गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

उज्जैन। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में आयोजित आभासीय राष्ट्रीय ऑनलाइन गोष्ठी ‘गुरु की महत्ता एवं सत्ता’ विषय पर सम्पन्न हुई। इस गोष्ठी में प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, म.प्र. ने मुख्य वक्ता के रूप में मंतव्य देते हुए कहा – गुरु कृपा से जड चेतन हो जाता है, जैसे पारस के स्पर्श से लोहा कंचन हो जाता है। गुरु सेवा से विमुख को संसार सागर से मुक्ति नहीं मिलती चाहे वह गंधर्व, पितृ, यक्ष, ऋषि, चारण और देवता ही क्यों ना हो। अध्यक्षीय भाषण में डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा- पाश्चात्य देशों में गुरु का महत्व नहीं है। वहां टीचर के रूप में देखते हैं। हमारे भारत में प्राचीन से गुरु परंपरा रही है।

जयपुर के डॉ. प्रेमचंद गांधी ने कहा- शिष्य में कृतज्ञता समर्पण ना हो तो वह गुरुत्व प्राप्त नहीं कर सकता इन सब गुणों से ही चमत्कार होता है। कार्यकारी अध्यक्ष सुवर्णा जाधव ने कहा कि- सिर्फ गुरु ही चाहता है कि उसका शिष्य उससे भी बड़ा हो। मुख्य अतिथि हरेराम वाजपेई, अध्यक्ष, हिन्दी परिवार इंदौर ने कहा कि – गुरुओं को चाहिए कि ऐसा वातावरण पैदा करें कि उनके प्रति विश्वास और आस्था बनी रहे। डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उपाध्यक्ष महिला इकाई ने कहा – आज नेट पर सभी ज्ञान उपलब्ध है परंतु, गुरू के मार्गदर्शन से ही ग्रहण करना चाहिए।

असम से जुड़ी दीपिका सितोदिया ने गुरु वंदना गाई। डॉ. शहनाज मलेक ने कहा माता-पिता ही हमारे प्रथम गुरु हैं। कृष्णा जोशी ने कहा कि गुरु का स्थान देवता से भी बड़ा होता है। प्रभा कुमारी ने कहा- गुरुवर की शरण जो भी आते हैं वह जीवन के अंधेरों में उजाला पाते हैं। डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक ने कहा- अनुशासन, संस्कारऔर जीवन में सफलता प्राप्त करने का ज्ञान गुरु से ही मिलता है। दिव्या ने कहा – भारतीय मनीषियों ने कहा है गुरु शब्द पूर्ण शब्द है। डॉ. प्रतिभा ने कहा- जब जब धिरी विपत्ति जाल में, याद गुरु की आती है। कार्यक्रम का सफल संचालन रजनी प्रभा एवं श्वेता मिश्रा ने मिलकर किया।

सरस्वती वंदना डॉ.अरुणा प्रभा ने की और अतिथि परिचय शैली भागवत ने दिया। प्रस्तावना डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण डॉ. प्रभु चौधरी, महासचिव ने और आभार व्यक्त कृष्णा जोशी, इंदौर ने किया। संगोष्ठी में मेजर संजय मिश्र, पुणे डॉ. राकेश छोकर, दिल्ली, शैली भागवत, दीपा अग्रवाल, गरिमा गर्ग, कविता वशिष्ट, सोनू कुमार, संगीता मूरसेनी, अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, अरूणा सर्राफ, मोहनलाल वर्मा, डॉ. मीना अग्रवाल आदि ने गुरु वंदना एवं विचार व्यक्त किए इस अवसर पर अनेक गणमान्य उपस्थित रहे।

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