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कॉप शिखर सम्मेलन 2023 – जलवायु परिवर्तन पर प्राथमिकता से वैश्विक मंथन

28वां कॉप शिखर सम्मेलन दुबई 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 पर विशेष
जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता वाला क्षेत्र है इसके खतरों से निपटने, निर्धारित योजनाओं का सटीक क्रियान्वयन ज़रूरी – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनियां का हर देश जलवायु परिवर्तन के भीषण परिणाम से पीड़ित है, जिसका निदान करना और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन रोकना, पर्यावरण की रक्षा करना हर देश ही नहीं बल्कि हर मानवीय जीव का कर्तव्य है। पिछले दो दिनों वआज 29 नवंबर 2023 को हम देख रहे हैं ठंड का मौसम होने के बावजूद झमाझम बारिश हो रही है जो जलवायु परिवर्तन के दुष्टपरिणामो का ही असर है। पर्यावरण की रक्षा, जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए ही वैश्विक 28 वा कॉप वैश्विक शिखर सम्मेलन संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 तक विचार विमर्श, मंथन कर सर्वसम्मति अनुमति से योजनाएं बनाकर वैश्विक स्तरपर क्रियान्वयन करने के लिए प्रस्ताव पारित किया जाएगा, जिसमें भारतीय पीएम भी शरीक होंगे। चूंकि जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम से आज पूरी मानव जाति पीड़ित है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता वाला क्षेत्र है, इसके खतरों से निपटने के निर्धारित योजनाओं का सटीक क्रियान्वयन जरूरी है।

साथियों बात अगर हम 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 तक चल रहे 28वें कॉप शिखर सम्मेलन की करें तो, कॉप (सीओपी) का मतलब पार्टियों का सम्मेलन है। अभी तक इसकी कुल 27 बैठकें हो चुकीं हैं। बता दें कि पिछले कॉप 27 का आयोजन नवंबर 2022 में मिस्त्र के श्रम अल शेख में किया गया था। कॉप के तहत हर साल एक बैठक आयोजित की जाती है, जिसमें दुनियां भर के राष्ट्राध्यक्ष ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए योजनाएं बनाते हैं। इसके अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश जलवायु परिवर्तन से निपटने में कारगर उपाय का आकलन करने और यूएनएफसीसीसी के दिशानिर्देश के तहत जलवायु परिवर्तन कार्रवाई करते हैं। बैठक का औपचारिक नाम जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन या संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दलों का कॉन्फ्रेंस है। पहला कॉप 1995 में बर्लिन में आयोजित किया गया था। जलवायु कार्रवाई की गंभीरता को देखते हुए, वैश्विक उपभोग पैटर्न को सही करने की आह्वान किया गया है। बता दें 2021 में ग्लासगो में आयोजित जलवायु वार्ता में भी हमारे पीएम ने शिरकत की थी, जहां उन्होंने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत की रणनीति को उजागर किया था।

पीएम ने पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली को अपनाने के लिए जोर दिया था। मीडिया की मानें तो पीएम मोदी 30 नवंबर को यूएई जाएंगे और अगले दिन एक दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र के विश्व जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में शिरकत करेंगे। 30 नवंबर से दो दिसंबर को विश्व जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में तमाम देशों के नेता और प्रमुख संस्थानों के अध्यक्ष शामिल होंगे। इस बैठक में जलवायु कार्रवाई को सुदृढ़ रूप से लागू करने के लिए उद्देश्य से कार्यों और योजनाओं पर चर्चा की जाएगी। इसमें जीवाश्म ईंधन के उपयोग मीथेन उत्सर्जन समेत विभिन्न मुद्दों पर गहन चर्चा की उम्मीद है। जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए अमीर देशों की तरफ से विकासशील देशों को मुआवजे के तौर पर वित्तीय सहायता दिए जाने के मुद्दे पर भी चर्चा हो सकती है। इसमें जीवाश्म ईंधन के उपयोग, मीथेन उत्सर्जन, और ग्लोबल वार्मिंग उत्सर्जन को कम करने समेत विभिन्न मुद्दों पर गहन चर्चा की उम्मीद है। जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए अमीर देशों की तरफ से विकासशील देशों को मुआवजे के तौर पर वित्तीय सहायता दिए जाने के मुद्दे पर भी चर्चा हो सकती है।

साथियों बात अगर हम जलवायु परिवर्तन में कृषि क्षेत्र को देखें तो, केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि कृषि को जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन किया जाना चाहिए ताकि कृषक समुदाय इससे लाभान्‍वित हो सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत जैसा अत्यधिक आबादी वाला देश शमन व लक्षित मीथेन कटौती की आड़ में खाद्य सुरक्षा पर समझौता नहीं कर सकता है। संयुक्त सचिव (एनआरएम) ने कार्बन क्रेडिट के महत्व को भी प्रस्तुत किया, जो जलवायु अनुकूल टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के माध्यम से कृषि में उत्पन्न किया जा सकता है।

राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (एनएमएसए) के अंतर्गत कृषि वानिकी, सूक्ष्म सिंचाई, फसल विविधीकरण, राष्ट्रीय बांस मिशन, प्राकृतिक/जैविक खेती, एकीकृत कृषि प्रणाली आदि जैसे अनेक उपायों का आयोजन किया गया है। मिट्टी में कार्बन को अनुक्रमित करने की क्षमता है जिससे जीएचजी व ग्लोबल वार्मिंग में योगदान कम हो जाता है। तोमर ने सुझाव दिया कि कार्बन क्रेडिट का लाभ कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय बीज निगम के बीज फार्मों और आईसीएआर संस्थानों में मॉडल फार्मों की स्थापना के माध्यम से किसानों तक पहुंचना चाहिए। उन्होंने कहा कि केवीके को कृषक समुदाय के बीच जागरूकता पैदा करने में भी शामिल होना चाहिए, ताकि किसानों की आय बढ़ाई जा सकें। कार्बन क्रेडिट, किसानों को सतत् कृषि का अभ्यास करने में प्रोत्‍साहन के लिए एक महत्वपूर्ण पहल हो सकती है। उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए कार्बन क्रेडिट के ज्ञान वाले किसानों को साथ लिया जा सकता है।

साथियों बात अगर हम शिखर सम्मेलन के संबंध में ओईसीडी की रिपोर्ट की करें तो, हालांकि इस समिट से पहले आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने एक नई रिपोर्ट प्रकाशित की है, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते सालों में हुए इन शिखर सम्मेलन में किए गये वादे पूरे नहीं हुए हैं, इसमें सबसे अहम वादा यह कि सभी विकसित देश पर्यावरण को बचाने के लिए सभी विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर देने का वादा किया था जो कि पूरा नहीं हुआ। विकसित देशों ने विकासशील देशों को देने के लिए सिर्फ 89.6 बिलियन डॉलर जुटाए। ओईसीडी इसलिए भी अहम है क्योंकि मुख्य रूप से यह अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, कनाडा और अन्य समृद्ध देशों का एक समूह है। इस रिपोर्ट के बाद ऐसा माना जा रहा है कि दुबई में होने वाली इस बैठक का अहम विषय इस वादे को पूरा नहीं किए जाने को लेकर होगा। यह रिपोर्ट 2020 में ग्लासगो समिट के बारे में भी बताती है जहां पर इन विकसित देशों ने विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर दिए थे।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन यूएनएफसीसीसी के दलों ने भी ग्लासगो में गहरे अफसोस के साथ कहा था कि विकसित देशों का समूह 2020 में तय समय में 100 अरब डॉलर के जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया था। ओईसीडी रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में सार्वजनिक क्षेत्र ने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय चैनलों के माध्यम से जुटाए गए 73.1 बिलियन डॉलर में से 49.6 बिलियन डॉलर कर्ज के रूप में दिए गए थे। हालांकि रिपोर्ट के आधार पर साझा की जाने वाली रिपोर्ट की मानें तो पर्यावरण की सारी चितांए जलवायु बचाए जाने के ऊपर निर्भर हैं। एक एनजीओ द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, दुनियां के सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोग 2015 में लगभग आधे वैश्विक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार थे। पिछले वर्ष अगस्त माह में भारत ने 2015 के पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए राष्ट्र कार्य योजना को अपडेट किया। भारत के अद्यतन एनडीसी के लक्ष्य 2005 के स्तर से 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करना, 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से 50 प्रतिशत संचयी विद्युत स्थापित क्षमता हासिल करना है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि कॉप शिखर सम्मेलन 2023 – जलवायु परिवर्तन पर प्राथमिकता से वैश्विक मंथन। 28 वां कॉप शिखर सम्मेलन दुबई 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 पर विशेष।जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता वाला क्षेत्र है इसके खतरों से निपटने, निर्धारित योजनाओं का सटीक क्रियान्वयन जरूरी है।

Kishan
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

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