 34 साल बाद भी मामले को पुलिस फाइल से बाहर नहीं निकाला जा सका यह अब तक के सभी झारखण्ड सरकार की विफलता ही कही जा सकती है।
बताते चलें,1950 में 25 दिसम्बर को जमशेदपुर में जन्में निर्मल महतो अपने छात्र जीवन से ही नेता वाली छवि बनाकर जनप्रिय हो चुके थे। आगे चलकर निर्मल झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के प्रखर व प्रमुख नेता हुए। आजसू के गठन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही। उनका एक ही सपना था, अलग झारखण्ड राज्य की स्थापना करना। ताकि झारखण्ड के लोगों को शोषण, उत्पीड़न, अत्याचार व भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाई जा सके।
इसके लिए भी चल रहे आंदोलन में निर्मल महतो सक्रिय भूमिका निभाई। किसी भी गलत आचरण के खिलाफ आवाज उठाने वाले वाले निर्मल महतो तत्कालीन बिहार सरकार के लिए सिरदर्द बन चुके थे। अंजाम मिला इनकी बेरहमी से हत्या के रूप में।
अगर इनकी हत्या के रहस्य पर से पर्दा हटाया जा सके तो यही होगी उनके प्रति झारखण्डवासियों की सच्ची श्रद्धांजलि।