कोलकाता । गुरुवार, 22 अप्रैल, प्रख्यात रंगकर्मी, सहृदय कवि, कुशल मंच-संचालक, कई सामाजिक- सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रेरक-पोषक, राष्ट्रवाद के प्रखर-प्रवक्ता एवं बड़ाबाज़ार लाइब्रेरी के अध्यक्ष रह चुके – स्व० विमल लाठ जी को उनकी प्रथम पुण्य तिथि पर, बड़ाबाजार लाइब्रेरी के पटल पर स्मरण किया गया जिसकी अध्यक्षता का दायित्व सम्भाला लाठ जी के घनिष्ठ प्रख्यात हास्य कवि डॉ. गिरधर राय ने। इस स्मरण सभा में स्व० विमल लाठ जी के स्नेह पात्र बड़ा बाज़ार लाइब्रेरी के उपाध्यक्ष जयगोपाल गुप्ता, राजस्थान परिषद के महामंत्री अरुण प्रकाश मल्लावत, सुनील कुमार मोर ने भी लाठ जी को अपने अपने वक्तव्यों में स्मरण किया एवं उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
आलोक चौधरी द्वारा लाठ जी की याद में एक स्मृति वन्दना के साथ कार्यक्रम शुरु हुआ। तत्पश्चात हिमाद्री मिश्रा ने लाठ जी की श्रीराम वन्दना प्रस्तुत की। तदोपरांत विभिन्न काव्य विभूतियों ने काव्यांजलि के माध्यम से स्व० लाठ जी के चरणों में अपने-अपने श्रद्धा सुमन चढ़ाए। इस श्रृंखला में – स्वागता बसु ने – “जब तन्हा सा ये दिल” ग़ज़ल पढ़ी तो रामाकांत सिन्हा ने निर्गुण गीत सुनाकार लाठ जी को याद किया। “पुकार” गाजीपुरी ने लाठ जी पर बहुत ही भावुक पंक्तियाँ पढ़ी – “व्यक्ति थे सीधे सादे, गुण का था भरमार/साथ पाये जो उनके, स्वप्न भयो साकार।” लाइब्रेरी के महामंत्री अशोक गुप्ता ने बताया कि – बड़ाबाजार लाइब्रेरी के अध्यक्ष के रूप में लाठ जी ने संस्था को जो ऊँचाई प्रदान किया, वह रेखांकित करने योग्य है।
भारतीय संस्कृति संसद के मंत्री एवं वनबंधु परिषद के संस्थापक मंत्री के रूप में भी लाठ जी का अवदान अविस्मरणीय रहा है। एकल विद्यालय की परिकल्पना आज जिस गौरवशाली ऊंचाई पर है, उसके आरंभिक दौर में विमल लाठ के अनथक परिश्रम का बहुत बड़ा अवदान है। उनके प्रयासों से – नागालैंड, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में भारतीय संस्कृति की विचार संपदा का व्यापक प्रचार-प्रसार भी हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि रंगमंच के क्षेत्र में लाठ जी के उल्लेखनीय अवदान को मान देते हुए उन्हें – उत्तर प्रदेश संगीत नाट्यअकादमी से बीएम शाह सम्मान तथा मध्य प्रदेश सरकार से राष्ट्रीय कालिदास सम्मान भी प्राप्त हुआ था।
इसी कड़ी में देवेश मिश्र ने लाठ जी को याद करते हुए बताया – अयोध्या आंदोलन जब चरम पर था, उस कालखंड में देश के प्रमुख कवियों की अयोध्या पर केन्द्रित कविताओं का विमल जी ने संपादन किया था। पुस्तक का नाम था – ‘फिर से बनी अयोध्या योद्धा’, जिसमें लाठ जी ने भी लिखा था- “रामलला का जयघोष, भारत माता की आरती है/करोड़ों कंठों की आवाज, अरिदमन राम को पुकारती है।” सभा के अंत में – अपने मार्गदर्शक लाठ जी को स्मरण करते हुए गिरधर राय ने अपने संस्मरणों को ताज़ा करते हुए सभी के समक्ष स्वीकार किया कि आज वे जो कुछ भी हैं, वह लाठ जी के स्नेह, सानिध्य एवं सहयोग से ही संभव हुआ।
उन्होनें बताया लाठ जी प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त थे एवं उनका सारा जीवन ही रामायण की तरह पवित्र था, जोकि सदैव दूसरों की सहायता करने में व्यतीत हुआ। उनकी श्री राम के प्रति अपार श्रद्धा का इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होनें गोलोकवास जाने का जो दिन चयनित किया वह था रामनवमी का पावन दिन। इस सभा के दौरान लोगों को यह भी ज्ञात हुआ कि गिरिधर राय ने तीन वर्षों के कठिन परिश्रम से लाठ जी पर केन्द्रित ‘लक्ष्य एक’ नामक पुस्तक भी निकाली थी जिसमें बहुआयामी व्यक्तित्व से संपन्न लाठ जी के विभिन्न अंतरंग पक्षों का अवलोकन मिलता है।
कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए देवश मिश्र ने विमल लाठ जी के व्यक्तित्व को रेखांकित करती हुई कवि गिरिधर राय की कुण्डलिया का जिक्र करने से नहीं चूके- “बेबाकी से जो कहा- बढ़ी उसी से शान, /हिन्दू हिन्दी हिन्द का- विमल ने रखा मान। विमल ने रखा मान, काम कुछ ऐसा ठाना, नाटक सेवा संघ, सदा सर्वोपरि माना। कहते गिरिधर राय- काम ना छोड़ा बाकी, ठान लिया जो किया, रहा सबसे बेबाकी।” अंत में अध्यक्ष महोदय ने यह कहकर सभा का समापन किया कि – विमल लाठ जी देह रूप में हमारे बीच भले ही नहीं रहे किन्तु आज भी उनका आशीर्वाद हमारे साथ है। ऐसे व्यक्ति मरते नहीं, सदा सदा के लिए अमर हो जाते हैं।