अंतरराष्ट्रीय मंचों रूपी प्लेटफार्म से सशक्त कल्याणकारी मानवीय श्रृंखला बनाकर मानव केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना समय की मांग है।
वैश्विक मानव निर्मित व प्राकृतिक विपत्तियों से निपटाने मज़बूत मानव श्रृंखला उपाय की सटीकता को रेखांकित करना समय की मांग – एडवोकेट किशन भावनानी
किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तरपर कोरोना महामारी के दौरान करीब करीब हर देश के स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी, विज्ञान सहित अनेक तकनीकें भी पीड़ितों और मृतकों की संख्या कम नहीं कर पाई। याने सभी तथाकथित सुदृढ़ संसाधन इस महामारी के सामने पंगु नजर आए। परंतु इसमें हमने एक बात नोट किया कि लगभग सभी देशों नें मिलकर दवाइयां, मेडिकल, मेडिकल इंस्ट्रूमेंट, खाद्य सहित अनेक क्षेत्रों की सहायता कुशल कल्याणकारी मानवीय श्रृंखला बनाकर मानव केंद्रित दृष्टिकोण अपनाकर, एक दूसरे की मदद कर रहे थे। भारत ने भी करीब 150 देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की तो भारत को भी भारी विपत्ति के समय विकसित और विकासशील देशों द्वारा मेडिकल इंस्ट्रूमेंट की मदद की गई थी। यह बात हम आज इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि भारत में 9-10 सितंबर से जी-20 शिखर सम्मेलन वसुधैव कुटुम्बकम शुरू है। इसके पहले 5-7 सितंबर 2023 को आसियान शिखर सम्मेलन, इसके पहले जी-10, शंघाई इत्यादि शिखर सम्मेलनों सहित अनेक वैश्विक शिखर सम्मेलनों में एक बात उभर कर आई है कि मानवीय मूल्यों पर अधिक महत्व दिया जा रहा है।
चूंकि भारत आदि अनादि काल से मानवीय मूल्यों की तरफदारी करता रहा है, अब इसमें चार कदम आगे बढ़कर जी-20 शिखर सम्मेलन को वसुधैव कुटुम्बकम यानें पूरा विश्व एक परिवार है की थीम बनाकर अब जीडीपी केंद्रित दृष्टिकोण से मानव केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बढ़ने का काम जोरों पर किया जा रहा है। इस पर पूरी दुनियां को साझा दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। जिससे वैश्विक मानव निर्मित व प्राकृतिक विपरीताओं से निपटने के लिए मजबूत मानव श्रृंखला उपाय की सटीकता को रेखांकित किया जाना चाहिए। चूंकि अब पूरी दुनियां का अब वसुधैव कुटुम्बकम पर ध्यान है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, अंतरराष्ट्रीय मंचों रूपी प्लेटफार्मस से सशक्त कल्याणकारी मानवीय श्रृंखला बनाकर मानव केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना समय की मांग है।
साथियों बात अगर हम भारत की आदि अनादि काल से सोच और जलवायु परिवर्तन के संबंध में दृष्टिकोण की करें तो, वसुधैव कुटुम्बकम, हमारी भारतीय संस्कृति के इन दो शब्दों में एक गहरा दार्शनिक विचार समाहित है। इसका अर्थ है, पूरी दुनिया एक परिवार है। यह एक ऐसा सर्वव्यापी दृष्टिकोण है जो हमें एक सार्वभौमिक परिवार के रूप में प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक ऐसा परिवार जिसमें सीमा,भाषा और विचारधारा का कोई बंधन ना हो।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम द्वारा 7 सितंबर 2023 को व्यक्त किए गए अपने विचारों की करें तो जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती होगी। इससे निपटने में मोटा अनाज या श्रीअन्न से बड़ी मदद मिल सकती है। श्रीअन्न क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर को भी बढ़ावा दे रहा है। इंटरनेशनल इयर ऑफ मिलेट्स के दौरान हमने श्रीअन्न को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया है। द डेक्कन हाई लेवल प्रिंसिपल्स ऑन फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन से भी इस दिशा में सहायता मिल सकती है। टेक्नॉलजी परिवर्तनकारी है लेकिन इसे समावेशी भी बनाने की जरूरत है। अतीत में तकनीकी प्रगति का लाभ समाज के सभी वर्गों को समान रूप से नहीं मिला। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने दिखाया है कि कैसे टेक्नॉलजी का लाभ उठाकर असमानताओं को कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, दुनियां भर में अरबों लोग जिनके पास बैंकिंग सुविधा नहीं है, या जिनके पास डिजिटल पहचान नहीं है, उन्हें डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) के माध्यम से साथ लिया जा सकता है। डीपीआई का उपयोग करके हमने जो परिणाम प्राप्त किए हैं, उन्हें पूरी दुनियां देख रही है, उसके महत्व को स्वीकार कर रही है।
अब, जी-20 के माध्यम से हम विकासशील देशों को डीपीआई अपनाने, तैयार करने और उसका विस्तार करने में मदद करेंगे, ताकि वो समावेशी विकास की ताकत हासिल कर सकें। भारत में, प्राचीन काल से प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर आगे बढ़ना हमारा एक आदर्श रहा है और हम आधुनिक समय में भी क्लाइमेट एक्शन में अपना योगदान दे रहे हैं। ग्लोबल साउथ के कई देश विकास के विभिन्न चरणों में हैं और इस दौरान क्लाइमेट एक्शन का ध्यान रखा जाना चाहिए। क्लाइमेट एक्शन की आकांक्षा के साथ हमें ये भी देखना होगा कि क्लाइमेट फाइनेंस और ट्रांसफर ऑफ टेक्नॉलजी का भी ख्याल रखा जाए। हमारा मानना है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए पाबंदियों वाले रवैये को बदलना चाहिए। क्या नहीं किया जाना चाहिए से हटकर क्या किया जा सकता है वाली सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। हमें एक रचनात्मक कार्य संस्कृति पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। एक टिकाऊ और सुदृढ़ ब्लू इकॉनमी के लिए चेन्नई एचएलपी हमारे महासागरों को स्वस्थ रखने में जुटी है।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम के अर्थव्यवस्था और जी-20 के संबंध में विचारों की करें तो, भारत की डेमोग्राफी, डेमोक्रेसी, डाइवर्सिटी और डेवलपमेंट के बारे में किसी और से सुनना एक बात है और उसे प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करना बिल्कुल अलग है। मुझे विश्वास है कि हमारे जी-20 प्रतिनिधि इसे स्वयं महसूस करेंगे। हमारी जी-20 अध्यक्षता विभाजन को पाटने, बाधाओं को दूर करने और सहयोग को गहरा करने का प्रयास करती है। हमारी भावना एक ऐसी दुनिया के निर्माण की है, जहां एकता हर मतभेद से ऊपर हो, जहां साझा लक्ष्य अलगाव की सोच को खत्म कर दे। जी-20 अध्यक्ष के रूप में, हमने वैश्विक पटल को बड़ा बनाने का संकल्प लिया था, जिसमें यह सुनिश्चित किया गया कि हर आवाज सुनी जाए और हर देश अपना योगदान दे। मुझे विश्वास है कि हमने कार्यों और स्पष्ट परिणामों के साथ अपने संकल्प पूरे किये है। जी-20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान, यह विचार मानव केंद्रित प्रगति के आह्वान के रूप में प्रकट हुआ है। हम वन अर्थ के रूप में, मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक साथ आ रहे हैं।
हम वन फ़ैमिली के रूप में विकास के लिए एक-दूसरे के सहयोगी बन रहे हैं और वन फ्यूचर के लिए हम एक साझा उज्जवल भविष्य की ओर एक साथ आगे बढ़ रहे हैं। भारत के लिए, जी-20 की अध्यक्षता केवल एक उच्च स्तरीय कूटनीतिक प्रयास नहीं है। मदर ऑफ डेमोक्रेसी और मॉडल ऑफ डाइवर्सिटी के रूप में हमने इस अनुभव के दरवाजे दुनिया के लिए खोल दिये हैं।आज किसी काम को बड़े स्तर पर करने की बात आती है तो सहज ही भारत का नाम आ जाता है। जी-20 की अध्यक्षता भी इसका अपवाद नहीं है। यह भारत में एक जनआंदोलन बन गया है। जी-20 प्रेसीडेंसी का हमारा कार्यकाल खत्म होने तक भारत के 60 शहरों में 200 से अधिक बैठकें आयोजित की जा चुकी होंगी। इस दौरान हम 125 देशों के लगभग एक लाख प्रतिनिधियों की मेजबानी कर चुके होंगे।
किसी भी प्रेसीडेंसी ने कभी भी इतने विशाल और विविध भौगोलिक विस्तार को इस तरह से शामिल नहीं किया है। भारत का सबसे तेज गति से बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाना कोई आकस्मिक घटना नहीं है। हमारे सरल, व्यावहारिक और सस्टेनेबल तरीकों ने कमजोर और वंचित लोगों को हमारी विकास यात्रा का नेतृत्व करने के लिए सशक्त बनाया है। अंतरिक्ष से लेकर खेल, अर्थव्यवस्था से लेकर उद्यमिता तक, भारतीय महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं। आज महिलाओं के विकास से आगे बढ़कर महिलाओं के नेतृत्व में विकास के मंत्र पर भारत आगे बढ़ रहा है। हमारी जी-20 प्रेसीडेंसी जेंडर डिजिटल डिवाइड को पाटने, लेबर फोर्स में भागीदारी के अंतर को कम करने और निर्णय लेने में महिलाओं की एक बड़ी भूमिका को सक्षम बनाने पर काम कर रही है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरी विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि दुनियां जीडीपी के दृष्टिकोण से हटकर अब मानव केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बढ़ चली है।अंतरराष्ट्रीय मंचों रूपी प्लेटफार्म से सशक्त कल्याणकारी मानवीय श्रृंखला बनाकर मानव केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना समय की मांग है। वैश्विक मानव निर्मित व प्राकृतिक विपत्तियों से निपटाने मज़बूत मानव श्रृंखला उपाय की सटीकता को रेखांकित करना समय की मांग है।