अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। यह स्तंभ न केवल समाज को जागरूक करता है, बल्कि सत्ता और समाज के बीच संवाद का एक सशक्त माध्यम भी है। बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या ने इस स्तंभ पर एक गहरी चोट पहुंचाई है। यह घटना केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा आघात है। यह समय है कि सरकार इस घटना के पीछे छिपे अपराधियों पर अंकुश लगाने और समाज में ऐसे हमलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।
मुकेश चंद्राकर एक समर्पित पत्रकार थे, जिन्होंने अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए समाज में सुधार लाने और सच्चाई को उजागर करने का कार्य किया। उनकी हत्या ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सत्य को उजागर करने की कीमत चुकानी पड़ती है और यह कीमत कभी-कभी एक ईमानदार पत्रकार की जान होती है। जब ऐसे पत्रकार, जो निस्वार्थ भाव से समाज को व्यवस्थित करने और बेहतर बनाने का कार्य करते हैं, हिंसा का शिकार बनते हैं, तो यह पूरे समाज के लिए एक चिंता का विषय बन जाता है।
इस तरह की घटनाएं यह संकेत देती हैं कि अपराधियों का मनोबल बढ़ रहा है। वे इस बात से पूरी तरह वाकिफ हैं कि सच्चाई को दबाने के लिए हिंसा का सहारा लिया जा सकता है। यही कारण है कि पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं। मुकेश चंद्राकर की हत्या ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या हम अपने समाज में उन ताकतों को खुली छूट दे रहे हैं जो सच्चाई को दबाना चाहते हैं?
इस घटना ने समाज के सभ्य और जागरूक लोगों को झकझोर दिया है। यह एक ऐसा समय है जब हमें न केवल हत्या की निंदा करनी चाहिए, बल्कि अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई की भी मांग करनी चाहिए। अगर समाज के जिम्मेदार नागरिक इस घटना पर मौन रहते हैं, तो यह अपराधियों के हौसले को और बढ़ावा देगा। सभ्य समाज में ऐसी घटनाओं के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वे पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। यह सुनिश्चित करना होगा कि सच्चाई की आवाज को दबाने वाले अपराधियों को कड़ी सजा मिले। इसके लिए कानूनी ढांचे को मजबूत करना होगा और पत्रकारों को ऐसी सुरक्षा देनी होगी, जिससे वे बिना किसी डर के अपने कार्य को अंजाम दे सकें।
मुकेश चंद्राकर की हत्या केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं है, यह लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज की आत्मा पर हमला है। हमें मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि यह घटना आखिरी हो। यह तभी संभव है जब अपराधियों पर सख्त कार्रवाई की जाए और पत्रकारों को ऐसा माहौल दिया जाए जिसमें वे बिना किसी भय के काम कर सकें।
अंत में, यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम एक ऐसा समाज बना रहे हैं, जहां सच्चाई और न्याय के लिए लड़ने वालों की हत्या कर दी जाती है? यदि हां, तो यह हमारे समाज की असफलता है। हमें इस असफलता को जीत में बदलने के लिए आवाज उठानी होगी। मुकेश चंद्राकर के बलिदान को व्यर्थ न जाने देने का यह सबसे अच्छा तरीका है।
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