तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : पश्चिम बंगाल सरीखे अहिंदी भाषी प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस हिंदी प्रकोष्ठ का गठन कल्पना से परे हैं । निश्चित रूप से इससे राज्य में रहने वाले करीब सवा करोड़ हिंदी भाषियों को उचित मंच मिलेगा । खड़गपुर के गोलबाजार स्थित सामुदायिक भवन में मंगलवार को आयोजित तृणमूल कांग्रेस हिंदी प्रकोष्ठ मेदिनीपुर डिवीजन के प्रथम सम्मेलन में यह बात शहर के
बड़े – बुजुर्गों ने कही । सम्मेलन में मुख्य अतिथि व वक्ता के तौर पर उपस्थित पूर्व सांसद व सेल के अध्यक्ष विवेक गुप्ता ने कहा कि 2011 तक बंगाल में बी ( बंगाली ) और एनबी ( नॉन बंगाली ) फैक्टर मजबूत था। मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी ने इस विभाजन रेखा को महसूस किया और प्रकोष्ठ के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
उन्होंने सुझाव दिया था कि हिंदी माध्यम से शिक्षा सुविधा की कमी के चलते बड़ी संख्या में राज्य के छात्र झारखंड और अन्य राज्यों को जाने को मजबूर हैं । कालांतर में बड़ी संख्या में ऐसे छात्र उन्हीं राज्यों में बस जाते हैं । इसके बाद ही हावड़ा में बंगाल का पहला और भारत का दूसरा हिंदी विश्वविद्यालय खुला । इससे माइग्रेशन ही नहीं रुकेगा बल्कि दूसरे राज्यों के छात्र पढ़ने यहां आएंगे । उन्होंने कहा कि स्थानीय समस्याएं भी उनके संग्यान में आई है । वे चाहे रेलवे की हो या राज्य की उनका निराकरण जल्द किया जाएगा।
प्रकोष्ठ के मेदिनीपुर डिवीजन के संयोजक रविशंकर पांडेय ने कहा कि बंगाल भाषाई समरसता के लिहाज से आदर्श है । 2011 में राज्य से वाममोर्चा को उखाड़ फेंकने में हिंदी भाषियों को बड़ा योगदान था । 2016 में भी हमें इस वर्ग का आशीर्वाद मिला लेकिन मुख्यमंत्री ने महसूस किया कि 2019 का चुनाव परिणाम हिंदी भाषी समाज के दूर होने का नतीजा था । लिहाजा इस दूरी को पाटने की कोशिश शुरू हुई । उन्होंने कहा कि बंगाल की संस्कृति से अनभिज्ञ भाजपा नेताओं को बाहरी कहना कतई गलत नहीं है।
तृणमूल कांग्रेस जिला समिति के अध्यक्ष अजीत माईती ने नकारात्मक राजनीति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ममता सरकार को उखाड़ फेंकने की बात कहते हैं । यह उनका स्तर है । क्या ममता बनर्जी किसी की दया या मेहरबानी से मुख्यमंत्री पद पर हैं । विकास के बजाय नकारात्मक बातों पर जोर क्यों ? तृणमूल कांग्रेस की जिला समिति के प्रवक्ता देवाशीष चौधरी ने कहा कि मिश्रित संस्कृति वाले खड़गपुर शहर में वे पले बढ़े हैं । वे भले तेलुगू नहीं सीख पाए लेकिन उनके कई गैर बंगाली मित्र सुबह उठ कर बांग्ला समाचार पत्र पढ़ते हैं । भाषा तोड़ने नहीं बल्कि जोड़ने का माध्यम है । सम्मेलन में मिथिलेश सिन्हा , सुशीला जैन , गोपाल लोधा , सकलदेव शर्मा , राहुल शर्मा , पद्मा कर पांडेय , अभिनंदन गुप्ता तथा राधेश्याम सिंह समेत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।