अशोक वर्मा “हमदर्द” की कहानी : जवानी की जंग

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। आज फिर जया को अपनें जवानी पर तरास आ रहा था, वो मन ही मन अपनें नसीब को कोस रही थी इसके अलावा उसके पास और कोई रास्ता नही था। जया के शादी को वर्षों गुजर गये थे किंतु उसको अपने पति से भरपूर तन का सुख नही मिला था। जया के पति का नाम राजेश था और वो एक शक्की इंसान था उसकी पत्नी जब भी कभी बाहर निकलती वो छुप कर उसका पीछा करता। इतना ही नहीं जब भी कोई राहगीर उसके घर की तरफ देख लेता तो वो अपनें पत्नी से उलझ जाता, ये कह कर की जरूर कोई बात है अन्यथा कोई भी व्यक्ति किसी के दरवाजे की तरफ क्यों देखेगा। जया अपनें पति के इस व्यवहार से तंग आ चुकी थी। ससुराल से मायके दोनों तरफ के लोगों से राजेश जया को चरित्रहीन साबित करने में लगा रहता, कुछ लोग तो राजेश की बातों पर भरोसा भी करनें लगे थे क्योंकि हमारे समाज में ज्यादातर लोग सारा दोष महिलाओं का ही देते है।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

अब तो राजेश घर छोड़ कर कहीं कमाने भी नही जाता, घर का खर्च जैसे तैसे जया के मायके वाले चलाते जिसकी वजह राजेश कामचोर भी हो गया था। प्रतिदिन के कीच-कीच से तंग आकर जया कभी कभी राजेश से अलग रहने की सोचती फिर वो निराश हो जाती और सोचती की क्या एक जवान और मेरे जैसी रूपवती किसी औरत को अकेले यह समाज जीने देगा। यह सोच कर जया सहम जाती और अपना फैसला बदल लेती। जया को राजेश के साथ हमबिस्तर हुए छह-छह महीने हो जाते और जया वासना की आग में जलती वो कर भी क्या सकती थी। जब भी राजेश जया के करीब आता किसी न किसी बातों पर वो जया से झगड़ पड़ता या फिर टाय-टाय फीस हो जाता। बेचारी जया अपने मन को काबू करती और मुंह घूमाकर आखों में आसू लिए सो जाती। ये दुःख जया के कुछ गिने चुने सहेलियों को पता था।

एक दिन जया की एक सहेली ने जया को तंत्र विद्या से उसके पति राजेश को ठीक करनें का सुझाव दिया और मरता क्या नही करता, जया के दिमाग में ये तंत्र मंत्र वाली बात घर कर गई और वो एक तांत्रिक पंडित के चक्कर में पड़ गई। पहले तो तांत्रिक ने जया से मोटी रकम वसूली और जया यहां वहां से रूपये लाकर तांत्रिक के मांग को पूरा करती। जब तांत्रिक को पता चला की अब जया के पास पैसे नहीं है तो उसकी बुरी नजर जया के रूप यौवन पर पड़ गई वो बीच-बीच में जया के शरीर को किसी न किसी बहाने छूने लगा। जया तांत्रिक के हर हरक़त को समझती मगर स्थायी निदान पाने की चक्कर में वो तांत्रिक को कुछ नही बोल पाती। जया कभी कभी बहुत दिनों से शारीरिक भूखेपन के कारण किसी के छुवन का अहसास करती तो तड़प जाती। लोग कहते है पेट की भूख से ज्यादा इंसान को तन की भूख ज्यादा परेशान करती है।

अगर शादी के बाद भी तन का सुख और मन की शांति न मिले तो औरत भटक जाती है किंतु जया तो आज तक अपनें तन के भूख और मन पर काबू किये हुए थी उसके मन में यह विश्वास था की तांत्रिक बाबा सब ठीक कर देंगे मगर ऐसा होता नहीं दिखता था क्योंकि ये तो अंधविश्वास था जहां जया पैसा और आबरू गवानें पहुंची थी। एक दिन की बात है जया दोपहर को तांत्रिक के पास पहुंची थी तभी उसका पति राजेश पीछा करते-करते उस तांत्रिक के पास पहुंच गया था। तांत्रिक जैसे ही जया को अपनी झूठी क्रिया से सहलानें की कोशिश कर रहा था तभी राजेश ने उस तांत्रिक को झपट लिया और उसे दे पटकनी मारा। तांत्रिक हताश होकर अपनी सफाई देने की कोशिश कर रहा था तभी राजेश ने जया के बालों को पकड़ कर घसीटते हुए सड़क पर आ गया और लोगों की भीड़ जमा हो गई।

लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे जिसमें से ज्यादातर लोग जया को चरित्रहीन शब्दों से अलंकृत कर रहे थे, तो कुछ लोग बातों को और चढ़ा बढ़ा कर एक दूसरों को बता रहे थे और भारी भीड़ में राजेश जया को पीटते जा रहा था वो पागल जैसा आचरण कर रहा था। आज उसे पूरा विश्वास हो गया था की हमारी पत्नी वैसी ही निकली जैसा की हम सोचते थे। मगर सच्चाई तो कुछ और थी दोष तो तांत्रिक का था जो झूठी उलझन में फंसा कर जया को रखा था। लोगों के सामने अपमानित होने के बाद जब जया घर आई तो वो टूट चुकी थी और आज वो अपनें जिंदगी की अहम फैसला ले चुकी थी की अब वो किसी हालत में राजेश के साथ नही रहेगी अतः उसने अपनें कुछ कपड़ों को लेकर मायके चल पड़ी थी। कई दिन कई महीने बीत चुके थे किंतु जया के जानें का तनिक भी परवाह राजेश को नहीं था, होता भी कैसे एक तो निकम्मा और दूसरी बात की वो ठंडा पड़ चुका था।

इधर जया का अपनें मायके में कुछ दिन तो ठीक से कटा किंतु कुछ दिन बाद जया अपनें मायके में बोझ सी बन गई। जया के भाई और भाभी गंभीर रहने लगे वो ठीक से जया से बात भी नही करते, कारण की जया के ससुराल लौटने का कोई समय निश्चित नहीं था न हीं वो ज्यादा पढ़ी लिखी थी जो किसी काम पर लग जाती और वो लगती भी कैसे उसे डर था की कहीं काम पर लगने के बाद भी संजय वहां पहुंच कर भरे बाजार में उसे अपमानित न कर दे। कारण की न तो वो सामाजिक था और न ही उसे समाज की चिंता। अतः जया कई महीने गुजरने के बाद अपनें ससुराल चली आई किंतु राजेश के मन में कोई बदलाव नहीं आया था। समय बीतता गया और जया अपनें जिंदगी से हार मान गई थी तभी समय ने करवट बदली और जया की मुलाकात बाजार में रवि से हुई दोनों एक दूसरे को देखे जा रहे थे और दोनों के लब सिले हुए थे आज प्रथम बार जया अपनें कल्पना में गोते लगा रही थी जैसे वो किसी खूबसूरत दुनियां में पहुंच गई हो।

रवि मुस्कुराता हुआ जया को देखे जा रहा था तभी जया की तंद्रा भंग हुई और वो शर्माकर आगे निकल पड़ी किंतु उसके मन की हलचल खत्म नहीं हुई थी वो पीछे मुड़ कर देखी तो रवि उसे देख रहा था अचानक जया के पैर भी थम गए थे तभी जया ने बड़ी ही चतुराई से अपनें पर्स से कागज़ का टुकड़ा और पेन निकाला और अपना फोन नम्बर लिख कर नीचे फेक दिया, रवि इस वाकया को देख और समझ रहा था फिर भी जया ने दूर से ही रवि को यह नंबर उठाने का आग्रह किया। जया अपने घर पहुंच चुकी थी शाम ढल गये थे किंतु आज की रात उसके लिए बहुत ही खूबसूरत होने वाली थी। बार-बार रवि का चेहरा जया की आखों के सामने आ जाता उसकी मुस्कुराहट तो कभी-कभी जया को पागल कर देता। फिर वो सोचती अरे ये क्या मैं तो शादीशुदा हूं ये तो हमने कभी सोचा ही नहीं तभी उसकी आत्मा कहती तो क्या हुआ शादीशुदा तो राजेश भी है फिर वो तेरी परवाह क्यों नही करता।

क्या वो नही जानता की तेरे अंदर भी एक औरत है जिसे प्यार के बोल और तन का सुख चाहिए, मगर वो देता क्यों वो तो अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए तुमसे लड़ता है झगड़ता है, इस लिए की वो नामर्द है। मर्द होता तो उसे भी तेरी जरूरत होती। अच्छा समय है जया जिंदगी के जितने समय है भोग ले और खुश रह और रवि के फोन का इंतजार कर सोचते-सोचते सुबह हो गए थे। आज वर्षों बाद जया सुबह उठकर नहा धोकर पूरे मेकअप में अपनें आप को आईने में निहार रही थी तभी राजेश ने कड़वी आवाज में जया को डांटा आज किसी खास से मिलना है क्या? घर के अंदर इतना सजने संवरने के क्या मायने, तभी जया ने दबी हुई आवाज में कहा मैं आपके लिये संज सवर नही सकती क्या? नही मुझे नही पसंद तेरा इतना सजना सावरना, तुम कुरूप बन कर रहो जिसे कोई देखे भी न कह कर राजेश बाहर निकल गया।

आज प्रथम बार जया को राजेश की बातों का कोई असर नहीं पड़ा था क्यों की वो आज रवि के अनजाने प्यार में गोते लगा रही थी तभी जया के मोबाइल में एक मैसेज आया, मन ही मन जया उछल सी गई वो फोन लेकर अपनी छत के ऊपरी हिस्से में पहुंच गई क्योंकि यह मैसेज किसी और का नही यह मैसेज जया के चाहत की थी। जिसमे लिखा था
प्रिय प्रियेश्वरी, सदा खुश रहो, कल के तुम्हारे दीदार ने मुझे पागल बना दिया है। रात भर मुझे नीद नहीं आई,क्यों? ये मैं नही जानता, ये भी मैं नही जानता की तुम्हारा नाम क्या है और तुम कहां रहती हो, किंतु इतना ज़रूर जनता हूं की तुम शादीशुदा हो और मैं भी। मगर ये नही जानता की तुम्हारी एक झलक ने क्यों मुझे बेकाबू कर दिया है, शायद तुम्हारे साथ भी ऐसा ही हो। अगर ऐसा ही हो तो इस रिश्ते को एक नाम देने के लिये हम लोग कल काफ़ी हाऊस में मिलते है। तुम्हारा……

रवि के इस मैसेज को पढ़ कर जया तुरंत डिलीट कर दी और सोच सोच कर बेकाबू होती रही। सच तो ये था की मिलन की आग दोनों तरफ जल रही थी जैसे ही राजेश अपनें काम से निकला जया सज संवर कर काफी हाउस निकल पड़ी। प्रथम बार जया ने इतना साहस किया था, वो भूल गई थी की वो जो करनें जा रही है उसका अंजाम क्या होगा। जया कुछ समय बाद काफ़ी हाउस पहुंच चुकी थी। रवि पहले से ही बेसब्री से जया का इंतजार कर रहा था दोनों एक दूसरे के हाथों को थामे हुए अंदर चले गये थे। अंदर जानें के बाद दोनों की बातें शुरू हुई और जया एक ही मुलाकात में रवि को अपनी सारी बातें बता दी और ये भी कह दिया की मैं कोई बदचलन नही हूं ये मेरी मजबूरी है जिसे कोई गलत नाम नही दिया जाय।

इतना कहने के बाद रवि ने जया के हाथों को थाम लिया और कहा आप ये क्या कह रही है मैने ये कब कह दिया। मैं भी ये जनता हूं की जरूर आपकी कोई मजबूरी रही होगी जैसे मेरी। किंतु इस मजबूरी को लोग गलत ढंग से लेते हैं। खैर छोड़िए अब आप बताओ आपको कोल्ड काफ़ी लेना है या हॉट तभी जया ने रवि से एक सवाल किया आपको क्या मेरे साथ रहना है मैं आपके साथ रहना चाहता हूं। जया के इस बात को सुन कर रवि झेप गया क्योंकि उसकी अपनी सोसायटी में अच्छी खासी पकड़ थी वो नही चाहता था की किसी को इस बेनाम रिश्ते के बारे में कुछ पता चले, अतः रवि ने बीच का एक रास्ता निकालना बेहतर समझा और जया से यह कहा की हम लोग लिव इन रिलेशन में रहेंगे जिससे तुम्हारे और हमारे माथे पर कलंक समाज द्वारा न लगे। जया को भी ये सुझाव पसंद आया और वो इस रिश्तों को एक नाम मिल गया।

कुछ दिनों के बाद मिलने जुलने का सिलसिला शुरू हो गया अब तक रवि और जया एक हो चुके थे। जया के तन और मन दोनों की आग शांत हो चुकी थी जब भी जया किसी उलझन में पड़ती रवि को अपनी व्यथा बतलाती और रवि उसका हल निकाल देता। समय बीतता चला गया। आज रवि ने जया को फोन कर के कहा की आज मेरी पत्नी तुमसे मिलना चाहती है। यह सुनकर जया घबड़ा गई मानो फिर एक बार उसके जिंदगी में में कोई भूचाल आने वाला हो। तभी रवि ने जया के भाव को पढ़ते हुए कहा तुम घबराओ मत वो हॉस्पिटल में अपनी अंतिम सांसें गिन रही है।

यह सुन कर जया चौक गई उसने रवि से पूछा की आपकी पत्नी और मुझसे मिलना चाहती हैं जिसनें न मुझे कभी देखा न मेरे बारे में…… , कह कर जया चुप हो गई तभी रवि ने जया से कहा तुम्हारी एक एक बात मेरे पत्नी को पता है हम दोनों के मिलन में हमारे पत्नी की ही रज़ामंदी है क्योंकि डाक्टर की एक भूल के कारण वो एड्स की मरीज है मेरे लाख समझाने और लगातार प्रयास करने के बाद भी वो हमसे संबंध बनाना नही चाहती उसे पता है की उसके साथ संबंध बनाने से मैं भी इस जानलेवा बीमारी का शिकार हो सकता हूं अतः उसने ये फैसला किया और मुझसे ये अनुरोध किया कि मैं किसी शादीशुदा महिला से संबंध बना लूं जिसे इस भूख को मिटाने की आवश्यकता हो। पहली बार जब तुम मुझे मिली तो लगा था की ऐसे ही कोई शादी सुदा स्त्री किसी पर मेहरबान नही होती जरूर कोई समस्या उसके जीवन में होती है किंतु हमेशा लांक्षनीत औरत ही होती है क्योंकि हमारा यह समाज पुरुष प्रधान है।

तभी अचानक रवि का दूसरा फोन बजा जो हॉस्पिटल से आया था। डॉक्टर ने कहा रवि साहब आप जल्द हॉस्पिटल पहुंचे आपके पत्नी की हालत बहुत खराब है रवि मायूस हो गया उसे पहले से ये आभास था की अब मेरी पत्नी ज्यादा दिन की मेहमान नही है उसने ये खबर जया को दी और अपनें पत्नी से मिलने का आग्रह किया। कुछ क्षण बाद दोनों हॉस्पिटल पहुंचे रवि की पत्नी अंतिम सांसे ले रही थी उसने रवि और जया को देख कर बस इतना ही कहा की जया बहन तुम रवि का ख्याल रखना ये बहुत अच्छे इंसान है तुम हमेशा इनके साथ खुश रहेगी और इतना कहते-कहते उसके प्राण पखेरू उड़ गए थे।

यह देख कर दोनों के आसू लगातार बह रहे थे और रवि सोच रहा था की प्यार इसे ही कहते है जहां एक दूसरे के लिए अटूट प्रेम हो, रवि अभी सोच ही रहा था की अचानक लोगों के चीख पुकार की आवाज बाहर से आने लगी, जया और रवि बाहर की तरफ दौड़े लोगों की भीड़ सड़क पर जमी हुई थी लोग कह रहे थे की यह व्यक्ति हताशा लिए सड़क पर दौड़ रहा था तभी एक ट्रक वाले ने इसे कुचल दिया और भाग निकला। जया भीड़ को चीरते हुए अंदर समा गई, अचानक उसने देखा राजेश लहूलुहान होकर पड़ा था और जया को अपनी आखों पर विश्वास नहीं हो रहा था वो सोच में पड़ गई थी की आखिर राजेश का अंत भी शक को लेकर ही हुआ किंतु इस बार का शक जायज़ था जिसका जिम्मेवार खुद राजेश ही था। जया चिल्लाकर रो रही थी और रवि उसे समझा रहा था। कुछ क्षण बाद दोनों अपनें अपनें शवों के साथ आखों में आसूं लिए अपने-अपने घर पहुंच चुके थे।

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