।।खून का रिश्ता।।
अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। शाम का समय था, जुली और विकास दोनों अपनें गांव से दूर पार्क के एक कोने में एक झुरमुट के पीछे एक दूसरे के आगोश में समाए जा रहे थे। इधर अंधेरा गहराता जा रहा था। चिड़ियों की चहचहाहट धीरे-धीरे धीमे पड़ रही थी। वो झुंड के झुंड अपनें घोसलों की तरफ लौट रहे थे। पार्क में बैठे लोग भी अब अपनें-अपनें घर लौटने लगे थे और पार्क में सन्नाटा छाने लगा था। जुली और विकास इसकी परवाह किये बिना आलिंगन की अवस्था में पड़े हुए थे। तभी पार्क के पहरेदार ने इन दोनों के करीब आकर कहा! सर, पार्क में बैठने का समय खत्म हो गया है अब आप लोग बाहर जा सकते है। अचानक अपनें करीब किसी दूसरे व्यक्ति को देख कर जुली घबड़ा गई और अपनें आप को ठीक करनें लगी। तभी विकास ने माली को झल्लाते हुए कहा! दूर से भी तो आवाज लगा सकता था। इतना नजदीक आने की क्या जरूरत थी। माली ने सॉरी कहा और वहां से चल दिया। कुछ क्षण बाद जुली और विकास दोनों अपने-अपने घर लौट गए थे।
विकास अपनें गांव का संभ्रांत परिवार का एकलौता वारिस था। उसके पिता गांव के मुखिया थे। मुखिया पद विकास के परिवार का पुस्तैनी था। जब भी गांव में मुखिया पद का चुनाव होता विकास के घर के ही लोग चुने जाते। इसका कारण भी था। इस गांव के जो भी लोग थे सबके साथ मुखिया एक जैसा व्यवहार करते। उनके लिए किसी प्रकार के छोटे बड़े का भाव नही रहता। यही कारण था की बहुत सोच समझ कर गांव के लोग मुखिया चुनते। समय निकलता चला गया और विकास और जुली की दोस्ती प्रगाढ़ होती चली गई। मां बाप का एकलौता बेटा विकास पैसों की कमी नही होने के कारण अपनें दोस्त के साथ बहुत ही मौज मस्ती करता। अब तो वो शराब भी पीने लगा था। जुली को भी इस बात की खबर थी की विकास शराब पीने लगा है किंतु आधुनिकता के इस दौर में शराब पीना बहुत बड़ी बात नहीं लगती थी। जुली भी विकास को शराब नहीं पीने की हिदायत कभी नही देती। अब तक विकास और जुली की खबर गांव वालों को भी लग चुकी थी। क्योंकि अक्सर गांव के लोग जब गांव के नजदीक के शहर जाते तो दोनों को एक साथ घूमते फिरते देखते।
ये बातें जब विकास के पिता तक पहुंची तो पहले तो वो अपने सम्मान की दुहाई देकर जुली का साथ छोड़ने को कहते, किंतु विकास के न मानने के कारण वो भी राजी हो गए। इधर विकास के पिता ने जब यह खबर जुली के पिता को दी तो जुली के पिता तो खुशी से उछल पड़े। क्योंकि विकास के परिवार को जिले में कौन नही जानता था वो दौड़े पांव विकास के घर पहुंचे। विकास और जुली के गार्जियन ने मिल कर यह तय किया की बच्चे जब एक साथ रहने को तैयार है तो हम दोनों को भी इस रिश्ते के लिए हां कर देनी चाहिए। ऐसे भी जब दोनों पक्ष की बिरादरी एक हो।पंडित बुलाकर मुहूर्त निकाला गया और शादी की तारीख पक्की कर दी गई। विकास और जुली को जब इस रजा मंदी की खबर लगी तो दोनों काफी खुश हो गए। क्योंकि बहुत दिनों का दोनों का प्यार अब पति पत्नी का रूप लेने जा रहा था।
आखिर एक दिन ऐसा समय आया की दोनों परिणय सूत्र में बंध गये। आज उन दोनों की सुहाग रात थी। शाम से ही जुली सज धज कर अपनें प्यार विकास का इंतजार कर रही थी। किंतु वो रात गहरा जाने के बाद भी घर नही पहुंचा था। थक हार कर निराश होकर जुली अपनें पलंग के सिरहाने सर रख कर सो गई थी। तभी अचानक दरवाजे के खटखटाने की आवाज आई और जुली ने जब दरवाजा खोला तो विकास नशे में धूत अंदर आ पहुंचा। सुहाग रात के दिन विकास को इस रूप में देखकर जुली गुस्से में दो चार बात विकास को कह डाली, जो नशे में धूत विकास को नागवार गुजरा और उसने दो, चार थप्पड़ जुली को जड़ दिया। जुली अचानक अपनें साथ विकास का ऐसा बरताव देख कर घबड़ा गई। उसका पूरा शरीर भय से कांपने लगा। वो सोचनें लगी की जो व्यक्ति अपनें सुहाग रात के दिन ही ऐसा आचरण कर रहा है उसके साथ पूरा जीवन बिताना बहुत नारकीय होगा। इधर विकास पलंग पर निढाल होकर सो चुका था। जुली प्रथम रात से ही अब एक पल विकास के साथ नही रहना चाह रही थी और उसी रात अपनें मायके की तरफ निकल पड़ी।
उसे थोड़ी सी भी यह चिंता नहीं थी कि लोग क्या कहेंगे। रात के धुप अंधेरे में आखों में आसूं लिए वो आगे बढ़ रही थी। रास्तों में झींगुर की आवाज, पेड़ों के पत्तों की झनझनाहट, हवा की सरसराहट कभी कभी जुली के साहस को कम कर दे रही थी। दूर-दूर तक कुछ नहीं दिख रहा था। तभी कुछ दूरी पर एक टिमटिमाता हुआ लालटेन दिखा जो एक झोपड़ी के बाहर टंगा हुआ था। करीब जाने पर जुली को एक व्यक्ति दिखाई दिया जो। चेहरे पर लंबी अधपके दाढ़ी और सर पर गोल टोपी जो यह बताने के लिए काफी थे की वो व्यक्ति कोई मुसलमान था। उस व्यक्ति ने जुली को शादी के जोड़े में अकेले इतनी रात को जब देखा तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गई। वो समझ गया की जरूर कोई गंभीर मामला है, अन्यथा कोई नई नवेली दुल्हन अपनें घर से क्यों निकलेगी और उसकी नीयत बिगड़ गई।
उसने जुली से पूछा आप इतनी रात को कहां जा रही हो आगे का इलाका बहुत ही खराब है। आपको इतनी अंधेरी रात में नही निकलनी चाहिए था, कुछ भी हो सकता है। तभी जुली ने अपनें भावना में बह कर उस व्यक्ति को अपनी सारी बातें बता दी। यह सुन कर वह व्यक्ति मंद हीं मंद मुस्कुराया और जुली से कहा – आप मेरे इस झोपड़ी में रात को रुक जाइए मैं बाहर हीं सो लूंगा, जब सुबह होगी आप अपनें मायके चला जाईएगा। जुली को ये बात पसंद आ गई और वो वहां रुकने के लिए हां कह दी। जुली सारे दिन की थकी हारी झोपड़ी के अंदर एक चटाई पर सिमट कर सो गई। इधर नई नवेली दुल्हन को कामुक नजरों से वह व्यक्ति देखते देखते अपनें चरम पर पहुंच चुका था और अंततः उसने बाहर के दरवाजे को बंद कर दिया, जब तक जुली संभलती वो उसे अपनें काबू में कर लिया और जुली की इज्जत लूट गई।
अपनें साथ हुए इस घटना से जुली हतप्रभ रह गई। वो रोते बिलखते झोपड़ी से बाहर निकल गई। उसके समझ में नही आ रहा था की वो क्या करे और क्या न करे। वो इसी उधेड़ बुन में पड़ी एक वृक्ष के नीचे खड़ी रोये जा रही थी। वो सोच रही थी की अगर इस घटना की वजह गर्भ धारण कर ली और मायके चली गई तो मैं लोगों को क्या जवाब दूंगी और अगर पुलिस थाने गई तो तमाम सवाल पूछे जाएंगे। वो यह सोच कर अपनें ससुराल लौटना उचित समझी। वो सोचने लगी की चंद घंटों की तो बात है अभी तो घर वाले सोए होंगे और विकास जग भी गया होगा तो बोल दूंगी की तुम्हारी वजह से भय की वजह दूसरे कमरे में छुप गई थी और उस मलेक्ष के किये से अगर गर्भ धारण भी हुआ तो छुप जायेगा। जुली लंबे-लंबे फ्लांग मार कर अपने ससुराल की तरफ लौट रही थी। उसे डर था की कही आकाश साफ न हो जाय और लोग जाग न जाय।
मगर ऐसा होने से पहले वो अपनें ससुराल पहुंच चुकी थी और विकास पलंग पर निढाल सोया हुआ था। जुली के सांस में सांस आई और वो विकास के बगल में जाकर सो गई और जुली के जीवन का एक काला अध्याय सफेद हो चुका था। दूसरे दिन सुबह विकास जगा तो उसे अपने किए पर पछतावा था वो जुली से बार-बार क्षमा मांग रहा था और फिर से कभी शराब ना पीने की कसमें खा रहा था।जुली आखों से आंसू गिराए जा रही थी उसके आखों से तो रात वाली घटना को लेकर आसूं निकल रहे थे। मगर विकास को क्या पता की उसके एक गलती की सजा जुली को इस रूप में मिलेगी। वो जुली को अपनी बाहों में लेकर विश्वास दिला रहा था और कुछ दिनों तक इस सदमे में रहने के बाद जुली धीरे धीरे सहज हो गई थी। आज विकास घर पर ही था और पूरे परिवार के साथ भोजन करने बैठा था। जुली सबको खाना खिला रही थी और लोग चटकारा लेकर जुली के हाथों से बने खाने का लुफ्त उठा रहे थे की अचानक जुली को चक्कर आ गया और वो जैसे गिरने को हुई विकास ने खाना छोड़कर उसे थाम लिया।
घर वाले जुली के इस हालत को देख कर घबड़ा गए और आनन फानन में ग्रामीण स्वास्थ केंद्र ले गए। जहां चिकित्सा के बाद बताया गया की वो मां बनने वाली है। घर के सारे लोग खुशी से झूम उठे किंतु जुली मन ही मन समझ गई थी की यह गर्भ उसी कलंक का टीका है जो जिंदगी भर एक दाग के रूप में उसके सामने बना रहेगा। वो बनावटी मुस्कान लेकर सबको दिखा रही थी। समय गुजरता चला गया और जुली ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम यशराज रखा गया। यशराज सुंदर रूपवान और पढ़ने में काफी होनहार निकला। वो उच्च शिक्षा प्राप्त कर बाप दादा के जागीर को ही संभालने की वजह से बाहर नही गया। ऐसे भी अभाव किसी चीज का न था की वो बाहर जाता। इधर विकास और जुली के उम्र हो चले थे विकास अपने विरासत को अपनें बेटे यशराज को सौपना चाहता था। फिर कुछ महीने बाद ही मुखिया का चुनाव था।
इस बार विकास अपनें पुत्र यशराज को अपना प्रत्याशी बनाया था। पूरे गांव के लोगों ने यशराज का खुल कर समर्थन किया और वो अपनें परिवार के पुस्तैनी विरासत को कायम रखते हुए मुखिया चुना गया। समय गुजर रहा था। विकास और जुली को अब लग रहा था की यशराज की शादी कर देनी चाहिए अतः वो एक सुसभ्य लड़की की तलाश में थे। आज कई दिनों से यशराज के गांव में हिंदू मुसलमान का झगड़ा चल रहा था। पूरे गांव के लोग नसीरुद्दीन से परेशान थे। सबको पता था की इस झगड़े का मूल दोषी नसीरुद्दीन है जो राम खेलावन को झूठा परेशान कर रहा है। यह बात यशराज तक पहुंची तो उसने गांव के चौपाल पर शाम को पंचों के साथ एक जमायत बुलाई। शाम होते-होते गांव के लोग चौपाल पर जुटने लगे, पूरे गांव के लोगों को ये लग रहा था की यशपाल आज पंचों के साथ मिलकर दूध का दूध और पानी का पानी करेंगे और नसीरुद्दीन को उसके किए की सजा मिलेगी जिससे पूरा गांव परेशान है।
पंच बैठ गए जहां गांव के सभी बड़े बूढ़े लोग भी थे। नसीरुद्दीन और रामखेलावन दोनों को सामने रखा गया। दोनों अपनी अपनी बातों को रख रहे थे और पंच दोनों की बातों को सुन रहे थे। जब-जब नसीरूदीन की बात आती यशराज उसको सही ठहराता और सारा दोष रामखेलावन को देता। यह देख कर पंचों के साथ-साथ गांव के लोगों सहित यशराज के पिता विकास को भी लगता की यशराज का यह फैसला गलत है। जहां पूरे गांव को पता है की दोषी नसीरुद्दीन है फिर भी दोषी रामखेलावन को क्यों ठहराया जा रहा है? जब फैसला की बारी आई तो यशराज ने रामखेलावन पर 1000 रूपये नगदी और पंच को एक बकरे के भोज का फ़रमान सुनाया। सरे आम यशराज का उल्टा फैसला सुनकर गांव के लोग यशराज के खिलाफ नारे लगाने लगे और चिल्लाने लगे।
तभी भीड़ से एक बुड्ढा व्यक्ति उठकर सबसे चुप रहने का आग्रह करने लगा और सारे लोग उस बूढ़े की बात सुन कर चुप हो गए और बुड्ढा कहने लगा, मेरे प्यारे ग्रामवासियों आप लोग चिल्लाए नहीं यशराज मुखिया का इसमें कोई दोष नही यह इनके खून का असर है जो समय आने पर दिख जाता है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं की यह किसी दूसरे का पैदाइश है जो इसके खून को अपनी तरफ खींचने को मजबूर कर रहा है। जब पूरे गांव को पता है की दोषी कौन है ऐसे समय में इसका फैसला यह साबित करता है की यशराज कोई हिंदू नही हो सकता है? तभी यशराज के कुछ लोग बूढ़े को पकड़ कर घसीटते हुए बाहर ले जाने लगे। किंतु बूढ़ा अपनी बातों पर कायम रहा। विकास यह देख कर तुरंत अपनें लोगों को मना कर दिया और सभा समाप्त कर दी गई।
यशराज और उसके पिता विकास दोनों सर नीचे कर के अपने घर लौट आए, किंतु दोनो को उस बूढ़े की बातों ने एक उलझन में डाल दिया था। एक तरफ रात भर विकास अपनें जुली के बारे में सोचता तो उसे अपने आप से घृणा हो जाती क्योंकि जुली चरित्र से बिल्कुल सही थी तो दूसरी तरफ यशराज को लग रहा था की वो सही में यह फैसला गलत क्यों सुना रहा था। उस बूढ़े की बातों से वो बार-बार परेशान हो रहा था जो उसकी कानों में गूंज रहे थे, दोष यशराज का नही इसके खून का है यह जरुर किसी दूसरे की पैदाइश है जो अपनी तरफ खींच रहा है। दूसरे दिन भी जब जुली यशराज को खाने पर बुलाई तो उसने ना कह कर खाने से इंकार कर दिया।
यशराज को न खाए हुए तीसरे दिन हो गए थे। आज वो अपने उग्र रूप में था। उसने तलवार निकाली और अपने गर्दन पर रख कर अपने मां से पूछने लगा कि मां बता मैं किसका बेटा हूं मुझे पता चल चुका है अचानक यह सब देख कर विकास बुत बन गया था और यशराज बोले जा रहा था की मां जल्द बताओ अन्यथा तुम मुझे नही बचा पाओगी, पूरे गांव के लोगों को पता चल गया है की मैं किसका बेटा हूं अगर तुमने झूठ बोला तो मैं अपना सर खुद से हीं अलग कर दूंगा। यशराज का यह उग्र रूप देख कर जुली कांपने लगी थी। उसे लगा था की उसके इस घटना को कोई देख लिया होगा और बदले की भावना से सभा में बोला होगा। वो डरते-डरते यशराज और विकास को अपनें साथ घटी सारे घटना की जानकारी दे दी और यह भी बता दिया की यशराज उसी घटना का हीं नतीजा है। यह दूसरे का रक्त है ये उसका ही बेटा है।
जिस बात को मैंने आज तक अपनें अंदर दबा कर रखा था। सोची थी मेरे मरने के बाद यह राज दफ़न हो जायेगा, मगर ना जाने किसने यह देख लिया था जो तुझे बता दिया। अब यशराज को भी यह लगने लगा था की खून का असर होता है। तभी तो सही बात जानते हुए भी जब फैसले की बारी आई तो मेरे मुंह से सजा के रूप में नसीरुद्दीन की जगह रामखेलावन का नाम निकला था। इधर विकास सोच रहा था की वो क्या करता दोष तो उसके मां का भी नही था वो तो एक घटना था जिसका दोषी खुद मैं हूं अगर मैं उस दिन जुली के साथ ऐसा व्यवहार नही किया होता तो वो आखिर घर से क्यों निकलती। आखिर यशराज का भी क्या दोष वो अपनें खून को कैसे बदल सकता है।
समाज में बहुत ऐसे यशराज है जो जाने अंजाने में सही गलत का फैसला करने में अपनी खून की वजह सही फैसला नही कर पाते। दूसरे दिन अखबार के प्रथम पृष्ठ पर छपा था यशराज मुखिया के क्षेत्र में एक झोपड़ी में रह रहे एक वृद्ध व्यक्ति की मौत झोपड़ी सहित जलने से हो गई। यह किसने किया यह जांच का विषय था। इधर यशराज उस दिन के बाद गांव में नही दिखा वो इस्तीफा देकर किसी शहर में चला गया था विकास और जुली अकेले जीने को मजबूर हो गए। फिर एक बार उपचुनाव हुआ और लोगों ने पुनः विकास को चुना। इस बार विकास का पुत्रमोह भंग हो गया था अब पूरा समाज ही उसका परिवार बन गया था।
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