कोलकाता। शांतिनिकेतन में शीतकालीन ‘पौष मेला’ का लगातार चौथे वर्ष आयोजन नहीं होगा। अधिकारियों ने मेले की तैयारियों के लिए समय की कमी का हवाला देते हुए आयोजन को रद्द कर दिया है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। वर्ष 2020, 2021 और 2022 में भी मेला आयोजित नहीं किया जा सका था। विश्व भारती और शांतिनिकेतन ट्रस्ट ने एक संयुक्त बयान में कहा कि नेक इरादों के बावजूद इस साल मेला आयोजित करना संभव नहीं लगता है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय ने दो दिसंबर को घोषणा की थी कि मेले के आयोजन पर आम सहमति बन गई है। विश्व भारती की प्रवक्ता महुआ बनर्जी ने संयुक्त बयान में कहा कि सभी उपस्थित लोगों द्वारा गहन चर्चा के बाद सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि शांतिनिकेतन ट्रस्ट और विश्वविद्यालय के लिए सभी नेक इरादों के बावजूद 2023 में पौष मेला आयोजित करना संभव नहीं लगता है।
बयान में कहा गया है कि मेले को आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय शांतिनिकेतन ट्रस्ट के तीन सदस्यों की एक बैठक में लिया गया, जिसमें पूर्व कार्यवाहक कुलपति सबुजकली सेन, विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के सदस्य, शिक्षाविद और प्रशासनिक अधिकारी शामिल थे। बयान में कहा गया है कि (नौ नवंबर को) कार्यभार संभालने के बाद से कार्यवाहक कुलपति संजय कुमार मलिक के प्रयासों के बावजूद इस स्तर पर आयोजन की व्यवस्था के लिए बेहद कम समय शेष है।
बयान के अनुसार, शांतिनिकेतन ट्रस्ट के सदस्यों ने इस बात पर जोर दिया कि समय की कमी के कारण एक छोटा, प्रतीकात्मक मेला वित्तीय रूप से फायदेमंद नहीं है। बयान में कहा गया है कि मेला मैदान से सटे जलाशयों की सफाई, स्वच्छता, बिजली, सुरक्षा आदि कार्य बड़े स्तर पर किया जाना हैं और विश्वविद्यालय ‘पौष मेला’ के लिए बचे कम समय के कारण इन्हें प्रबंधित करने की स्थिति में नहीं है।
दिसंबर के अंत में पड़ने वाले बंगाली महीने ‘पौष’ के सातवें दिन आयोजित होने वाले इस मेले का आयोजन पहली बार विश्व भारती के संस्थापक रवींद्रनाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर ने 1894 में बंगाल विशेषकर बीरभूम जिले के हस्तशिल्प, विरासत और संस्कृति को प्रदर्शित करने के लिए किया था। वर्ष 1951 से विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा न्यास और पश्चिम बंगाल सरकार के सहयोग से ‘पौष मेला’ का आयोजन किया जा रहा है।
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