चातुर्मास में क्या करना चाहिए क्या नहीं

वाराणसी। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार 29 जून को चातुर्मास प्रारंभ है। इसके बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी 23 नवंबर को देव उठनी एकादशी के दिन चातुर्मास समाप्त होंगे। आइए जानते हैं कि चातुर्मास में क्या करें और क्या ना करें।

चातुर्मास में क्या करें :
1. व्रत : चार माह यदि उपवास के नियमों का पालन कर लिया तो सभी तरह के रोग दूर हो जाएंगे। कुछ लोग चार माह तक एक समय भी भोजन करते हैं, जबकि साधक लोग फलाहार ही लेते हैं। नियम का पालन कर सको तभी चतुर्मास करना चाहिए।
2. तप : इस दौरान साधक लोग, फर्श या भूमि पर ही सोते हैं। प्रतिदिन ध्यान, साधना या तप करते हैं। साधुजन योग, तप और साधना करते हैं आमजन भक्ति और ध्यान करते हैं।
3. संयम : चार माह ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से शक्ति का संचय होता है। ब्रह्मचर्य में इंद्रीय संयम के साथ ही मानसिक संयम भी जरूरी है।
4. मौन : इन चार माह साधक लोग मौन ही रहते हैं। मौन से मन की शक्ति बढ़ती है। यदि आप उपवास नहीं कर पा रहे हैं तो समय समय पर मौन रहकर लाभ उठा सकते हैं।

5. दिनचर्या : चातुर्मास में प्रतिदिन अच्‍छे से स्नान करते हैं। उषाकाल में उठते हैं और रात्रि में जल्दी सो जाते हैं। इससे शरीर की घड़ी में सुधार होता है।
6. पूजा-प्रार्थना : नित्य सुबह और शाम को प्रार्थना, पूजा या संध्यावंदन करते हैं। नित्य विष्णुजी का ध्यान करते हैं। विष्णु जी के साथ ही लक्ष्मी, शिव, पार्वती, गणेश, पितृदेव, श्रीकृष्‍ण, राधा और रुक्मिणीजी की पूजा करते हैं। आप चाहें तो अपने ईष्टदेव की पूजा, ध्यान या जप कर सकते हैं।
7. सत्संग : इन चार माह में साधुओं के साथ सत्संग करने से जीवन में लाभ मिलता है। सत्संग नहीं कर सकते हैं तो ऑनलाइन या अन्य साधनों से साधुओं प्रवचन सुनें।
8. दान : इन चार माहों में यथा शक्ति दान करते हैं। दान में आप चावल, अन्न, छाता, कंबल और धन का दान कर सकते हैं।
9. यज्ञोपवीत : इन चार माह के दौरान शुभ मुहूर्त में यज्ञोपवीत धारण करते हैं या उनका नवीनीकरण करते हैं।
10. तर्पण : उक्त चार माहों में पितरों के निमित्त पिंडदान या तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और पितृ दोष से छुटकारा मिलता है।

चातुर्मास में क्या नहीं करें :
1. संस्कार और मांगलिक कार्य : चार माह में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृहप्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं।
2. केश कर्तन : उक्त चार माह बाल और दाढ़ी नहीं कटवाते हैं।
3. कटु वचन : इन 4 महीनों में क्रोध, ईर्ष्या, असत्य वचन, अभिमान आदि भावनात्मक विकारों से बचते हैं।
4. यात्रा नहीं करते : उक्त चार माह में यदि व्रत धारण करके नियमों का पालन कर रहे हैं तो यात्रा नहीं करते हैं।
5. मन संयम : इन चार माह में व्यर्थ वार्तालाप, झूठ बोलना, अनर्गल बातें, मनोरंजन के कार्य आदि त्याग देते हैं।

6. त्याज्य पदार्थ : चातुर्मास में तेल से बनी चीजों का सेवन न करें, दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल, आदि का त्याग कर दिया जाता है।
7. व्रत नहीं करते हैं खंडित : चातुर्मास का व्रत रख रहे हैं तो यदि आप बीमार हो जाएं तभी व्रत का त्याग कर सकते हैं अन्यथा व्रत को खंडित नहीं करना चाहिए।

ज्योर्तिविद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848

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