नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि नाबालिग बच्चे के यौन उत्पीड़न की जानकारी होने के बावजूद तत्काल और उचित शिकायत नहीं करना अपराध एवं अपराधियों को बचाने की गंभीर श्रेणी का जुर्म है। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ ने 2019 में महाराष्ट्र के चंद्रपुर के एक स्कूल में आदिवासी मूल की 17 नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि बच्चों का यौन हमले की जानकारी के बावजूद शिकायत नहीं करना पोक्सो के तहत अपराध माना जाएगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी डॉक्टर के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करना उच्च न्यायालय के लिए उचित नहीं था। सरकार की याचिका में कहा गया है कि लड़कियों के इलाज के लिए नियुक्त डॉ. मारोती को बच्चियों के यौन उत्पीड़न के बारे में पता था, लेकिन संबंधित अधिकारियों को शिकायत नहीं की गई। तीसरी और पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली बच्चियों के बीमार होने के बाद सामान्य अस्पताल में ले जाने के बाद यौन उत्पीड़न के बारे में का पता चला था।
पीठ ने कहा, “पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध होने के तत्काल और उचित शिकायत अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि किसी भी अपराध के बारे में जानने में इसकी विफलता अधिनियम के उद्देश्य को विफल कर देगी। … इस मामले में छात्रावास के अधीक्षक और चार अन्य – नरेंद्र लक्ष्मणराव विरुलकर, कल्पना महादेव ठाकरे, सौ लता मधुकर कन्नाके, वेंकटस्वामी बोंडैया जंगम को गिरफ्तार किया गया था। जांच के दौरान पता चला था कि आरोपियों ने 17 नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण किया था।