नई दिल्ली। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जा को लेकर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला सुनाया है ।
सीजेआई ,जस्टिस संजीव खन्ना, जेडी पारदीवाला और मनोज मिश्रा ने एक मत फैसला लिया है। जबकि जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति वाला फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2006 के एक फैसले के संबंध में सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने इस मामले को सात जजों की पीठ को सौंप दिया था।
सात जजों की संविधान पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के संबंध में दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई की और बाद में फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने इस मामले की आठ दिनों तक सुनवाई की थी।
साल 1968 के एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू को केंद्रीय विश्वविद्यालय माना था, लेकिन साल 1981 में एएमयू अधिनियम 1920 में संशोधन लाकर संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल कर दिया गया था। बाद में इसे इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
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