प्रवासी साहित्य केवल पीड़ा का साहित्य नहीं है
कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद और सदीनामा के संयुक्त तत्वावधान में ‘प्रवासी साहित्य में भारतीयता’ विषय पर भारतीय भाषा परिषद के सभागार में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज दूसरा दिन था। प्रथम सत्र में लाला बाबा कॉलेज के प्रिंसिपल संजय कुमार जायसवाल की अध्यक्षता में बीज वक्तव्य दिया सेंट पॉल कॉलेज के सहायक प्रोफेसर कमलेश पांडेय ने। वक्ता के रूप में प्रेसिडेंसी कॉलेज के ॠषि भूषण चौबे और गोखले मेमोरियल कॉलेज की पलाशी विश्वास उपस्थित थीं। कार्यक्रम का संयोजन किया सुरेंद्रनाथ सांध्य कॉलेज की प्राध्यापक दिव्या प्रसाद ने। संचालन का दायित्व संभाला विद्यासागर विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक संजय जायसवाल ने।
दूसरे सत्र में काजी नजरुल विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष, विजय भारती ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि प्रवासी साहित्य शोषितों-पीड़ितों की आजादी का साहित्य भी है। अतीत की बात करनेवाले का पांव वर्तमान में और दृष्टि भविष्य में रहनी चाहिए। इन्होंने कई प्रमुख हिंदी रचनाओं की बात की जिनमें विदेशी जीवन का लेखा-जोखा है। इन्होंने यह भी कहा कि अपनी परंपरा से प्रेम करते हुए कभी भी दूसरे की परंपरा की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। दिव्या प्रसाद ने कहा कि भारतीय संस्कृति को दरकिनार करके हम प्रवासी संस्कृति या साहित्य को नहीं समझ सकते। कहीं न कहीं हर प्रवासी साहित्यकार गिरमिटिया ही है।
शारजहां से पूर्णिमा बर्मन उपस्थित नहीं थीं पर उनके लेखन का वाचन किया गया जिसमें उन्होंने कहा कि मध्य-पूर्व की कहानियों में भी अपने देश के प्रति प्रेम दिखता है। हर कहानीकार में अपने देश लौटने की लालसा झलकती है।
पुस्तक ‘प्रवासी कहानियां’ की संयोजक इंदु सिंह ने कहा कि यहां से विदेश जाने वाले लोगों में संवेदनशीला और अपने देश के प्रति प्रेम तो बचा रहा पर वहां जन्मी संतानों में संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है। पत्रिका प्रवासी साहित्य के संपादक राकेश पांडेय ने कहा कि प्रवासी साहित्य को कोर्स में लगाने से पहले उसकी भाषा की समीक्षा की जानी चाहिए। प्रवासी साहित्य पढ़ाने वालों का दायित्व है कि प्रवासी साहित्य का अध्ययन पहले गंभीरता से करें। विदेशी हिंदी कहानियां और प्रवासी हिंदी कहानियों के फर्क को समझना होगा।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की प्राध्यापिका सत्या तिवारी ने कहा कि भाषाई शालीनता को बचाए रखना, रचनाकारों और आलोचकों का धर्म है। सांस्कृतिक शुद्धतावाद हमारे संस्कार में होना चाहिए। प्रवासी साहित्य केवल पीड़ा का साहित्य नहीं है। एक मूल से उखड़कर दूसरी जगह बसे लोगों का साहित्य है प्रवासी साहित्य। पेपर पढ़ा दिव्य प्रसाद ने। इस सत्र का संचालन किया सदीनामा पत्रिका की सह संपादक रेणुका अस्थाना ने।
अगले सत्र की शुरुआत महाराजा शिरीष चंद्र कॉलेज के प्राध्यापक कार्तिक चौधरी की अध्यक्षता में हुई। बीज वक्ता के रूप में गोखले मोमोरियल कॉलेज की रेशमी पांडया मुखर्जी और रेणुका अस्थाना उपस्थित थीं। रेणुका अस्थाना ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारे देश के लोग विदेशों में जाकर बस तो जाते हैं पर न वे वहां की संस्कृति से जुड़ पाते हैं और न अपनी संस्कृति को भूल पाते हैं। मानसिक द्वंद्व को झेलते रहते हैं। कार्यक्रम का संचालन किया रचना सरन ने।
अंतिम सत्र में ‘प्रवासी साहित्य को पढ़ाने में समस्याएं’ विषय पर लंदन में सांस्कृतिक सचिव तरुण कुमार का लेख पढ़कर सुनाया गया। विक्रम साव और मीनाक्षी सांगानेरिया ने अपना वक्तव्य रखा। कार्यक्रम का संयोजन राहुल शर्मा ने किया। पांचवें सत्र की अध्यक्षता की रेवा जाजोदिया ने। वक्तव्य रखा विक्रम साव ने संयोजन और तरुण कुमार का लेख पढ़ा तथा अपना वक्तव्य रखा राहुल शर्मा ने। सत्र का संचालन करते हुए जीतेंद्र जितांशु ने इस विषय पर अध्यापकों और प्राध्यापकों की तरफ से कई सवाल किए जिनका जवाब दिया रेवा जाजोदिया, प्राध्यापक सुरेंद्रनाथ संध्या कॉलेज ने। धन्यवाद ज्ञापन किया जीतेंद्र जीतांशु ने।