वाराणसी। पितृ पक्ष में पितृ धरती पर परिजनों से मिलने आते हैं। आश्विन माह की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पितृ विसर्जन अमावस्या के विषय में पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री जी ने बताया कि इस वर्ष पितृ विसर्जन, अमावस्या तिथि का श्राद्ध, अज्ञात मृत्यु तिथि वालों का श्राद्ध, सर्वपितृ श्राद्ध एवं श्राद्ध पक्ष 14 अक्तूबर शनिवार को समाप्त होगा।
किसी परिजन की मृत्यु जिस तिथि को हुई हो उनका श्राद्ध उस तिथि के दिन ही किया जाता है। अगर जिनको पितरों के देहांत की तिथि याद नहीं हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है इस दिन को सर्वपितृ श्राद्ध कहा जाता है।
पितृ विसर्जन विधि : सर्वपितृ अमावस्या के दिन शाम दो-दो पूड़ियों पर भोजन, चावल, फल, मिठाई, पुष्प, दक्षिणा आदि घर की मुख्य द्वार (चौखट) पर दोनों तरफ रख दें उनके ऊपर सरसों के तेल का एक-एक दीपक जलाएं, जिसका अर्थ है कि पितृ जाते समय भूखे न जायें। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को अलोकित करना है। अंत में पितरों से यह प्रार्थना करें कि पितृपक्ष समाप्त हो गया है इसलिए वह परिवार के सभी सदस्यों को आशीर्वाद देकर अपने लोक में जाएं।
श्राद्ध के दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध व तर्पण एवं पूजन कर, पात्र में सबसे पहले देवता, पितरों, गाय माता, कौवे, कुत्ते, चींटी का भोजन का थोड़ा सा भाग निकालें, फिर ब्राह्मणों एवं ज़रूरतमंद को भोजन करवाए एवं दक्षिणा दे।
ज्योर्तिविद वास्तु दैवग्य
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848