19 जनवरी 1990 कश्मीरी पण्डितों का पलायन

रामअशीष, कोलकाता । घर छूटने का दर्द वही जनता है, जिसको अपने ही घर से बेघर कर दिया गया हो। जिसको मारा गया हो, प्रताड़ित किया गया हो और घर से बाहर कहीं दूसरे जगह टेंट में रहना पड़ा हो। उसका दर्द बस वही और उसका परिवार जानता है। जिसके माँ, बहनों, बेटियों और बहुओं पर अत्याचार हुआ हो। बाकि जो जिस चीज़ को नहीं झेला है वह क्या जानेगा? वह जानेगा तब जब उसके साथ और उसके परिवार के साथ वह घटना घटेगी! दूर से घर में बैठ कर और आराम से खा-पी कर किसी के झेले हुए दर्द को कोई क्या जानेगा!

पर लोग तो पढ़-लिख कर या अनपढ़ भी उसकी बड़े ही आराम से व्याख्या और आलोचना कर देते हैं और अपनी बातें कुछ ही तथाकथित लोगों के बीच रखकर अपनी डिंगें हांक लेते हैं और वह भी कुछ पल के लिए। उसके बाद सब सामान्य हो जाता है। उसके बाद उनके बातों का वर्चव ख़त्म हो जाता है, क्योंकि ये बातें कुछ सिमटे हुए लोगों तक ही पहुँच पाती है। इतनी बड़ी दुनियाँ रहते हुए भी आज का समय ही ऐसा है “सिमटे हुए लोग और सिमटी हुई उनकी दुनियाँ”।

अभी दूर की नहीं तालिबान और अफगानिस्तान, रूस और यूक्रेन के युद्ध को देख लीजिए। वहाँ के लोगों का दुःख आप और हम नहीं समझ सकतें। बस देख सकतें हैं, महसूस नहीं कर सकतें। अभी के तत्काल घटना अपने ही देश के पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के रामपुरहाट को ही देख लीजिए। कितनों को जला दिया गया और कितने डर से अभी पलायन कर रहे हैं।कितने पढ़े-लिखे बुध्दिजीवी और अनपढ़ गये उनका दर्द जानने के लिए? कोई सिमटे हुए लोगों में से नहीं जायेगा।

बस देख लो सोफे और गद्दे पर बैठकर अपने और समाज का सच। सच यही है कि जिस व्यक्ति के साथ कोई घटना घटती है उसका दर्द बस वही जानेगा। किसी फिल्म और ख़बर को देख कर उसका दर्द नहीं महसूस किया जा सकता है। कश्मीरी पण्डितों का जिक्र अब होने का मुख्य कारण मुझे ऐसा लगता है कि – धारा 370 और 35A के हटने और The Kashmir File फिल्म बनने और उसके बाद मीडिया द्वारा प्रचार-प्रसार के कारण हमें बहुत कुछ जानने समझने को मिला।

रही बात सरकार की तो वह वही करती है जिसमें उसको फायदा मिले और वह सत्ता में बने रहें चाहे जैसे भी हो। यह सब हम इतिहास में पढ़ते आ रहे हैं और इतिहास भी हम जो पढ़ते हैं वह भी बहुतायत रूप में तात्कालिक सरकार के इशारों पर ही लिखी गई होती है। जैसे हिंदी के आदिकाल की विशेषता हम पढ़ते आ रहे हैं- आश्रयदाता राजाओं की प्रशंसा। प्रशंसा कीजिये और राज भोगिये।

रामअशीष, लेखक

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