कोलकाता। कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवग्ननम की नेतृत्व वाली एक बेंच ने राज्य शिक्षा विभाग की सहमति के बिना 11 राज्य विश्वविद्यालयों के लिए अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति के राज्यपाल सीवी आनंद बोस के फैसले को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया। 11 में से 10 कुलपतियों ने गवर्नर हाउस से नियुक्ति प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है। जनहित याचिका 5 जून को एक सेवानिवृत्त कॉलेज शिक्षक सांता कुमार घोष द्वारा दायर की गई थी। जिसमें उन्होंने गवर्नर हाउस और पश्चिम बंगाल सरकार को पक्षकार बनाने की अपील की थी।
अदालत में इस मामले की बुधवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद खंडपीठ ने जनहित याचिका खारिज कर दी और कहा कि राज्य के 11 विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियां पूरी तरह वैध हैं। खंडपीठ ने यह भी कहा कि इन कुलपतियों को वेतन, भत्ते और अन्य वित्तीय अधिकारों का भुगतान करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।
वेतन और अन्य वित्तीय अधिकारों से संबंधित खंडपीठ के आदेश का दूसरा पार्ट महत्वपूर्ण है क्योंकि 13 जून को राज्य शिक्षा विभाग ने वेतन, भत्ते और अन्य वित्तीय अधिकारों का भुगतान रोकने का आदेश दिया था। इस संबंध में राज्य सरकार के फैसले की राज्य के शैक्षणिक हलकों में कड़ी आलोचना हुई।
इन 11 अंतरिम कुलपतियों की भर्ती को लेकर पश्चिम बंगाल में गवर्नर हाउस और राज्य सचिवालय पहले से ही कोल्ड वॉर में प्रवेश कर चुके थे। सबसे पहले राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने नवनियुक्त अंतरिम कुलपतियों से नियुक्ति प्रस्ताव स्वीकार न करने की अपील जारी की। 3 जून को 11 नवनियुक्त अंतरिम कुलपतियों में से दस ने इस संबंध में राज्यपाल से कमिटमेंट की शपथ ली।
पता चला है कि कमिटमेंट की उस शपथ में 15 मुद्दे शामिल थे। कमिटमेंट का मुख्य हिस्सा यह था कि राज्य विश्वविद्यालयों द्वारा उठाए जाने वाले सभी कदम पूरी तरह से राजनीतिक और सांप्रदायिक भागीदारी से बचते हुए छात्र केंद्रित और शैक्षणिक केंद्रित होने चाहिए।