पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी । भारतीय नव वर्ष संवत 2079 दो अप्रैल से आरंभ होगा। उसी दिन वासंतिक नवरात्र भी शुरू होंगे। दो अप्रैल दिन शनिवार को रेवती नक्षत्र है। इससे सर्वार्थ सिद्धि योग और धाता योग बन रहा है। नवरात्रि और नव संवत का आरंभ बड़े शुभ योग में हो रहा है। शनिवार को वर्ष आरंभ होने से संवत 2079 के राजा शनिदेव होंगे और शनिवार से नवरात्रि आरंभ होने कारण दुर्गा मां का वाहन घोड़ा होगा। घोड़े पर बैठकर मां दुर्गा अपने भक्तों के यहां आएंगी।
नवरात्रि में माता के वाहन का भी बड़ा महत्व रहा है। इस विषय में देवी भागवत पुराण में एक श्लोक में बताया गया है कि ’शशि सूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे च डोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता।’ अर्थात रविवार और सोमवार को आरंभ होने वाले नवरात्रों में दुर्गा माता हाथी पर सवार होकर आती हैं। शनिवार एवं मंगलवार को शुरू होने पर घोड़े पर सवार होकर आती हैं। बृहस्पतिवार और शुक्रवार को शुरू होने पर झूले पर सवार होकर आती हैं। बुधवार को आरंभ होने वाले नवरात्रों में नाव पर सवार होकर आती हैं।
इस वर्ष शनिवार को नवरात्र आरंभ हो रहे हैं, इसलिए दुर्गा माता घोड़े पर सवार होकर आएंगी। घोड़े पर सवार होने का तात्पर्य है कि राज्य अथवा देशों में छत्र भंग हो जाएंगे। अर्थात राज्यों में अथवा देशों में शासन परिवर्तन होने की संभावनाएं हैं। राजा एक-दूसरे से युद्धोन्माद में लगे रहेंगे। षड्यंत्रकारी नीतियां चलती रहेंगी
घटस्थापना मुहूर्त : घटस्थापना के लिए सबसे अच्छा समय प्रातः 6:46 से 8:22 बजे तक मेष लग्न में शुभ रहेगा। इसके बाद नौ बजे से 10:30 बजे तक राहुकाल है। इस अवधि में कलश स्थापना नहीं करनी चाहिए। इसके बाद 10:30 बजे से 12:31 बजे तक मिथुन लग्न बहुत उत्तम है। इस लग्न की अवधि में 11:36 से 12:24 तक का अभिजीत मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है। मध्यान्ह 2:52 से 5:09 तक स्थिर लग्न सिंह लग्न है जो कलश स्थापना के लिए उत्तम मुहूर्त माना जाता है।
कलश स्थापना व जौ रोपण की विधि : नवरात्रि के आरंभ के दिन घट स्थापना का मुहूर्त समय निश्चित करके उससे पूर्व से ही तैयारियां कर लें। पूजन में प्रयोग होने वाली सामग्री, रोली, चावल, कलावा, पुष्पमाला, पान, जौ, दीपक, मिट्टी अथवा तांबे का कलश लौंग एवं घी को यथा विधि तैयार कर लें। स्नान करके गंगाजल से अपने कलश स्थापना स्थल को स्वच्छ करें। एक चौकी पर दुर्गा मां की मूर्ति रखें अथवा जिनके घर में मंदिर बने हुए हैं वह मंदिर के पास उपरोक्त व्यवस्था करें। अपने बाएं हाथ की ओर कलश की स्थापना करें और दाहिने हाथ की ओर दीपक जलाएं।
कुछ साधक नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाते हैं। इसका नियम यह है कि जब तक घर में अखंड ज्योत जलती है तो कोई ना कोई सदस्य घर में अवश्य रहना चाहिए। घर को खाली नहीं छोड़ सकते। नौ दिन तक प्रयत्नपूर्वक ज्योत को बुझने ना दें। बीच में जोत बुझना अच्छा नहीं माना जाता है। किसी मिट्टी के बर्तन में मिट्टी या रेत भरकर उसमें थोड़ा पानी डालें। 50 ग्राम या 100 ग्राम शुद्ध जौ लेकर यह देख लें कि उसमें घुन आदि तो नहीं लगी है। थोड़ी देर गंगाजल में डुबोएं और उसे मिट्टी के पात्र में अथवा तसलें की मिट्टी में बिखेर दें। हल्का हल्का पानी लगा दें। उसके पश्चात कलश में गंगा जल एवं जल भरें। उसमें बताशा, लौंग, इलायची, सुपारी और चावल डाल दें। कलश के ऊपर कलावा लपेटें।
पांच या सात आम के पत्ते लगा कर के नारियल में चुन्नी लपेट करके कलश के मुंह पर रख दें। उसके पश्चात दीप जलाएं और दीप जाने के बाद जैसी भी आपकी इच्छा हो दुर्गा मां का आह्वान कर पंचोपचार व षोडशोपचार से मां की पूजा करें। इच्छा अनुसार दुर्गा सप्तशती का पाठ करें अथवा दुर्गा कवच, अर्गला स्तोत्र, कीलक और 13 अध्याय का पाठ कर सकते हैं। यदि आपको यह नहीं करना तो केवल नवार्ण मंत्र का जाप करें और दुर्गा मां की कहानी पढ़ें। तांत्रिक देवी सूक्तम और आरती अवश्य करें। इस प्रकार से कलश स्थापना करने दुर्गा मां का आवाहन, व्रत, पूजा करने से साधक की इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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