विधि आयोग ने पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत यौन संबंध बनाने की उम्र 18 से 16 करने के मामले पर अपने रिपोर्ट दी
यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पोक्सो) अधिनियम 2012 में सबूत के अभाव व नाबालिक अपराधी की आड़ में छूटने को रेखांकित करना जरूरी – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर बढ़ते प्रौद्योगिकी, तकनीकी और डिजिटलाइजेशन के चलते जहां एक ओर दुनिया को बहुत लाभ मिले हैं तो इसके कुछ दुष्परिणाम भी हुए हैं। मसलन आर्थिक अपराधों में वृद्धि, ऑनलाइन गड़बड़ियां, डाटा चोरी सहित सबसे अधिक दूषित बढ़ती पोर्नोग्राफी की क्लिप व फिल्मों के आसानी से अनेक एप्स के द्वारा मोबाइल फोन पर उपलब्धि से यौन शोषण के मामलों में वृद्धि होनें को रेखांकित करना जरूरी है। जैसा कि हम देख रहे हैं आज छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइलें आ गई है और वह किस तरह के प्रोग्राम, क्लिप देखते हैं हम अंदाज नहीं लगा सकते। बस!! यही से हमें दुष्परिणाम मिलने शुरू हो जाते हैं। हालांकि सरकार ने इसकी सुरक्षा में संशोधित यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पास्को) अधिनियम 2012 बनाया है जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ उसकी सहमति से भी संबंध, रेप की श्रेणी में आता है। पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत आपसी सहमति से यौन संबंध बनाने की न्यूनतम उम्र अभी 18 साल है। यानि 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ उसकी सहमति से भी संबंध को रेप ही माना जाता है।
इसके चलते किशोरवय रिश्तों से पनपे यौन सम्बंध भी अपराध के दायरे में आ जाते है। विभिन्न हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट इस पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। नवंबर 2022 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने लॉ कमीशन से इस संबंध में रिपोर्ट तैयार करने का आग्रह किया था, इसी तरह मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भी कहा था। उधर 2021 में संसदीय समिति ने भी उम्र 18 से घटकर 16 करने की सिफारिश की थी, जिसका मामला विधि आयोग को सोपा गया था। जिसने 27 सितंबर 2023 को अपनीं 283 वीं रिपोर्ट विधि मंत्रालय को सौंप दी, जिसमें पोक्सो एक्ट के तहत अपनी सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र 18 से घटकर 16 साल करने के पक्ष में नहीं है। चूंकि यह मामला बच्चों के बढ़ते यौन शोषण पर चिंता का है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पॉक्सो) अधिनियम 2012 में सबूत के अभाव व नाबालिक अपराधी की आड़ में छुटने को रेखांकित करना जरूरी है।
साथियों बात अगर हम विधि आयोग की 283 वीं रिपोर्ट की करें तो, लॉ कमीशन पॉक्सो एक्ट के तहत आपसी सहमति से यौन सम्बंध बनाने की उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल करने के पक्ष में नहीं है। सरकार को सौंपी अपनी 283वीं रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि आपसी सहमति की उम्र को 18 से घटा कर 16 करने के दुष्परिणाम होंगे, इसका असर बाल विवाह और बच्चों की तस्करी के खिलाफ चल रहे अभियान पर पड़ेगा। आयोग का कहना है कि ऐसे दौर में जब बच्चों के खिलाफ साइबर स्पेस में यौन अपराध और फुसलाकर अपराध की घटनाएं बढ़ रही ऐसी किसी भी कोशिश के गंभीर परिणाम होंगे।आपसी सहमति के मामलों में पॉक्सो एक्ट में संसोधन का सुझाव हालांकि आयोग ने ऐसे केस में जहां पीड़ित 16 या उससे अधिक उम्र की हो और यौन सम्बन्धों के लिए लड़की की मूक सहमति है, पॉक्सो एक्ट में संसोधन के लिए विशेष सुझाव भी दिये है। ताकि ऐसे मामलों में सज़ा निर्धारित करते वक्त जज केस के तथ्यों को ध्यान में रखकर फैसला ले सके। आयोग ने कहा है कि अगर कोर्ट संतुष्ट हो कि आरोपी और पीड़ित के बीच नजदीकी संबंध थे तो कोर्ट अपने विवेक से सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पॉक्सो एक्ट में निर्धारित न्यूनतम सजा से कम सजा भी दे सकता है।
हालांकि कोर्ट को इसके कारण अपने लिखित आदेश में दर्ज कराने होंगे। आयोग ने कहा है कि आरोपी के साथ कोर्ट नरमी कुछ तथ्यों के आधार पर बरत सकता है। जैसे, पीड़ित और आरोपी की उम्र में 3 साल से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। आरोपी का पहले से कोई अपराधिक इतिहास न हो घटना के बाद आरोपी का आचरण सही रहा हो, मामले में पीड़ित पर प्रभाव डालने, धोखाधड़ी या हिंसा की कोशिश नहीं की गई हो। बच्चों की मानव तस्करी की कोई कोशिश ना की गई हो। आरोपी पीड़ित पर प्रभाव डालने की स्थिति में ना हो। जैसे कि बच्चों के नजदीकी पारिवारिक सदस्य जहां कोर्ट को लगता हो कि इन संबंधों के लिए पीड़ित की मूक सहमति थी पीड़ित का पोर्नोग्राफी के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया हो। भारत के 22वें विधि आयोग ने केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज ऐक्ट के तहत सहमति की उम्र पर बात की गई है।विधि आयोग ने कहा कि सहमति की मौजूदा उम्र 18 साल है और इसके साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए।
साथियों बात अगर हम मार्च 2021 में संसदीय समिति ने पॉक्सो के तहत सौंपी अपनी रिपोर्ट की करें तो, संसदीय समिति ने केंद्र सरकार से पॉक्सो एक्ट के तहत किशोर की उम्र 18 से घटाकर 16 साल करने की सिफारिश की थी। संसदीय समिति का कहना था कि नाबालिग यौन अपराधी अधिक गंभीर और जघन्य अपराध कर सकते हैं, अगर उन्हें बिना कार्रवाई और गैर-जिम्मेदार छोड़ दिया जाए। कांग्रेस सांसद की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने राज्यसभा को सौंपी अपनी रिपोर्ट में पाया था कि बच्चों के यौन अपराधों से संरक्षण पॉक्सो अधिनियम के तहत बड़ी संख्या में मामले सामने आए हैं, जहां किशोर अपराधियों की आयु सीमा कम है। समिति ने कहा था कि यह माना जाता है कि नाबालिग यौन अपराधियों गंभीर और जघन्य अपराध कर सकते हैं, अगर उन्हें बिना कार्रवाई और बिना शर्त छोड़ दिया जाए, इसलिए, इन प्रावधानों को फिर से देखना बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि अधिक से अधिक किशोर ऐसे अपराधों में शामिल हो रहे हैं।
समिति ने सिफारिश की थी कि गृह मंत्रालय इस मामले को महिला व बाल विकास मंत्रालय के साथ 18 साल की मौजूदा आयु सीमा की समीक्षा करे और यह देखे कि क्या इसे घटाकर 16 साल किया जा सकता है। संसदीय समिति ने कहा था कि यह माना जाने वाला दृष्टिकोण है कि कानूनीजागरूकता की कमी के कारण, विशेष रूप से नाबालिग बच्चों और किशोरों के बीच, वे अपने स्कूलों और कॉलेजों में पीछा करने, ऑनलाइन ट्रोलिंग, छेड़छाड़ जैसे अपराधों में शामिल हो रहे हैं, इसलिए उन्हें साइबर सुरक्षा का ज्ञान प्रदान करना आवश्यक है, ताकि वे अपराधियों द्वारा लक्षित न हों। समिति ने सिफारिश की थी कि गृह मंत्रालय शिक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर स्कूली पाठ्यक्रम में साइबर सुरक्षा की मूल बातें शामिल कर सकता है समिति ने कहा था कि साइबर स्पेस के उपयोग और दुरुपयोग के बारे में समाज के सभी वर्गों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान का संचालन करना बहुत महत्वपूर्ण है।
साथियों बात अगर हम पॉक्सो एक्ट 2012 की करें तो, अभी पॉक्सो या भारतीय दंड संहिता के तहत गंभीर अपराध में 16 से 18 साल के उम्र वाले को बालिग के रूप में रखा जाता है। आमतौर पर यह निर्णय किशोर न्याय बोर्ड के पास होता है। कोई किशोर अगर अपराध करते पकड़ा जाता है तो उसे सुधार गृह में भेजा जाता है, न कि जेल में। साथ ही उसकी पुनर्वास की एक प्रक्रिया भी तैयार की जाती है। अक्सर ऐसा देखा जाता है अपराधी नाबालिक होने कीआड़ में बड़ा अपराध कर बैठता है। अगर वह पकड़ भी लिया जाता है तो कानून की आड़ में बच जाता है। इसका एक उदाहरण दिल्ली चलती बस में हुआ सामूहिक दुष्कर्म था जहां 17 साल के अपराधी को नाबालिग मानकर सजा दी गई। इस घटना के बाद से ही नाबालिग की उम्र घटाने को लेकर कई समितियां काम कर रही हैं।
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) की ओर से पोक्सो एक्ट- 2012 के तहत दर्ज केसों और उनके निपटारे के तरीके के अध्ययन के बाद यह तथ्य उभर कर सामने आया कि सुबूतों के अभाव में प्रतिदिन यौन शोषण के शिकार चार बच्चों को न्याय नहीं मिल पाता। अध्ययन में यह बात उभर कर सामने आई कि वर्ष 2017 और 2019 के बीच केसों को बंद करने की संख्या बढ़ गई। पुलिस ने केसों को जांच के बाद सुबूतों के अभाव का हवाला देते हुए बंद कर दिया और आरोप पत्र दाखिल नहीं किए। अध्ययन में बताया गया कि देश में बच्चों के खिलाफ यौन शोषण की घटनाओं में वृद्धि हुई है। भले ही देश में बच्चों की सुरक्षा के मकसद से पोक्सो कानून लागू किया गया मगर इस पर अमल की रफ्तार बेहद धीमी और असंतोषजनक है। केएससीएफ के मुताबिक 2019 तक करीब 89 फीसदी मामलों को न्याय का इंतजार था।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि बच्चों के बढ़ते यौन शोषण पर चिंतन। विधि आयोग ने पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत यौन संबंध बनाने की उम्र 18 से 16 करने के मामले पर अपने रिपोर्ट दी।यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पोक्सो) अधिनियम 2012 में सबूत के अभाव व नाबालिक अपराधी की आड़ में छूटने को रेखांकित करना ज़रूरी है।