अपना गुणगान खुद करने वाले : डॉ लोक सेतिया

इसको पागलपन कहते हैं अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना। हमारा कौमी तराना यही है शान से गाते हैं सारे जहां से अच्छा। बड़े बढ़ाई ना करें बड़े ना बोलें बोल , रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरो मोल। बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना तो मुझ से बुरा न कोय। रहीम और कबीर कह गये हम समझे नहीं रटते रह गये। हम ऐसे लोग हैं जो अपनी सूरत को कभी दर्पण में सामने रख कर देख कर विचार नहीं करते कि हम कितने डरावने चेहरे वाले हैं अच्छाई और खूबसूरती का मेकअप या मुखौटा लगाकर भले बने रहते हैं।

मन में कालिख़ और स्वार्थ लोभ मोह अहंकार भरा है मगर हाथ में माला है मनके फेरते रहते हैं गिनती करते हैं लेकिन जपते जपते जो कहना करना भूल जो नहीं करना चाहिए वही करने को सोचते रहते है राम छोड़ मरा मरा बोलने लगते हैं। हर कोई खुद को महान समझता है अपने सिवा सभी को नासमझ नादान समझता है। इंसान से भयानक कोई जीव जंतु जानवर पशु पंछी धरती आकाश दुनिया भर में नहीं है जिस शाख पर बैठे हैं उसको काटने को विकास और जाने क्या क्या समझते हैं।

राजनेता देश को बदलने की बात कहते हैं खुद को नहीं बदलते हैं ये परजीवी हैं जनता का लहू पीकर पलते हैं गिद्ध मुर्दा लाश खाते हैं ये शासक लोग सरकार बनते ज़िंदा इंसान के जिस्म को नोंचते हैं। चुनाव जीतने को इंसानियत धर्म क्या नियम कानून संविधान तक को क़त्ल करते हैं। 

अदालत में बैठ कर न्यायधीश बन सवाल करते हैं किस किस ने क्या अपराध किया पाप की पुण्य की परिभाषा गढ़ते हैं। न्यायव्यवस्था की बदहाली की चर्चा से डरते हैं ज़िंदगी की कालाबज़ारी है पुलिस पर अपराधी भारी है हर गुनाहगार से सत्ता की यारी है ये सबसे बड़ी महामारी है। इक दिन सबकी आनी बारी है आखिर ख़त्म हुआ दुनिया का हर ज़ालिम अत्याचारी है। सरकार जो लोग चलाते हैं आग से आग को बुझाते हैं लाशों के अंबार पर सत्ता की रोटियां पकाते हैं।

सबको बातों से बहलाते हैं झूठ को सच बताकर उल्लू बनाते हैं जितना नीचे गिरते जाते हैं उतना गर्व से खुद को ऊंचा पहाड़ समझ इतराते हैं। देश का धन चोरी का माल समझ कर बांसों के गज से नापकर कारोबार चलाते हैं चोर जब साहूकार बन जाते हैं चोर औरों को कहते हैं चोर चौकीदार मिलकर मौज मनाते हैं।

हमने यही अपराध किया है बिना परखे ऐतबार किया है बस यही हर बार किया है किसी बड़बोले को सरदार किया है। अपने कर्मों की सज़ा पाई है आगे कुंवां पीछे खाई है नौकर ने अपनी असलियत दिखाई है बन बैठा घरजंवाई है। 

 चलो उनसे भी चल के मिलते हैं जो सच की कथा सुनाते हैं चौबीस घंटे हज़ार चैनल लाख अख़बार खुद को सबसे बड़ा बतलाते हैं। बेचते हैं ज़मीर पहले खुद अपना फिर सवालात पूछते जाते हैं जो बिक गये खरीदार वही हैं अपनी कीमत बढ़ाते जाते हैं। उनसे बढ़कर कोई और नहीं हराम की खाते हैं मगर हरामखोर नहीं उन पर चलता किसी का ज़ोर नहीं। शोर उनका है जिनको पसंद किसी और की आवाज़ नहीं ये बात कोई राज़ की बात नहीं। सोशल मीडिया के जितने बंदे हैं सभी आंखों वाले अंधे हैं।

सच खोजना नहीं आता है झूठ से उनका गहरा नाता है नैतिकता से उनको बैर है बचना उनसे मनानी खैर है। दाता बनकर जो भीख देते हैं ये उनकी हाज़िरी लगाते हैं बात जनता की करते हैं पर सत्ता के गुण गाते हैं कभी कभी सरकार को आंखें दिखाते हैं ये मज़बूरी है करना पड़ता है पल भर में बात को बदलते हैं सरकार ने सब ठीक किया इसको अपनी खबर का असर बताते हैं। सच्चाई शराफत ईमानदारी धर्म ईमान नैतिकता ये सभी चलते नहीं आजकल खोटे सिक्के हैं।

आप खुद हैं तीन गुलाम बेगम बादशाह हाथ में लिए असली खिलाड़ी है जिसके पास तीन इक्के हैं। जिसको समझे थे बापू के बंदर वो लकंदर बन गये हैं सिकंदर। उनका इतिहास कौन लिखेगा ये सब झूठ है है कोरी बकवास कौन लिखेगा।

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