कोलकाता: पश्चिम बंगाल में अब सरकारी वकील की नियुक्ति में भी धांधली पर विवाद गहराने लगा है। राजभवन द्वारा नियुक्ति प्रक्रिया में प्रक्रियात्मक खामियों को उजागर करने के बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय में नए लोक अभियोजक (सरकारी वकील) की नियुक्ति पर विवाद छिड़ गया है। पूर्व लोक अभियोजक शाश्वतगोपाल मुखोपाध्याय के आठ नवंबर को इस्तीफा देने के बाद राज्य सरकार ने उनके स्थान पर देबाशीष रॉय को नामित किया। हालांकि, राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के कार्यालय ने केवल रॉय का नाम प्रस्तावित करने पर आपत्ति जताई क्योंकि परंपरा के अनुसार राज्य को इस संबंध में तीन नाम आगे बढ़ाने होंगे।
शनिवार को राज्य सरकार के सूत्रों ने कहा कि मामला सुलझने तक रॉय लोक अभियोजक (प्रभारी) के रूप में मामले का प्रबंधन करेंगे। यानी अदालत में राज्य सरकार का पक्ष रखेंगे। शाश्वतगोपाल मुखोपाध्याय मौजूदा तृणमूल कांग्रेस शासन के दौरान सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले सरकारी वकील थे। वह 2017 से इस पद पर थे। अपने इस्तीफे के बाद उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार ने उनके प्रतिस्थापन के पीछे कोई कारण नहीं बताया है।
लोक अभियोजक के पद से उनके इस्तीफे के कुछ दिनों बाद, राज्य के महाधिवक्ता एस.एन. मुखोपाध्याय ने भी पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह कौन लेगा यह अभी स्पष्ट नहीं है। लोक अभियोजक कलकत्ता उच्च न्यायालय में सभी आपराधिक मुकदमों की निगरानी का पदासीन प्रभारी होता है। कम से कम तीन लोगों के नाम देने के नियम के बावजूद राज्य सरकार ने जब एक ही अधिवक्ता का नाम दिया है तो इस पर विवाद खड़ा हो रहा है।