कूचबिहार: कूचबिहार के 400 साल पुराने शाही परिवार की महालक्ष्मी की पूजा आज भी शाही परंपरा के अनुसार की जाती है। कभी इस महालक्ष्मी की पूजा कूचबिहार के राजमहल में होती थी, लेकिन अब इस महालक्ष्मी की पूजा कूचबिहार के मदनमोहन मंदिर में होती है। एक समय कोजागरी पूर्णिमा तिथि पर राजमहल में महालक्ष्मी की पूजा की जाती थी। यहां तक कि महाराजा और राजपरिवार के सदस्य भी उस पूजा में शामिल होते थे। फिलहाल इस पूजा की जिम्मेदारी कूचबिहार देवत्र ट्रस्ट बोर्ड के पास है।
कोई राजा-महाराजा न होने के बावजूद भी महालक्ष्मी पूजा पुराने नियमों का पालन करते हुए आज भी धूमधाम से की जाती है। लक्ष्मी पूजा के दिन मदनमोहन मंदिर में राजपरिवार की महा लक्ष्मी के अलावा भगवान इंद्र की भी पूजा की जाती है। लक्ष्मी पूजा के दिन पूजा देखने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है। राजपरिवार की इस महालक्ष्मी पूजा में बलि का विधान है। इस शाही काल की पूजा में लक्ष्मी पूजा के दिन महालक्ष्मी पूजा में कबूतरों के एक जोड़े की बलि देने की परंपरा है। महालक्ष्मी की मूर्ति सामान्य लक्ष्मी की मूर्ति से बहुत भिन्न होती है।
यहां महालक्ष्मी के वाहन के रूप में उल्लू की जगह हाथियों का प्रयोग किया जाता है। कूचबिहार के शाही पुरोहित हिरेंद्रनाथ भट्टाचार्य ने कहा कि यह महालक्ष्मी पूजा शाही काल के सभी नियमों के अनुसार आयोजित की गई थी। इस महालक्षी की पूजा लगभग 400 वर्ष पुरानी है। एक समय महल में इसी महालक्ष्मी की पूजा होती थी। उस समय महाराजा स्वयं इस पूजा में भाग लेते थे। वर्तमान में मदनमोहन मंदिर में उस राजसी काल के नियमों के अनुसार पूजा की जाती है। कई भक्त लक्ष्मी पूजा के दिन महालक्षी की पूजा करने के लिए मदनमोहन मंदिर में आते हैं।