उज्जैन । भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, नार्वे के तत्वाधान में अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ। संगोष्ठी प्रवासी साहित्यकार सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ की कहानी ‘बंकर में सात दिन’ पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि शरद आलोक की कहानी ‘बंकर में सात दिन’ अपने समय और उससे जुड़ी संवेदनाओं और हाहाकार को व्यक्त करने वाली कहानी है। दादी वासुकी भारतीय परिवार व्यवस्था से उपजी प्रणाली के केन्द्र में है, जो नयी पीढ़ी के प्रतिनिधि राहुल को नयी दिशा देती है। लाकडाउन के बाद आये युद्ध से उत्पन्न होने वाली मँहगाई और संकट हम झेल रहे हैं।
सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ की कहानी बंकर में सात दिन यथार्थ के धरातल पर खरी और रोचक कहानी है। इसमें राहुल को यूक्रेन में मेडिकल साइंस की पढ़ाई पूरी करने के पहले ही युद्ध प्रारम्भ होने के कारण अपने देश लौटना पड़ता है। युद्ध में गोलीबारी और बमबारी से पहले बंकर में छुपता है, फिर भागकर जान बचाते हुए बड़ी मुश्किल से सीमा पार पोलैंड पहुँचकर शरणार्थी शिविर स्टेशन से जहाज द्वारा किसी तरह स्वदेश लौटता है। कहानी ‘बंकर में सात दिन’ थोपे गये युद्ध के दौरान यूक्रेनवासियों की पीड़ा, राष्ट्र प्रेम को छूते हुए दूसरे देशों में शरण लेने और शरणार्थियों की अनिश्चितता की तरफ इशारा करती है।
मुख्य अतिथि प्रो. मोहनकान्त गौतम (नीदरलैंड) थे। अध्यक्षता डॉ. कुँवर वीरसिंह मार्तण्ड, कोलकाता ने की। संचालन सुवर्णा जाधव, पुणे ने किया और सरस्वती वंदना प्रमिला कौशिक ने की। कहानी समीक्षा करने वालों में प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा, प्रो. मोहनकान्त गौतम (नीदरलैंड), प्रो. अजय नावरिया, नई दिल्ली, प्रो. गंगा प्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’, सूरत, प्रो. हरनेक सिंह गिल, नई दिल्ली, डॉ. रश्मि चौबे गाजियाबाद, रामबाबू गौतम (यू.एस.ए.), डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी और डॉ. अर्जुन पांडेय थे। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया।