नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि राज्य सरकार अनुसूचित क्षेत्र के लिए स्थानीय निवासियों के वास्ते 100 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था नहीं कर सकती। न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने झारखंड सरकार एवं अन्य द्वारा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर अपने फैसले में कहा कि 100 फ़ीसदी आरक्षण देना संविधान के विपरीत है।
शीर्ष अदालत ने झारखंड के 13 अनुसूचित जिलों में जिला संवर्ग तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर स्थानीय निवासियों के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी 2016 की अधिसूचना को रद्द करते हुए कहा कि ऐसा करना सार्वजनिक रोजगार में गैर-भेदभाव के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
पीठ ने कहा कि संबंधित अनुसूचित क्षेत्र/जिलों के स्थानीय निवासियों (निवासी के आधार पर आरक्षण) के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण देना संविधान के अनुच्छेद 16(3) के साथ पढ़े गए अनुच्छेद 35 के विपरीत है। पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति शाह ने कहा,“केवल संबंधित अनुसूचित जिलों/क्षेत्रों के स्थानीय निवासियों के लिए प्रदान किया गया 100 प्रतिशत आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 16(2) का उल्लंघन होगा और भाग III के तहत गारंटीकृत गैर-अनुसूचित क्षेत्रों/जिले के अन्य उम्मीदवारों/नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित करेगा।”