Kolkata Hindi News, कोलकाता। मजदूरी में क्यों पलेगा हर बचपन पढ़ेगा; बांग्ला फिल्म “हाथेखोड़ी” अपने उद्देश्य में सफल प्रतीत होती है। बाल मजदूरी कोई नई समस्या नहीं है लेकिन सामाजिक उदासीनता के पीछे ये दब सी गई है। एक बार फिर फिल्म के माध्यम से यह विषय लोगों के समक्ष है। इस बार बांग्ला फिल्म हाथेखोड़ी ने इस विषय को आड़े हाथ लिया है।
चाँद जिसपर माँ सरस्वती की कृपा है यह कहना गलत ना होगा। ढाबे में काम करते हुए जिस प्रकार वो पूरी लगन से पढ़ना जारी रखता है वो सीधे तमाचा जड़ता है कथाकथित उन समाज के शिक्षा के पुरुधावों पर जो यह दावा करते है कि हमारे देश के हर बच्चे के पास शिक्षा का समान अवसर उपलब्ध है। लेकिन धरातल पर उतरकर यह कहानी दिखाती है कि अब भी ऐसे कई प्रतिभावान बच्चें हैं जिनके पास शिक्षा का अवसर तो दूर खाने तक का अभाव है।
ऐसे में यह दावा करना कि हमने शिक्षा हर तबके के लिए मुहैया करवा दिया है वो पूरी तरह से खोखला है। फिल्म में तकनिकी दृष्टिकोण से कुछ कमियां जरूर देखने को मिलती है। लेकिन फिल्म अपने उद्देश्य से कहीं भी नहीं भटकती। यही कारण है कि ढाई घंटे की यह फिल्म दर्शकों को थिएटर में कुर्सी पर बांधें रखने में सफल हो जाती है।
बद्रीनाथ साव ने अपनी पुस्तक “अक्षर –अक्षर दीप जले ” में जिस प्रकार बाल मज़दूरी की बारीकियों को पकड़ा है, उसे काफी हद तक फिल्म में उजागर करने में सफल हुए हैं निर्देशक जोड़ी कौस्तव-मैनाक। विश्वनाथ बसु, सोनाली चौधुरी, मिथुन देबनाथ, कोंकणा हलदार, प्रान्तिक बनर्जी जैसे मझे हुए कलकारों ने अपने अभिनय से इसमें जान डाल दी है।
फिल्म पार्टनर्स स्टूडियोज और कॉपीराइट एंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी इस फिल्म का निर्देशन कौस्तव चक्रवर्ती और मैनक मित्रा ने किया है। मूल कहानी के लेखक बद्रीनाथ साव है, जिनकी पुस्तक “अक्षर-अक्षर दीप जले” पर आधारित है यह फिल्म। फिल्म के निर्माता हैं उमाशंकर कीह, बिश्वनाथ घोराई, अतुल्य कुमार वर्मा, सम्राट बोस, मेघा चक्रवर्ती, राणा भट्टाचार्य और कोंकणा हलदार।
क्रिएटिव प्रोडूसर कार्यकारी निर्माता व प्रोडक्शन डिजाइनर है गोपाल घोराई, जबकि छायांकन रिपोन होसैन का है जिसने फिल्म को दिलचस्प बना दिया है। जॉय दत्ता की कोरियोग्राफी और अमित चटर्जी, सुप्रतीप भट्टाचार्य, शुभंकर देबनाथ, शुभ्रदीप बख्शी के संगीत से सजी गानों को दर्शकों द्वारा बहुत सराहना मिल रही है। फिल्म 29 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है और इसे लेकर दर्शकों में भारी उत्साह दिखने को मिल रही है।
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फिल्म का निर्माण कोई आसान काम नहीं है। ये मानिये की लोहे चने चबाने जैसा काम होता है ये। एक बड़े टीम का संचालन करने के लिए कई प्रकार की विविधिताओं से होकर गुजरना पड़ता है। लेकिन इन सभी विविधिताओं को एक सूत्र में पिरोकर जो रखता है वो होता है प्रोडक्शन डिज़ाइनर। हाथेखोड़ी फिल्म का प्रोडक्शन डिज़ाइन गोपाल घोराई ने किया है, जिनके बनाये नक्शेक़दम पर ही चलते हुए हाथेखोड़ी फिल्म थिएटर के परदे तक पहुंची है। गोपाल घोराई फिल्म के न केवल प्रोडक्शन डिज़ाइनर है बल्कि कार्यकारी निर्माता भी हैं।
मुझे अत्यंत हर्ष है कि जिस सामजिक संवेदना को मैंने अपनी “अक्षर-अक्षर दीप जले” पुस्तक में उजागर करने की कोशिश की थी, वह आज बांग्ला फिल्म हाथेखोड़ी का रूप लेकर सिनेमा के इतिहास में दर्ज़ हो चुकी है। फिल्म बहुत अच्छी बनी है और मेरी कहानी के साथ काफी हद तक न्याय भी करती है। मैं दर्शकों से अपील करता हूँ कि वे सिनेमाहॉल में आएं और इस फिल्म के जरिये बाल मज़दूरी के खिलाफ मुखर होवें।
“हाथेखोड़ी मेरे अनुभव का विस्तार है। मेरे लिए सिनेमा का मतलब भावनाएं हैं, और इस फिल्म में मैंने आम व्यक्तियों मतलब आप और मेरे जैसे साधारण लोगों के सपने बुने हैं।बद्री जब मेरे पास यह कहानी लेकर आया तो मैं विषय वस्तु से मंत्रमुग्ध हो गया कि कैसे एक बालक जो बाल मज़दूरी में पड़ने के वावजूद भी स्कूल जाने के लिए लालायित है, यह सच में झकझोर देने वाला था। चांद के द्वारा मैंने सम्मानजनक जीवन के लिए एक आम व्यक्ति के निरंतर संघर्ष को प्रदर्शित करने की पूरी कोशिश की है।
कहानी कई होते हैं जिस पर फिल्म बनाई जा सकती है लेकिन चुनिंदा कहानियां ही होती हैं जिस पर इतिहास गढ़ी जा सकती है। यह फिल्म की कहानी केवल हमारी नहीं रहती बल्कि धीरे-धीरे ये सबकी कहानी बन जाती है और यही इसके विषय की खाशियत है जिसने मुझे प्रभावित किया, फिर मैंने न केवल इसका निर्देशन बल्कि इसके प्रोडक्शन में भी खुद को झोंकने का निर्णय लिया।
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