अपनी भाषा और बोली के प्रति प्रेम के साथ अन्य भाषाओं को सीखने की प्रेरणा जगाई भारतीय भाषा उत्सव ने

विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा उत्सव का अभिनव आयोजन

पन्द्रह से अधिक भाषा और बोलियों के प्रयोक्ताओं ने मातृभाषाओं में रचनाओं की प्रस्तुति के साथ दिया अन्य भाषाओं को सीखने का संदेश।

उज्जैन । विक्रम विश्वविद्यालय की हिंदी अध्ययनशाला एवं पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा महोत्सव का अभिनव आयोजन वाग्देवी भवन में किया गया। इस दौरान बहुभाषाई अंतरराष्ट्रीय विचार संगोष्ठी एवं काव्य पाठ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में पन्द्रह से अधिक भाषा और बोलियों के प्रयोक्ताओं ने अपनी बोलियों के माध्यम से गीत एवं रचना पाठ करते हुए देश की अन्य भाषाओं को सीखने का संदेश दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने की। मुख्य अतिथि ऑस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, कला संकायाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, मराठी भाषी लेखक अभय मराठे, प्रो. गीता नायक, डॉ. जगदीश चंद्र शर्मा ने अपने विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि सभी देशवासियों का दायित्व है कि वे अन्य भाषाओं के प्रति निष्ठा रखने के साथ अपनी-अपनी मातृभाषा को संरक्षित करने की कोशिश करें। देश में कहीं भी जाएं वहां की भाषा और संस्कृति को जानने और उसके प्रति अपनत्व का भाव रखें। प्रत्येक परिवार में बच्चों को अपनी बोली में बात करना सिखाना चाहिए।

कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारत की विभिन्न भाषाओं के बीच आदान-प्रदान और समन्वय का सिलसिला सदियों से चल रहा है। सदियों पहले परमार काल में रोड कवि द्वारा रचे गए काव्य राउलवेल में विभिन्न भाषाओं की छटा देखने को मिलती है। मालवा में बसे विभिन्न भाषा भाषियों ने सदियों से भाषाई एकता का संदेश दिया है। नई-नई भाषाओं को सीखने से परस्पर सद्भाव, सांस्कृतिक चेतना और समावेशी चिंतन का विकास संभव है। नई प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए भारतीय भाषा और बोलियों में निहित ज्ञान और मूल्यों के प्रसार की आवश्यकता है।

सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने ऑनलाइन व्याख्यान में कहा कि युवा पीढ़ी को विभिन्न भाषाओं के महत्व को जानने के साथ उनका समन्वय करने की आवश्यकता है। भाषाओं के ज्ञान से हम व्यक्तिगत रूप से समृद्ध बनते हैं। प्रत्येक भारतवासी दक्षिण भारत एवं अन्य प्रांतों की भाषाओं को सीखे। नॉर्वे में वर्तमान में त्रिभाषा फार्मूला प्रचलित है। नॉर्वेजियन और अंग्रेजी भाषा के साथ मातृभाषा भी सिखाई जाती हैं।

प्रो. गीता नायक ने कहा कि अनेक सदियों से भारतीय भाषाओं में एकता के सूत्र मिलते हैं। किसी भी भाषा को जानने और सीखने के लिए उसमें प्रयुक्त सरल शब्द और वाक्यों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। सभी भारतीय अपनी अपनी भाषा के साथ किसी ने किसी एक बोली या भाषा को अवश्य सीखें। डॉ. जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि महान कवि, स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक चिन्नास्वामी सुब्रमण्यम भारती के जयंती के अवसर पर भारतीय भाषा उत्सव का आयोजन देश के विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं के मध्य सेतु स्थापित करने में सहायक सिद्ध होगा।

भारतीय भाषा दिवस के मौके पर हुए इस आयोजन में देश की पन्द्रह से अधिक भाषाओं और बोलियों के प्रयोक्ताओं ने बहुभाषायी अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं काव्य पाठ में अपनी भाषा का परिचय देते हुए उसमें कविता, लोक गीत आदि की सरस प्रस्तुति की। सर्वप्रथम संस्कृत में मंगलाचरण एवं उसकी विशेषताओं को ज्योति शर्मा ने उद्घाटित किया। मराठी का प्रतिनिधित्व क्रांतिकारियों के जीवनी लेखक अभय मराठे ने करते हुए कहा कि पुरातन काल से भारत की विभिन्न भाषाएं आपस में एक दूसरे को जोड़ती रही हैं। स्वाधीनता आंदोलन में भारत की विभिन्न भाषाओं और उन में अभिव्यक्त काव्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अभय मराठे ने विनायक दामोदर सावरकर की मराठी भाषा में निबद्ध राष्ट्रप्रेम की कविता सुनाई। उर्दू की विशेषता बताते हुए मोहन तोमर ने कृष्णबिहारी नूर की रचना प्रस्तुत की।

भिलाली एवं भीली भाषा का परिचय देते हुए ज्योति सोलंकी ने एक लोकगीत प्रस्तुत किया। मालवी गीतों की प्रस्तुति श्यामलाल चौधरी, जावरा ने की। राजस्थान के जगदीश कुमार, बाड़मेर ने मारवाड़ी भाषा और संस्कृति का परिचय देते हुए मायड़ भाषा को बोलने की महिमा बताई। सरिता फुलफगर ने निमाड़ी गणगौर गीत प्रस्तुत कर निमाड़ की संस्कृति का परिचय दिया।

बुंदेली और उसकी उपबोली लोधान्ती का परिचय रणधीर आठिया, सागर ने दिया और लोकगीत सुनाए। हरियाणवी भाषा का परिचय शिक्षा देवी, नई दिल्ली ने दिया। अवधी भाषा की विशेषताएं संदीप पांडेय और मनीषा शुक्ला ने प्रस्तुत की। अनिता पंवार ने निमाड़ी में रचित हेमलता उपाध्याय का गीत सुनाया। बारेली भाषा में प्रचलित नशा मुक्ति गीत की प्रस्तुति अनूप जमरे ने की। युगेश द्विवेदी, रीवा ने बघेली बोली का परिचय देते हुए उसमें रची व्यंग्यात्मक कविता प्रस्तुत की।
मीणी भाषा का प्रतिनिधित्व कविता सुलानिया, भीली का प्रतिनिधित्व डॉ. दयाराम नगेश, पंजाबी का प्रतिनिधित्व सपना अरोरा और गुजराती का प्रतिनिधित्व श्रुति देशपांडे ने किया।

कार्यक्रम में अनेक प्राध्यापकों, साहित्यकारों और शोधार्थियों ने अलग-अलग भाषा और बोलियों का प्रतिनिधित्व करते हुए भाषाई सौहार्द का संकल्प लिया। कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने उपस्थित जनों को अपनी भाषा और बोली के प्रयोग के साथ अन्य भाषा और बोलियों को सीखने की शपथ दिलाई। प्रारंभ में वाग्देवी के चित्र पर पुष्पांजलि अतिथियों ने अर्पित की। कार्यक्रम में डॉ. प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ. सुशील शर्मा सहित अनेक शिक्षक एवं शोधार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन हीना तिवारी ने किया।

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