कोलकाता। स्वतंत्रता दिवस के जश्न में महज दो दिन बाकी रह गए हैं। जिन लाखों क्रांतिकारियों और बलिदानों की वजह से हमें आजादी मिली उनके बारे में अभी भी बहुत कम जानकारी भारत वासियों को है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय इतिहास में इस बात के दावे किए जाते हैं कि खुदीराम बोस और करतार सिंह सराभा सबसे कम उम्र के बलिदानी थे। जबकि हकीकत इससे कोसों दूर है। खुदीराम बोस को 16 साल और करतार सिंह सराभा को 15 साल की उम्र में फांसी पर लटकाया गया था।
जबकि बिहार विधानसभा पर लहरा रहे अंग्रेजी ध्वज को उतार कर तिरंगा लहराने के दौरान अंग्रेजों की गोलियों से छलनी होकर बलिदान हुए देवीपद चौधरी केवल 14 साल के थे। उसी तरह से पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के लाल पुरी माधव प्रमाणिक भी 29 सितंबर 1942 को आतताई गोरों की गोलियों से छलनी होकर जब मातृभूमि पर बलिदान हुए तब उनकी भी उम्र महज 14 साल थी।
हां खुदीराम बोस और करतार सिंह साराभा सबसे कम उम्र में फांसी दिए जाने वाले बलिदान जरूर थे। अगस्त क्रांति के बलिदानियों के बारे में लिखी अपनी किताब में इतिहासकार नागेंद्र सिन्हा बताते हैं कि पूरी माधव प्रमाणिक का जन्म तत्कालीन बंगाल प्रांत के मेदिनीपुर जिला अंतर्गत सुताहाटा थाना क्षेत्र के द्वारीबेरिया गांव में वर्ष 1928 में हुआ था। मेदनीपुर एक ऐसा जिला था जहां शुरुआत से ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांतिकारियों ने बिगुल फूंक दिया था।
ये भी पढ़ें :
- दंगों में जल रहा था कोलकाता, शांति के लिए पहुंचे गांधी जी
- बलिदानी तारा पद जिनकी याद में रेलवे ने शुरू की है हूल एक्सप्रेस
मेदनीपुर में पोस्टिंग से डरते थे अंग्रेज अधिकारी, तीन मजिस्ट्रेट की हुई थी हत्या – इस जिले में पोस्टिंग होते ही अंग्रेज अधिकारी सिहर उठते थे। इसकी वजह थी कि सात अप्रैल 1931 को पेड्डी, 30 अप्रैल 1932 को डग्लस और 2 सितंबर 1933 को बुर्ज अंग्रेज मजिस्ट्रेट को क्रांतिकारियों ने सरेआम मौत के घाट उतार दिया था। इन की गिनती विप्लवियों के कट्टर दुश्मन के रूप में की जाती थी। मेदनीपुर का अपना एक अलग इतिहास है।
यहां क्रांतिकारियों ने इस कदर एकजुट होकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी की आजादी से बहुत पहले 1942 में ही यहां पूरी अंग्रेजी फौज को खदेड़ कर स्वतंत्र “ताम्रलिप्त सरकार” का गठन कर दिया गया था।1942 में जब पूरे देश में भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित कर अगस्त क्रांति की शुरुआत की गई तो मेदनीपुर जिला कहां पीछे रहने वाला था।
यहां क्रांतिकारियों के उग्र रवैया से सिहरी हुई ब्रिटिश सरकार ने अगस्त 1942 में मुनादी करवा दी कि किसी भी क्रांतिकारी को देखते ही गोली मार दी जाएगी। लेकिन क्रांतिकारियों को इससे क्या फर्क पड़ने वाला था जिन्होंने लगातार अंग्रेज मजिस्ट्रेटों को मौत के घाट उतारा था वे कहां चुप बैठने वाले थे। उस समय पूरी माधव प्रमाणिक की आयु सिर्फ 14 साल थी और उनके क्रांतिकारी साथी भी कमों बेस इसी उम्र के थे।
ये भी पढ़ें :
- बंगाल के देवीपद ने 14 साल की बाली उमर में दिया था बलिदान
- अशफाक उल्ला खां ने अंग्रेजों के खिलाफ फूंका था सशस्त्र क्रांति का बिगुल
सभी ने मिलकर अंग्रेजी हुकूमत की अवहेलना कर 26 सितंबर 1942 को मेदिनीपुर जिले के अंग्रेजी सरकार के दफ्तरों पर हमले शुरू कर दिए। पूरे इलाके में टेलीग्राफ के तार काट दिए गए। सड़कों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया, बिजली के खंभों को उखाड़ कर तोड़ दिया गया। सरकारी संपत्तियों और प्रशासनिक कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया गया।
सैनिकों को नदी पार करने के लिए जो नाव रखी गई थी उसे भी 28 सितंबर 1942 को क्रांतिकारियों ने पानी में डुबो दिया। उसके बाद अगले दिन 29 सितंबर को भी ग्रामीणों की मदद से एक विशाल जुलूस मेदनीपुर में निकाला गया। अंग्रेजी हुकूमत इस मौके की ताक में थी। तमलुक स्थित सरकारी दफ्तरों की ओर उन्मुख जुलूस को घेरकर अंग्रेजी फौज और पुलिस कर्मियों ने निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।
पूरी माधव प्रमाणिक महज 14 साल के फौलादी क्रांतिकारी भीड़ में सबसे आगे थे और पुलिस की गोलियों से छलनी हो गए। वहीं मातृभूमि पर लहूलुहान होकर उन्होंने जीवन सुमन समर्पित कर दिया. क्रांतिकारियों ने बनाई थी स्वतंत्र ताम्रलिप्त सरकार – अंग्रेजी हुकूमत के इस रक्त कांड से क्रांति की ज्वाला ऐसी भड़की की पूरे क्षेत्र के लोगों ने एकजुट होकर अंग्रेजों को मारना और सरकारी दफ्तरों में आग लगाना शुरू कर दिया।
डरे-सहमें पुलिसकर्मी और अंग्रेज अधिकारी मेदनीपुर छोड़कर भाग गए और क्रांतिकारियों ने यहां भारत की पहली ताम्रलिप्त सरकार का गठन किया। यहां तिरंगा लहराया गया और मेदनीपुर को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया। हालांकि बाद में अंग्रेजों ने बड़ी फौज लाकर मेदनीपुर पर दोबारा कब्जा किया था।