वाराणसी। संकष्टी चतुर्थी इस बार नए साल में 10 जनवरी को मनाई जाएगी। इसे सकट चौथ और तिल चौथ भी कहते हैं। इस बार की संकष्टी चतुर्थी मंगलवार को पड़ रही है, इसलिए इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाएगा। इस दिन गणेशजी के साथ ही हनुमानजी की पूजा करने का भी विशेष महत्व बताया गया है। प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। माघ मास में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है। इस बार की संकष्टी चतुर्थी मंगलवार को पड़ने से यह और भी खास मानी जा रही है। मंगलवार को होने की वजह से इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन माताएं अपने पुत्र की दीर्घायु की कामना करते हुए गणेशजी की पूजा करती हैं और सकट चौथ का व्रत करती हैं। इस दिन माताएं निर्जला व्रत करती हैं और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं।
संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त : पंचांग में दिए गए समय के अनुसार संकष्टी चतुर्थी का व्रत 10 जनवरी 2023 को रखा जाएगा। संकष्टी चतुर्थी का आरंभ 10 जनवरी को दिन में 12 बजकर 09 मिनट पर होगा और इसका समापन 11 जनवरी को दिन में 2 बजकर 31 मिनट पर होगा। यह व्रत रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद खोला जाता है, इसलिए इस व्रत की तिथि 10 जनवरी को मानना ही सर्वसम्मत होगा। 10 जनवरी को चंद्रोदय का वक्त रात को 8 बजकर 41 मिनट पर बताया गया है।
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि : संकष्टी चतुर्थी पर सूर्योदय से पहले तिल के पानी से स्नान करें और फिर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके भगवान गणेश की पूजा करें। गणेशजी को तिल, गुड़, लड्डू, दुर्वा और चंदन अर्पित करें। साथ ही मोदक का भोग लगाएं। इस व्रत में तिल का खास महत्व है इसलिए जल में तिल मिलाकर अर्घ्य देने का विधान है। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को सूर्यास्त के बाद पुन: गणेशजी की पूजा करें और उसके बाद चंद्रोदय की प्रतीक्षा करें। चंद्रोदय के बाद चांद को तिल, गुड़ आदि से अर्घ्य देना चाहिए। इस अर्घ्य के बाद ही व्रती को अपना व्रत खोलना चाहिए। गणेशजी की पूजा के बाद तिल का प्रसाद खाना चाहिए। जो लोग व्रत नहीं रखते हैं उन्हें भी गणेशजी की पूजा अर्चना करके संध्या के समय तिल से बनी चीजें खानी चाहिए।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व : संकष्टी चतुर्थी का अर्थ संकटों का हरण करने वाली चतुर्थी होता है। इस व्रत को करने से गणेशजी प्रसन्न होकर हमारे सभी संकट दूर करते हैं और संतान को दीघार्यु का आशीर्वाद देते हैं। यह भी मान्यता है कि इसी दिन पौराणिक काल में भगवान शिव ने गणेशजी को हाथी का सिर लगाकर उनके संकट दूर किए थे, तब से इस दिन को संकष्टी चतुर्थी के रूप में पूजा जाने लगा। इस दिन व्रत में भी भगवान गणेश की पूजा के साथ उपवास रखा जाता है और कथा सुनाई जाती है।
तिल कूट संकष्टी चतुर्थी की कथा : किदवंती है कि एक बार माता पार्वती स्नान करने गई। उसी समय उन्होंने बाल्य गणेश को यह कहकर स्नान गृह के दरवाजे पर खड़ा कर दिया कि जब तक मैं स्नान कर बाहर न आऊं। बाल्य गणेश स्नान गृह के बाहर दरबानी बन पहरा देने लगे। तभी भगवान शिव किसी जरूरी कार्य से माता पार्वती को ढूंढ रहे थे। यह वक्त माता पार्वती के स्नान का था। यह सोच भगवान शिवजी स्नान गृह आ पहुंचें। यह देख बाल्य गणेश ने उन्हें स्नान घर में जाने से रोका। इससे भगवान शिव रुष्ट हो गए। उन्होंने बाल्य गणेश को मनाने की कोशिश की, लेकिन भगवान गणेश नहीं मानें। बाल्य गणेश ने कहा-मां का आदेश है, जब तक वह बाहर नहीं आ जाती हैं। तब तक कोई अंदर नहीं जा सकता है।
यह सुन भगवान शिव क्रोधित हो उठे और त्रिशूल से प्रहार कर बाल्य गणेश का मस्तक को धड़ से अलग कर दिया। बाल्य गणेश की चीख से माता पार्वती दौड़कर बाहर आई। अपने पुत्र को मृत देख माता पार्वती रोने लगी। समस्त लोकों में हाहाकार मच गया। तब भगवान शिव को अपनी गलती का अहसास हुआ। माता ने भगवान शिव से पुत्र के प्राण वापस देने की याचना की। यह कार्य विष्णु जी ने पूर्ण किया। जब उत्तर की दिशा में बैठे ऐरावत का सर धड़ से अलगकर उन्होंने भगवान गणेश जी को लगा दिया। इससे भगवान गणेश जीवित हो उठे। कालांतर से महिलाएं बच्चों के दीर्घायु होने के लिए सकट चौथ का व्रत करती हैं।
ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848