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21वी सदी में बेटियां जहाँ एक ओर कामयाबी की नित नई सीढ़िया चढ़ रही है, गरीबी और कम संसाधनों के बावजूद अपने दम पर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही वही रूढ़िवादी समाज रूढ़िवादिता से चिपके हुए महिलाओं के प्रति अपने कुंठित मानसिकता का परिचय वक्त वे वक्त देती रहती है। समाज का यही दोहरा चरित्र बहुत ही घातक सिद्ध हो रहा है। एक तरफ हम बड़े गर्व से महिलाओं की समानता और सशक्तिकरण का बखान करते नही थकते, खैर करे भी क्यों न क्योंकि महिलाओं ने हर रूढ़िवादिता को धत्ता बताकर हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत का परचम लहराया है।
वो समुद्र की गहराई को छुआ है तो अंतरिक्ष की बुलंदियों को भी चूमा है, राजनीति क्षेत्र में सर्वोच्य पद को भी महिलाओं ने हासिल किया है, कही आईएएस, आईपीएस अधिकारी है तो कही टेनिस या अन्य सभी प्रकार के खेलों की स्टार, तो कही बड़े-बड़े राजनेताओं की बोलती बंद करते टी.वी. एंकरों को देखिये, तेजस लड़ाकू विमान को उड़ाते हुए महिला पायलट को देखिए।
पर यह सिक्के का एक पहलू है दूसरे पहलू को देखा जाए तो आज भी महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय है उसके जन्म से पहले से ही उसके विनाश का सिलसिला शुरू हो जाता है, कन्या भ्रूण हत्या, उनका अपहरण, हत्या, बलात्कार, तस्करी तथा अन्य गलत व्यवहार आम बात है। यह सब समाज और पुलिस के ठीक नाक के नीचे होता रहता है।
दो साल पूर्व बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड को कौन भूल सकता है जब 34 बच्चियों का जिंदगी को नर्क से बदत्तर बना दिया गया।
आज हर स्तर पर औरतो का शोषण हो रहा है, हर क्षेत्र में उसके सम्मान, उसकी इज्जत को ललकारा जा रहा है। कभी बाहरी तो कभी घरेलू हिंसा का दानव उसे भयभीत करता रहता है, कभी दहेज के लिए तो कभी बेटा पैदा नही कर पाने की वजह से तो कभी अंधविश्वास की शिकार ये महिलायें ही होती रहती है।
अपनी संकल्प के साथ विकास के सोपान चढ़ने वाली महिलायें आज क्यों हर पल असुरक्षा के अहसास के साथ जी रही है?
इसका जबाब भी हम सभी प्रगतिशील बुद्धिजीवियों एवं हमारे समाज के तथाकथित ठेकेदारों को ही देना होगा। शक्ति की पर्याय नारी खुद अपनी ही आबरू बचाने में असहाय क्यो है? हम नारी के किस उत्थान और स्वतंत्रता की बात करते है? कुछ सफल महिलाओं का उदाहरण सामने रख कर समस्त नारी जाति के सशक्तिकरण का आकलन नही किया जा सकता।
सृष्टि की संरचना में अहम किरदार निभाने वाली नारी को सम्मान, अपने वजूद और अस्मिता की सुरक्षा की गारंटी, उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार का न्याय मिलना ही चाहिए तभी सही मायने में हमारा समाजिक उत्थान का संकल्प पुरा हो सकेगा और तभी हमारा राष्ट्र पूर्णरूपेण विकसित हो सकेगा
जब देश के संसद के भीतर एक महिला सांसद के ऊपर हाल के दिनों में अमर्यादित टिप्पणी करने की हिमाकत एक सदन के पुरूष सदस्य द्वारा किया जा सकता है तो एक आम शहरी या दूर ग्रामीण इलाकों की महिलाएं कैसे सुरक्षित रहेगी। मेरा मानना है सिर्फ कानून बना देने से समाज मे बदलाव नही लाया जा सकता इसके लिए समाज की मानसिकता में बदलाव लाना होगा, रूढिवादिता का त्याग करना होगा साथ ही समाज के हर वर्ग के महिलाओं को शिक्षित होना होगा, राजनीति में इन्हें अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी तभी महिलायें अपने ऊपर होनेवाले अन्याय के खिलाफ आवाज उठा पायेगी नहीं तो घर की चहारदीवारी के अंदर घुट-घुट कर जीने पर मजबूर होना पड़ेगा।
महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मामले सिर्फ महानगरों में ही नही होते इसका दंश ग्रामीण इलाके में भी बढ़ गया है, नतीजा कभी कठुआ, कभी उन्नाव, तो कभी दिल्ली की दामनी, तो कभी मुजफ्फरपुर का शेल्टर होम के रूप में देखने सुनने को आये दिन मिलता रहता है। अच्छी बात है केंद्र सरकार ने महिलायें के प्रति संवेदना रखते हुए पहले के अपेक्षा कठोर कानून लायी है। पर सामाजिक मानसिकता में बिना बदलाव लाये हम समाज के बीच रह रहे इन मनचले युवकों पर पूरी तरह रोक नही लगा सकते, हमे अपने स्तर से परिवार में बिना भेद-भाव लड़के लड़कियों की शिक्षा स्तर को बढ़ाना होगा, जब तक देश की आधी आबादी हमारी महिलाशक्ति शिक्षित सुरक्षित नही हो जाती तब तक हम एक बेहतर समाज तथा एक विकसित राष्ट्र के सपने को सच नही कर पायेंगे।