कोलकाता। महानगर कोलकाता समेत राज्य भर में बड़े पैमाने पर धूमधाम से मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा का उद्घोष राज्य भर से बड़े पैमाने पर उमड़ने वाले ढाकियों के ढाक (ढोल) बजाने से होता है। हर साल की तरह इस बार भी राज्य के ग्रामीण इलाकों से बडी संख्या में ढा़क बजाने वाले कोलकाता पहुंचे हैं। हावड़ा और सियालदह स्टेशनों पर उनकी भीड़ देखी जा रही है। इसके अलावा हाजरा मोड़, धर्मतला सहित शहर के कई इलाकों में उनका जमघट लगा चुका है। राज्य के सुदूर क्षेत्रों से सैकड़ों की संख्या में जुटे ढाकिए इस इंतजार में हैं कि राजधानी कोलकाता के पूजा आयोजक इन्हें अपने साथ लेकर जाएंगे।
षष्ठी से नवमी तक ये ढाक बजाएंगे और इसके लिए आयोजकों की ओर से मिलने वाली राशि लेकर अपने गांव लौट जायेंगे। दुर्गा पूजा का रिवाज है कि षष्ठी के दिन से सभी पूजा पंडालों में बड़ी संख्या में ढाकिए बड़े आकार के ढोल अपने पीठ पर टांग कर एक खास धुन पर लगातार बजाते हैं। इस वाद्य को स्थानीय भाषा में ढ़ाक कहा जाता है एवं इसे बजाने वाले को ढाकी की कहा जाता है। यह विशालकाय वाद्य कम से कम 2.5 से तीन फुट लंबे और करीब 1-1.5 फुट चौड़े होते हैं। एक ओर से पक्षियों के पंखों से सजे होते हैं और दूसरी ओर से जब ढाकिया इस पर थाप देते हैं तो दुर्गा पूजा की गूंज सुनाई देने लगती है।
सियालदह स्टेशन पर मौजूद ढ़ाकियों ने कहा कि पहले दुर्गा पूजा के आयोजक बड़े पैमाने पर खुशी खुशी पैसे लुटाते थे। उन्हें मांगना भी नहीं पड़ता था, लेकिन अब कई पूजा पंडालों में उनसे मोल तोल किया जाता है। उपर से अगर मन मुताबिक पैसे पर ढोल बजाने के लिए तैयार नहीं हुए तो उन्हें लौटा दिया जाता है। कई ढाकियों को मजबूरन खाली हाथ अपने घर लौटना पड़ता है। इन लोगों ने पश्चिम बंगाल सरकार से इन्हें लोक शिल्पी के तौर पर पंजीकृत करने और भत्ता देने की मांग की है लेकिन बार बार यह मांग उठने के बावजूद राज्य सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है।