श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’ । साथियों, फिल्मी गीत-संगीत से जुड़ी कई ऐसी मजेदार बातें हैं जिनसे कई फिल्म गीत-संगीत के प्रेमी तक अंजान हैं। आज मैं ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा आपके सामने रख रहा हूं। किस्सा सन् 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘पत्थर के सनम’ के शीर्षक गीत का है। गीत के बोल हैं- ‘पत्थर के सनम तुझे, हमने मोहब्बत का खुदा जाना….’ इसे मोहम्मद रफ़ी ने गाया है। यह एक सदाबहार गाना है। इसे चाहने वालों की संख्या अनगिनत हैं। यह गाना मोहब्बत में नाकाम दीवानों को सुरीला राहत पहुंचाने का काम करता है। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की दिलकश धुन, आवाज के जादूगर महान मोहम्मद रफ़ी की आवाज, मजरूह सुल्तानपुरी के दिल को छूने वाले बोल मिलकर गीत को यादगार रचना की श्रेणी में पहुंचा दिया है।
दरअसल, यह गाना पहले मुकेश गाने वाले थे। फिल्म के नायक अभिनेता मनोज कुमार चाहते थे कि यह शीर्षक गीत ‘पत्थर के सनम तुझे हमने….’ भी मुकेश की आवाज में रिकार्ड हो। पर संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल चाहते थे कि यह गाना मोहम्मद रफ़ी ही गाए। उन्होंने इस गाने की धुन महान मोहम्मद रफ़ी को ध्यान में रखकर बनाई थी। फिल्म के छह गानों में से दो गानों में मुकेश की आवाज है और बाकी तीन गानों को लता मंगेशकर और आशा भोसले ने गाया। रहा फिल्म का यह छठा गाना, जिसे लेकर संगीतकार और मनोज कुमार के बीच गायक को लेकर बहस हुई।
लेकिन संगीतकारद्वय अड़ गए कि यह गाना रफ़ी से ही गवाएंगे। अंततः लक्ष्मीप्यारे की बात से मनोज कुमार भी सहमत हो गए। इस तरह शायर-गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की तिकड़ी का यह हरदिल अज़ीज़ गाना हमारे बीच आया। आज 54 साल बाद भी लोग इस गाने को दिलों से लगाए हुए हैं। इस गाने की लोकप्रियता में आज भी कोई कमी नहीं आई है। महान मोहम्मद रफ़ी के इस गाने को सुनकर कोई भी महसूस कर सकता है कि संगीतकार लक्ष्मीप्यारे का निर्णय कितना सही था।