* भागलपुर के युवा कवि, कहानीकार धनंजय कुमार का साहित्य लेखन से गहरा लगाव है।
* कविता- कानन पत्रिका के संपादक के रूप में भी इन्होंने साहित्यिक पत्रकारिता के विकास में योगदान दिया है।
प्रस्तुत है यहां इनसे वरिष्ठ पत्रकार राजीव कुमार झा की रोचक बातचीत…
प्रश्न : कविता कानन पत्रिका के संपादक के रूप में आप कई सालों से साहित्य की सेवा में संलग्न हैं। हिंदी साहित्यक पत्रकारिता के नये परिदृश्य के रूप में इसकी आनलाइन पत्रिकाओं की भूमिका के बारे में अपने विचारों से अवगत कराएं?
उत्तर : बेशक वर्तमान परिवेश में पत्रकारिता बदलती जा रही है। एक समय था जब पत्रकारिता और साहित्य समानान्तर चलते थे। आज पत्रकारिता का साहित्य से पहले की तरह का संबंध नहीं रह गया है। धीरे-धीरे पत्रकारिता अपना वास्तविक पहचान खो रही है। ऑनलाइन पत्रकारिता ने समाज में एक जगह बनाई है और आसानी से समाचार उपलब्ध होने का भी यह एक माध्यम है पर यह बात भी बहुत आहत करती है खास कर तब जब झूठी खबरें परोस दी जाती हैं या यूँ कहें की आजकल की पत्रकारिता में टीआरपी की अहमियत बढ़ गई है।
प्रश्न : आपके जीवन खासकर शिक्षा, परिवार, घर -द्वार और वर्तमान स्थिति के बारे में संक्षेप में बताइए?
उत्तर : वास्तविकता पूर्व के साहित्यकारों से कुछ ज्यादा भिन्न नहीं है। परिवार में मैं पहला व्यक्ति हूँ जो साहित्य की ओर बढ़ने की महत्वाकांक्षा रखता हूँ। रोजमर्रा की जिंदगी में एक मध्यम वर्गीय परिवार की जो पहचान है बस वही पहचान मेरी भी है। रोजीरोटी की जद्दोजहद भी उतनी ही है। खेती-बारी से पूरा परिवार जुड़ा है। पिताजी जेल प्रशासन में थे पर उनके सेवानिवृत्ति के बाद ग्रामीण जीवन ही जीने का मूल आधार बन गया है। शिक्षा स्नातक की पूरी की फिर नौकरी की तलाश की अंत में मन की बेचैनी को गांव की प्रकृति शांति दे रही है।
प्रश्न : साहित्य की तरफ झुकाव कैसे कायम हुआ और इसके प्रति अपनी अभिरुचि के विकास से जुड़ी बातों से अवगत कराएं?
उत्तर : बचपन से ही कला साहित्य अपनी ओर मन को आकृष्ट करता रहा। स्कूलों में पढ़ायी जाने वाली हिन्दी की पुस्तकें बहुत सम्भाल कर रखता था और थोड़ा बहुत लिखता भी था। बेगूसराय में नवमी कक्षा की जब पढ़ाई कर रहा था तब एक कवि सम्मेलन में मुझे संस्कृत के शिक्षक मैथिली के वरिष्ठ कवि सच्चिदानंद पाठक का काव्य पाठ सुनने का मौका मिला। उसी मंच पर पाठक जी ने मुझे भी काव्यपाठ का मौका दिया। उत्साह जगा और तब एक कविता दैनिक अखबार बेगूसराय टाइम्स और बेगूसराय जिला साहित्य अकादमी की पुस्तक कविता-कानन के लिए अपनी रचना भेजी। दोनों में ही रचना प्रकाशित हुई। फिर कुछ दिन रंगकर्म से जुड़ा जहाँ अभिनय, लेखन, निर्देशन का मौका मिला और साहित्य की ओर कदम बढ चले।
प्रश्न : आप भागलपुर के निवासी हैं। इस नगर की साहित्यिक विरासत और इसकी गरिमा के बारे में आपसे जानकर खुशी होगी।
उत्तर : भागलपुर जिले से ज्यादा जुड़ाव रहा नही पर साहित्य जगत में भागलपुर की अपनी अलग पहचान है। शरतचन्द्र, राहुल सांकृत्यायन, रेणु आदि का विशेष जुड़ाव भागलपुर से रहा। वर्तमान में मैं वगुला मंच के संपादक हास्य कवि रामावतार राही जी से जुड़ा रहा। भागलपुर की माटी साहित्य की उर्वरा भूमि है बस यही कह सकता हूँ।
प्रश्न : हिन्दी में आपने किन-किन लेखकों, कवियों को भी पढ़ा और आप अपनी भाषा साहित्य की विरासत को किस रूप में देखना पसंद करेंगे?
उत्तर : मैने राहुल सांकृत्यायन, दिनकर, बाबा नागार्जुन, प्रेमचंद, खुशवंत सिंह, कमलेश्वर, मोहन राकेश, राही मासूम रजा, किशन चंदर, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, अमृतलाल नागर, हरिवंश राय बच्चन समेत कई लेखकों को पढ़ा पर रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती और महाश्वेता देवी जी से विशेष रुप से प्रेरित रहा।
प्रश्न : भागलपुर में अंगिका भी बोली जाती है। हिंदी की इस बोली के वाचिक और लिखित साहित्य के बारे में बताइए?
उत्तर : अंगिका बेहद सरल भाषा है और इसमें हिन्दी और मैथिली की विशेष मिलावट के कारण खुबसूरती दिखती है। बोलने लिखने में भी सहजता है। परंपराएँ इसे माटी से जोड़ती हैं।
प्रश्न : आप कवि, कहानीकार हैं। लेखन के लिए किन बातों को आप सदैव जरूरी समझते रहे हैं?
उत्तर : समसमायिक घटनाक्रम को कहानी या कविता से जोड़ने की प्राथमिकता रहती है। मेरा अपना मानना है कि साहित्य में समाज, देश की परिस्थितियाँ दिखनी चाहिए और एक संदेश होना चाहिए। लेखन में पत्रकारिता को निश्चित रुप से जोड़ता हूं।
प्रश्न : आज देश और समाज की परिस्थितियों से जुड़ी जो बातें हैं लेखन को प्रभावित करती दिखाई देती हैं, आप उनके बारे में कुछ बताना चाहें तो खुशी होगी?
उत्तर : आज के साहित्य को निसंदेह समाज और देश प्रभावित कर रहे हैं। आज का साहित्य आडंबर का साहित्य है जहाँ कभी भक्तिरस तो कभी वीर रस दिखाई देने लगता है। पर बदलाव होगा और जरूर होगा।