- संपदाओं को सुरक्षित रखने हेतु भक्ति वेदान्त रिसर्च सेंटर कर रहा प्रयास
हावड़ा (पश्चिम बंगाल)। हावड़ा के एक प्राचीन संस्थान में उपलब्ध अति दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण एवं रख-रखाव कार्य के साथ-साथ उनका डिजिटाइजेशन भी शुरू किया गया है। पहले इस संस्थान में अनेक विद्वानों का आवागमन होता था और यहाँ प्रसिद्ध पंडित भी एकत्रित होते थे किंतु अब इन सभी गतिविधियों का लगभग अंत हो चुका है, जिससे यहां उपस्थित इन प्राचीन पांडुलिपियों का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है।
इन सभी संपदाओं को कई वर्षों तक सुरक्षित रखने हेतु भक्तिवेदांत रिसर्च सेंटर द्वारा निरंतर प्रयास किया जा रहा है। कुछ पांडुलिपियां जो खराब हो रही हैं उन्हें संरक्षित किया जा रहा है और जो अच्छी स्थिति में हैं उनका रख-रखाव किया जा रहा है। इसके साथ ही सभी पांडुलिपियों को डिजिटाइज करने का भी कार्य भी शुरू किया गया है ताकि वे सदा के लिए लुप्त न जाएं।
भविष्य में शोधकर्ता इस अद्भुत पांडुलिपि संग्रहालय का उपयोग कर सकेंगे ऐसे अनुपम ध्येय के साथ भक्तिवेदांत रिसर्च सेंटर अथक रूप से कार्यरत है। इस काम की प्रगति की समीक्षा के लिए प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. निर्माल्य नारायण चक्रवर्ती, डीन डॉ. सुमंत रुद्र, संपादक डॉ. देवब्रत मुखोपाध्याय और पांडुलिपि विशेषज्ञ डॉ. रत्ना बसु शुक्रवार को हावड़ा स्थित संस्थान में उपस्थित थे।
डॉ. देवब्रत मुखोपाध्याय ने कहा कि हावड़ा संस्कृत साहित्य समाज एक प्राचीन ग्रंथालय है, जिसका वर्तमान नाम बिजोयानाथ मुखोपाध्याय ग्रंथालय है। यहाँ रामायण और महाभारत के अलावा दर्शन, व्याकरण सहित विभिन्न विषयों पर लगभग छह हजार पांडुलिपियां उपलब्ध हैं।
यहां पूर्व संपादक नित्यानंद मुखोपाध्याय और संस्थापक संपादक बिजोयानाथ मुखोपाध्याय के अथक प्रयास से विभिन्न स्थानों से पुस्तकें एकत्रित की गईं थी और उन्हें वर्तमान स्थान पर संरक्षित किया गया था। उन्होंने यह भी बताया कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस संस्थान की नींव रखी थी। यहाँ महाभारत पर अर्जुन मिश्र की संपूर्ण टिप्पणी, जयदेव की रति शास्त्र जैसी कई दुर्लभ और अप्रकाशित पांडुलिपियां भी उपलब्ध है।
डॉ. सुमंत रुद्र ने कहा कि वे एक शैक्षिक संस्थान के रूप में, लंबे समय से प्राचीन पांडुलिपियों की खोज, पुनर्मुद्रण, संरक्षण, डिजिटाइजेशन एवं अनुसंधान कार्यों में सक्रिय रहे हैं। बीआरसी पांडुलिपियों के संरक्षण में अग्रणी होकर प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. निर्माल्य नारायण चक्रवर्ती और डॉ. रत्ना बसु के नेतृत्व में यहां डिजिटाइजेशन का काम शुरू कर चुका है।
एक सुपरवाइजर तथा दो तकनीकी टीमें स्कैनिंग के काम कार्य को देख रहा है। स्कैन की गई पांडुलिपियों को जहरीले और एसिड मुक्त आवरणों में रखा जा रहा है, साथ ही परंपरा के अनुसार उन्हें लाल कपड़े से लपेटा जा रहा है। बीआरसी ने सभी पांडुलिपियों को सुरक्षित रखने के लिए तीन स्टील की अलमारियां भी दान करी हैं।
“यह पहल भारत की प्राचीन ज्ञान प्रणाली और दुर्लभ पांडुलिपियों को संरक्षित करने की दिशा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है।” पुरानी पांडुलिपियों को संभालने से हानि हो सकती है, लेकिन डिजिटाइजेशन निश्चित रूप से इस हानि से बचने में मदद करेगा। डॉ. निर्मल्या नारायण चक्रवर्ती ने कहा, “हमने लगभग छह हजार पांडुलिपियों को डिजिटल बनाने की पहल की है और यह कार्य प्रगति पर है।”
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