डॉ. तेजस्विनी दीपक पाटील की कविता देहरी
देहरी उस देहरी के बाहर कदम रखा, और इस देहरी के अंदर आ गई। इन
डॉ. तेजस्विनी दीपक पाटील की कविता
वक्त के साथ तुम, निर्लिप्त से आगे निकल जाते हो। और मैं, अतीत की सिलवटों
देहरी उस देहरी के बाहर कदम रखा, और इस देहरी के अंदर आ गई। इन
वक्त के साथ तुम, निर्लिप्त से आगे निकल जाते हो। और मैं, अतीत की सिलवटों