अंतरराष्ट्रीय व घरेलू एजेंसियों द्वारा भारत की अत्यंत गरीबी खत्म तथा गरीबी से भारी मात्रा में उभरने का दावा सराहनीय
अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एजेंसीयों द्वारा भारत में भारी मात्रा में गरीबी कम होने के दावों को अब अमलीजामा पहना कर अपडेट सूची जारी करना समय की मांग – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर आज हर देश जानता है कि भारत कितनी तेजी से विकास कर रहा है। यही कारण है कि अनेक देश भारत से नजदीकियां बढ़ाने, मुक्त व्यापार समझौता करने और संबंधों को आगे बढ़ने व अनेक क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी बनाने को आतुर है, क्योंकि भारतीय उत्पादों की प्रतिष्ठा से दुनियां परिचित हो चुकी है। अब हर क्षेत्र में भारत के परफॉर्मेंस की ब्रेकिंग का डंका बज रहा है। यही कारण है के जहां एक और अमेरिका की प्रमुख थिंक टैंक के दो अर्थशास्त्रियों ने एक लेख में कहा है कि भारत ने अत्यधिक गरीबी को खत्म कर दिया है, वहीं दूसरी ओर नीति आयोग और स्टेट बैंक रिसर्च रिपोर्ट भी इसी की तरफ कई सकारात्मक आंकड़ों सहित अपनी बात कर रहे हैं इसलिए अब मेरा मानना है कि इन सभी रिपोर्ट्स को संज्ञान में लेकर लोकसभा चुनाव 2024 से गठित 18वीं लोकसभा से उदित नई सरकार को अत्यधिक गरीबी समाप्त होने और करोड़ों व्यक्तियों परिवारों को गरीबी रेखा से बाहर आकर जो सक्षम हुए हैं, इसलिए उनको मिलने वाली सुविधाएं व हित वाली सूची से बाहर करने की जरूरत को रेखांकित करना जरूरी है। चुंकि अमेरिका थिंक टैंक का दावा है कि भारत अति गरीबी से पूरी तरह मुक्त हो चुका है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय एजेंसी द्वारा भारत में भारी मात्रा में गरीब कम होने के दावों को अब अमली जामा पहना कर अपडेट सूची जारी करना समय की मांग है।
साथियों बातें कर हम अमेरिकी थिंक टैंक द्वारा लिखे एक लेख की करें तो, अमेरिकी थिंक टैंक ब्रुकिंग्स ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत ने अब आधिकारिक तौर पर अत्यंत गरीबी का सफाया कर दिया है। थिंक टैंक के अनुसार भारत में गरीबी अनुपात में तेज गिरावट आई है और इसे घरेलू खपत में वृद्धि को देखते हुए महसूस किया जा सकता है। सुरजीत भल्ला और करण भसीन द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पुनर्वितरण पर सरकार की मजबूत नीति का परिणाम है, जिससे पिछले एक दशक में भारत में मजबूत समावेशी विकास हुआ है। भारत ने अभी 2022-23 के लिए अपना आधिकारिक उपभोग व्यय डेटा जारी किया है, जो दस वर्षों में भारत के लिए पहला आधिकारिक सर्वेक्षण-आधारित गरीबी अनुमान प्रदान करता है। ब्रुकिंग्स के अनुसार उच्च वृद्धि और असमानता में बड़ी गिरावट की मदद से भारत में गरीबी उन्मूलन में मदद मिली है और गरीबी रेखा के नीचे के लोगों में क्रय शक्ति समानता 1.9 डॉलर प्रति व्यक्ति तक पहुंच गई है। भारत ने अभी 2022-23 के लिए अपना आधिकारिक उपभोग व्यय डेटा जारी किया है, जो दस वर्षों में भारत के लिए पहला आधिकारिक सर्वेक्षण-आधारित गरीबी अनुमान प्रदान करता है। ब्रुकिंग्स के अनुसार उच्च वृद्धि और असमानता में बड़ी गिरावट की मदद से भारत में गरीबी उन्मूलन में मदद मिली है और गरीबी रेखा के नीचे के लोगों में क्रय शक्ति समानता 1.9 डॉलर प्रति व्यक्ति तक पहुंच गई है।
साथियों बातें अगर हम एसबीआई थिंक रिसर्च रिपोर्ट की करें तो, एसबीआई ने कंज्यूमर एक्सपेंडिचर सर्वे के रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि देश में शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच खाई कम हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2022-23 में ग्रामीण इलाकों में गरीबी घटकर 7.2 फीसदी पर आ गई है जो 2011-12 में 25.7 फीसदी रही थी. जबकि शहरी इलाकों में गरीबी घटकर 4.6 फीसदी रही है जो 2011-12 में 13.7 फीसदी रही थी. एसबीआई के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में गरीबी घटने के चलते इस बात के आसार हैं कि देश में गरीबी दर घटकर 4.5 से 5 फीसदी पर आ चुकी है। एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट ने कहा कि भारत सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का जमीनी स्तर पर बड़ा प्रभाव देखने को मिल रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक नए घरेलू उपभोग व्यय को कंज्यूमर प्राइस इंफ्लेशन में शामिल करने से वित्त वर्ष 2023-24 में देश का रियल जीडीपी 7.5 फीसदी के लेवल तक रह सकता है। एसबीआई के ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्या कांति घोष के नेतृत्व में तैयार किए रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक एक दशक के बाद जारी किए गए घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण ने शहरों और ग्रामीण घरेलू उपभोग के तौर तरीकों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। शहरी ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति खपत और एक्सपेंडिचर में बढ़ोतरी देखने को मिली है।
एसबीआई ने अपने रिपोर्ट में बताया कि कोरोना महामारी के बाद ग्रामीण इलाकों में गरीबी में 2018-19 के बाद 440 प्वाइंट की कमी आई है जबकि शहरी गरीबी में 170 बेसिस प्वाइंट की कमी आई है। इससे स्पष्ट है कि सरकार की योजनाओं का ग्रामीण इलाकों में लोगों की जीविका पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। ग्रामीण इलाकों में गरीबी 7.2 फीसदी पर आ गया है जबकि शहरी गरीबी घटकर 4.6 फीसदी पर आ गई है जो 2011-12 में 25.7 फीसदी और 13.7 फीसदी हुआ करता था।एसबीआई के रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक नए घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण डेटा इस ओर इशारा कर रहा है कि असामनता की खाई कम हुई है। शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाकों में औसतन एकसमान रूप से खपत बढ़ी है। ग्रामीण और शहरी इलाकों में खपत में असमानता भी घटी है।एसबीआई रिसर्च के मुताबिक 2011-12 में ग्रामीण इलाकों में 816 रुपये से कम आय और शहरी इलाकों में 1000 रुपये से कम आय वालों को गरीबी रेखा के नीचे माना गया था।लेकिन एनएसएसओ के नए डेटा के मुताबिक नई गरीबी रेखा या उपभोग का मूल स्तर ग्रामीण इलाकों में बढ़कर 1622 रुपये और शहरी इलाकों में बढ़कर 1922 रुपये हो गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे राज्य जिन्हें पिछड़ा समझा जाता था, जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश वहां तेजी के साथ सुधार हुआ है।
साथियों बात अगर हम नीति आयोग की रिपोर्ट की करें तो, नीति आयोग के सीईओ ने कहा कि ग्रामीण व शहरी, दोनों क्षेत्रों में लोग अधिक समृद्ध हो रहे हैं और ताजा घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि भारत का गरीबी स्तर 5 प्रतिशत से नीचे गिर गया है। दरअसल राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा शनिवार देर रात जारी आंकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू खर्च 2011-12 की तुलना में 2022-23 में दोगुना से अधिक हो गया है, जो देश में समृद्धि के बढ़ते स्तर को दर्शाता है। उन्होने पत्रकारों से कहा,उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण सरकार द्वारा उठाए गए गरीबी उन्मूलन उपायों की सफलता को भी दर्शाता है। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण में जनसंख्या को 20 अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया और आंकड़ों से पता चला कि सभी श्रेणियों के लिए औसत प्रति व्यक्ति मासिक व्यय ग्रामीण क्षेत्रों में 3,773 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6,459 रुपये देश में केवल 5 प्रतिशत लोग गरीब निचले 0-5 प्रतिशत वर्ग का औसत प्रति व्यक्ति मासिक व्यय ग्रामीण क्षेत्रों में 1,373 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 2,001 रुपये आंका गया है। नीति आयोग के सीईओ ने कहा, अगर हम गरीबी रेखा को लें और इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के साथ आज की दर तक बढ़ाएं, तो हम देखेंगे कि सबसे निचले 0-5 प्रतिशत वर्ग की औसत खपत लगभग समान है। इसका मतलब है कि देश में गरीबी केवल 0-5 प्रतिशत समूह में है। उन्होंने कहा, यह मेरा आकलन है। लेकिन अर्थशास्त्री इसका विश्लेषण करेंगे और बिल्कुल सही आंकड़े सामने लाएंगे।
एनएसएसओ का अनुमान 1.55 लाख ग्रामीण परिवारों और 1.07 लाख शहरी परिवारों से एकत्र किए गए आंकड़ों पर आधारित है। सुब्रमण्यम ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खपत लगभग 2.5 गुना बढ़ गई है। उन्होंने कहा, ‘इससे पता चलता है कि देश में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्रगति हो रही है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2011-12 में अंतर 84 प्रतिशत था और 2022-23 में घटकर 71 प्रतिशत हो गया है। 2004-05 में यह अंतर 91 प्रतिशत के अपने चरम पर था। एनएसएसओ सर्वेक्षण देश में ग्रामीण और शहरी दोनों परिवारों के कुल खर्च में अनाज और भोजन की खपत की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय गिरावट का भी संकेत देता है। इसका मतलब है कि लोग अतिरिक्त आय के साथ समृद्ध हो रहे हैं। इस बढ़ी हुई समृद्धि के साथ वे भोजन के अलावा अन्य चीजों पर अधिक खर्च कर रहे हैं। यहां तक कि भोजन में भी, वे अधिक दूध पी रहे हैं, फल और अधिक सब्जियां खा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा, ‘सीपीआई मुद्रास्फीति में भोजन का योगदान कम होगा और शायद पहले के वर्षों में भी कम था। इसका मतलब है कि मुद्रास्फीति को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा था और शायद कम है, क्योंकि मुद्रास्फीति में भोजन का प्रमुख योगदान रहा है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अमेरिकी थिंक टैंक का दावा भारत में अत्यधिक गरीबी पूरी तरह खत्म हुई-शहरी, ग्रामीण असमानता में भी गिरावट आई।अंतरराष्ट्रीय व घरेलू एजेंसियों द्वारा भारत की अत्यंत गरीबी खत्म तथा गरीबी से भारी मात्रा में उभरने का दावा सराहनीय। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एजेंसीयों द्वारा भारत में भारी मात्रा में गरीबी कम होने के दावों को अब अमलीजामा पहना कर अपडेट सूची जारी करना समय की मांग है।
ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च कर, फॉलो करें।