रूपल की कविता – “सपनों के चिथड़े”

“सपनों के चिथड़े” आज मैंने जब देखा कांधे पर चढ़े तुम्हारे बच्चों की आँखें उनमें

रूपल की कविता : “माँ”

माँ कई दिनों से माँ को हर रोज़ रात को फ़ोन करती हूँ सोने से

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