वाराणसी। धर्मराज दशमी या यम धर्मराज दशमी भगवान यम को समर्पित है, जो मृत्यु के हिंदू देवता हैं। धर्मराज दशमी 31 मार्च, 2023 को है। यम को समर्पित एक पूजा जिसे यमधर्मराजू के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन आयोजित की जाती है। यह व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। मूल रूप से इस दिन की जाने वाली पूजा एक भक्त से मृत्यु के भय को दूर करने पर केंद्रित होती है। कथा उपनिषद में युवा नचिकेता की कहानी सुनना अच्छा होगा जो मृत्यु के रहस्य को जानने के लिए यम के घर गए थे। धर्मराज दशमी का व्रत व त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष की दशमी को आता है। धर्मराज को यमराज भी कहते हैं। यमराज को पितृपति और दण्डधर भी कहते हैं।
धर्मराज दशमी व्रत रखने का महत्व : सबसे पहले युधिष्ठिर ने अपने खोए हुए भाइयों को पाने के लिए यक्ष की कृपा से यह व्रत रखा था। इस व्रत के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। यदि किसी का यात्रा पर गया पति किसी कारणवश लौट नहीं पा रहा है तो पत्नी को यह व्रत रखना चाहिए। वैकुंठ में जाने की इच्छा से भी यह व्रत रखा जाता है। इस व्रत को रखने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कन्याएं यह व्रत रखती हैं तो उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। मान्यता अनुसार रोगी रखता है तो रोग दूर हो जाता है। पुत्र की कामना, अच्छी खेती, अच्छे राजकार्य के लिए भी यह व्रत रखा जाता है।
धर्मराज दशमी की कहानी : पुराणों में धर्मराज जी की कई कथाएं मिलती हैं उनमें से एक कथा ज्यादा प्रचलित है। कहते हैं कि एक ब्राह्मणी मृत्यु के बाद यम के द्वारा पहुंची। वहां उसने कहा कि मुझे धर्मराज के मंदिर का रास्ता बताओ। एक दूत ने कहा कि कहां जाना है? वो बोली मुझे धर्मराज के मंदिर जाना है। वह महिला बहुत दान पुण्य वाली थी। उसे विश्वास था कि धर्मराज के मंदिर का रास्ता अवश्य खुल जाएगा। दूत ने उसे रास्ता बता दिए। वहां देखा कि बहुत बड़ा सा मंदिर है। वहां हीरे मोती जड़ती सोने के सिंहासन पर धर्मराज विराजमान है और न्यायसभा ले रहे हैं। न्याय नीति से अपना राज्य सम्भाल रहे थे। यमराजजी सबको कर्मानुसार दंड दे रहे थे। ब्राह्मणी ने जाकर प्रणाम किया और बोली मुझे वैकुण्ठ जाना हैं। धर्मराज जी ने चित्रगुप्त से कहा लेखा-जोखा सुनाओ। चित्रगुप्त ने लेखा सुनाया। सुनकर धर्मराजजी ने कहां तुमने सब धर्म किए पर धर्मराज जी की कहानी नहीं सुनी। वैकुण्ठ में कैसे जाएगी?
महिला बोली, ‘धर्मराजजी की कहानी के क्या नियम हैं? धर्मराज जी बोले, ‘कोई एक साल, कोई छ: महीने, कोई सात दिन ही सुने पर धर्मराजजी की कहानी अवश्य सुने। फिर उसका उद्यापन कर दें। उद्यापन में काठी, छतरी, चप्पल, बाल्टी रस्सी, टोकरी, लालटेन, साड़ी, ब्लाउज का बेस, लोटे में शक्कर भरकर, पांच बर्तन, छ: मोती, छ: मूंगा, यमराजजी की लोहे की मूर्ति, सोने की मूर्ति, चांदी का चांद, सोने का सूरज, चांदी का सातिया ब्राह्मण को दान करें। प्रतिदिन चावल का सातिया बनाकर कहानी सुने।
यह बात सुनकर ब्राह्मणी बोली, हे धर्मराज मुझे 7 दिन वापस पृथ्वीलोक पर भेज दो। मैं कहानी सुनकर वापस आ जाऊंगी। धर्मराजजी ने उसका लेखा-जोखा देखकर 7 दिन के लिए पुन: पृथ्वीलोक भेज दिया। ब्राह्मणी जीवित हो गई। ब्राह्मणी ने अपने परिवार वालों से कहा, मैं 7 दिन के लिए धर्मराज जी की कहानी सुनने के लिए वापस आई हूं। इस कथा को सुनने से बड़ा पुण्य मिलता है। उसने चावल का सातिया बनाकर परिवार के साथ 7 दिनों तक धर्मराजजी की कथा सुनी। 7 दिन पूर्ण होने पर धर्मराजजी ने अपने दूत भेजकर उसे वापस ऊपर बुला लिया। अंत में ब्राह्मणी को वैकुण्ठ में श्रीहरी के चरणों में स्थान मिला।
ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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